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कोरोना काल में 'गरीब कल्याण रोज़गार अभियान’ कितनी रोजगार परक?


कोरोना काल में 'गरीब कल्याण रोज़गार अभियान’ कितनी रोजगार परक?
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देश में कोरोना महामारी (Coronavirus pandemic) के प्रसार को लगभग 9 महीने होने को हैं, इस दौरान आम नागरिक सहित देश भी विकट आर्थिक स्थिति का सामना कर रहा है। शुरुआती दौर में देश में सख्त लॉकडाउन (lock down) घोषित कर दिया गया, जिसके तहत देश भर में एक तरह से कर्फ्यू की स्थिति हो गई। एक दिन में ही अचानक से उद्योगधंदो, कारखानों, कार्यालयों, दूकानों में ताले लग गए। जिससे शहरी क्षेत्र के साथ-साथ ग्रामीण इलाके भी रातों रात गरीब मजदूर सड़कों पर आ गए। और कुछ ही दिनों में लोगों के सामने पेट पालने में भी दिक्कत होने लगी।

जिसे देखते हुए सरकर ने जून 2020 में गरीबों के कल्याण के लिए ‘गरीब कल्याण रोज़गार अभियान’ (garib kalyan rojgar abhiyaan) नामकी एक योजना शुरू की, ताकि गरीबों को एक तात्कालिक राहत मिल सके। 50,000 करोड़ रुपए की लागत वाली यह योजना का उद्देश्य था कि, लॉकडाउन (lockdown) के असर को कम कर,शहरों और ग्रामीण इलाकों में रोजगार सृजन करना और अर्थव्यवस्था (economy) को पटरी पर लाना।

इसके तहत विभिन्न इंडस्ट्री जो सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं, जैसे, निर्माण (-50%), व्यापार, होटल एवं  अन्य सेवाएँ (-47%), विनिर्माण (-39%) और खनन (-23%)। उसमें नौकरियों का सृजन करना था।

लेकिन क्या ऐसा वास्तव में हुआ। क्या सरकार की यह योजना सफल हुई, इसकी जमीनी हकीकत क्या है और इससे कितने लोगों को रोजगार मिला, इस ओर हम जरूर ध्यान देंगे।

कोरोना (Covid-19) संक्रमण के चलते लागू लॉकडाउन के दौरान घर लौटे प्रवासियों को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (pm narendra modi) ने 'गरीब कल्याण रोजगार अभियान' शुरू किया था। इसके तहत सभी गांवों में अभियान चलाकर जरूरतमंदों को रोजगार दिए जाने थे लेकिन, अफसरों की लापरवाही के कारण हकीकत जुदा है। शहरों से गांवों में गए लाखों लोगों को रोजगार (employment) दे पाना सरकार के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है।

'गरीब कल्याण अभियान' के तहत 125 दिनों तक अभियान चलाकर मजदूरों को रोजगार दिया जाता है। लेकिन सरकारी आंकड़ें कुछ और ही हाल बयां करते हैं। आंकड़ों के मुताबिक अब तक कुल मिलाकर 50 फीसद से भी कम लोगों को रोजगार दिया गया है।

यही नहीं मनरेगा के तहत प्रत्येक व्यक्ति को हर साल 100 दिन के रोजगार की गारंटी दी गई है। कार्य करने के बाद 14 दिवस के भीतर मजदूरी भुगतान के निर्देश हैं लेकिन, कई माह बाद भी भुगतान नहीं हो पा रहा है। अफसर बजट का रोना रो रहे हैं।

साथ ही लोगों का यह भी कहना है कि साल भर काम की जरूरत पड़ती है, तो मात्र 125 दिन काम करके उसके बाद क्या करेंगे। शायद यही कारण है कि, लोग अब फिर से शहरों की राह पकड़ने लगे हैं।

एक तरह से सरकार की यह योजना भी हवा हवाई ही साबित हुई। इस योजना की तरफ सरकार को फिर से ध्यान देना चाहिए।

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