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बैनर पहलकर पटाखें ना जलाने का संदेश!

साल 2010 से ही वह कांदिवली स्टेशन पर लगभग रोज शाम को एक घंटे सामाजिक संदेश देनें के लिए बैनर पहनकर खड़े रहते है।( saturday )

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दिवाली हो या फिर किसी भी तरह का कोई भी जश्न , हम अक्सर इस जश्न के दौरान पटाखे फोड़ते है। इन फटाखों के कई सारे नुकान होते है जो ना ही सिर्फ हमने बल्की हमारे आसपास के लोगों को भी काफी तकलीफ देते है। कई राज्यों की सरकारे भी दिवाली या किसी और उन्य त्योहार पर पटाखों को ना जलाने की अपील करती है फिर इसके बाद भी कई लोग हर सेलिब्रेशन में पटाखे फोड़ते है।  ऐसे ही लोगों को समझाने के लिए एक शख्स पिछलें कई सालों से लोगों को पटाखे ना फोड़ने का सामाजिक संदेश दे रहा है।  


69 साल के रमेश डोंगरे साल 2010में टाटा इंस्टीट्युट से रिटायर हो गये। रिटायरमेंट के बाद उन्होने समाज के लिए कुछ करने की इच्छा जाहीर की।  साल 2010 से ही वह कांदिवली स्टेशन पर लगभग रोज शाम को एक घंटे सामाजिक संदेश देनें के लिए बैनर पहनकर खड़े रहते है। हर किन वह किसी ना किसी सामाजिक संदेश को अपने इस बैनर के जरिए लोगों तक पहुंचाते है।  रमेश तंबाकू के व्यसन के बार में भी लोगों को बताते है और उन्हे इसके साथ ही इससे होनेवाले तकलीफों के बारे में भी बताते है।  

पटाखों से महिलाओं और बच्चों को ज्यादा तकलीफें


रमेश डोंगरे का कहना है की पटाखों से सबसे ज्यादा तकलीफ महिलाओं और बच्चों तो होता है। गर्भवती महिलाओं को पटाखों की आवाज से काफी तकलीफ होती है तो वही दूसरी ओर पशु पच्छियों को भी इससे काफी तकलीफ होती है। 


वायु प्रदूषण और ध्वनि प्रदुषण


फुलझड़ी, अनार व चकरी तेज आवाज नहीं करते, पर धुआं ज्यादा छोड़ते है जो खतरनाक होता है। पटाखों से दिवाली पर वायु प्रदूषण बीस गुना और ध्वनि का स्तर 15 डेसीबल बढ़ जाता है। पटाखे जलाने से कार्बन मोनाआॅक्साइड, सल्फ्यूरिक नाइट्रिक व कार्बनिक एसिड जैसी जहरीली गैस वायुमंडल में फैलती है। इससे मनुष्य के शरीर में कैंसर, जल स्त्रोत के दूषित होने की आशंका रहती है। दिल से जुड़ी बीमारी हो कसती है। दमा रोगी के लिए जानलेवा पटाखों के धुएं के साथ जो कण सांस नली में जाते हैं, वह नली को चोक कर देते हैं। 

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