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केईएम अस्पताल का नाम बदलकर डॉ. आनंदीबाई जोशीं रखने की मांग, मनसे ने बीएमसी कमिश्नर को दिया आवेदन

मनसे नेता बाला नांदगावकर ने बीएमसी कमिश्नर से मिलकर इस बारे में उन्हे आवेदन भी दिया है।

केईएम अस्पताल का नाम बदलकर डॉ. आनंदीबाई जोशीं रखने की मांग, मनसे ने बीएमसी कमिश्नर को दिया आवेदन
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मुंबई के परेल में स्थित केईएम अस्पताल में हर रोज हजारो लोग देश के कोने कोने से इलाज कराने के लिए आते है। इस अस्पताल की स्थापना आजादी से भी पहले यानी की 1926 में भी हुई थी, तब से इस अस्पताल का नाम केईएम अस्पताल के नाम से ही जाना जाता है , लेकिन अब महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने इस अस्पताल के नाम को बदलने की मांग की है। मनसे ने इस अस्पताल का नाम केईएम अस्पताल से बदलकर डॉ. आनंदीबाई जोशीं अस्पताल रखने की मांग की है। मनसे नेता बाला नांदगावकर ने बीएमसी कमिश्नर से मिलकर इस बारे में उन्हे आवेदन भी दिया है।


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क्या कहना है मनसे का

दरअसल मनसे का कहना है की आजादी मिले हमे कई दशक हो गये है। मेडिकल क्षेत्र में ब्रिटीश द्वारा किये गये कार्यों की हम सराहना करते है , लेकिन अब समय आ गया है की हम उनके मासनिक गुलामी से मुक्त हो। मनसे नेता बाला नांदगांवकर के साथ साथ मनसे नेता नितीन सरदेसाई, महासचिव मनोज चव्हाण और संदीप देशपांडे ने भी इस आवेदन पर अपने हस्ताक्षर किये थे।


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कौन है डॉ. आनंदीबाई जोशी

31 मार्च 1865 को पुणे शहर में जन्‍मी आनंदीबाई जोशी पहली भारतीय महिला थीं, जिन्‍होंने डॉक्‍टरी की डिग्री ली थी। जिस दौर में महिलाओं की शिक्षा भी दूभर थी, ऐसे में विदेश जाकर डॉक्‍टरी की डिग्री हासिल करना अपने-आप में एक मिसाल है। उनका विवाह नौ साल की अल्‍पायु में उनसे करीब 20 साल बड़े गोपालराव से हो गया था। जब 14 साल की उम्र में वे माँ बनीं और उनकी एकमात्र संतान की मृत्‍यु 10 दिनों में ही गई तो उन्‍हें बहुत बड़ा आघात लगा। अपनी संतान को खो देने के बाद उन्‍होंने यह प्रण किया कि वह एक दिन डॉक्‍टर बनेंगी और ऐसी असमय मौत को रोकने का प्रयास करेंगी।

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