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लगातार झुकता हुआ लोकतंत्र का चौथा स्तंम्भ

अब लोग न्यूज़ चैनलों सहित मीडियाकर्मी को भी ट्रोल करने लगे हैं। हर मुद्दे पर अब मीडिया में दो फाड़ दिखाई देने लगता है। न्यूज़ चैनल एक ही।मुद्दे पर अपना अलग अलग एजेंडा चलाते हैं।

लगातार झुकता हुआ लोकतंत्र का चौथा स्तंम्भ
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लोकतंत्र का चौथा स्तंम्भ कहा जाने वाला मीडिया की पहुंच अब हर घर में हो गई है। इसकी दखलंदाजी हर जगह हो भी रही है। लोग जागरूक हो रहे हैं तो लोगों की रुचि भी इसमें बढ़ रही है। इसीलिए अब लोग न्यूज़ चैनलों सहित मीडियाकर्मी को भी ट्रोल करने लगे हैं। हर मुद्दे पर अब मीडिया में दो फाड़ दिखाई देने लगता है। न्यूज़ चैनल एक ही।मुद्दे पर अपना अलग अलग एजेंडा चलाते हैं, अगर यह स्वस्थ्य डिबेट हो तो अच्छी बात, लेकिन हर डिबेट का स्तर गिरता हुआ नजर आता है।

इससे जहां दर्शक कंफ्यूज रहते हैं तो दूसरी तरफ चैनलों की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठने लगते हैं।मुश्किल यह है कि इन चर्चाओं में किसी प्रकार का लब्बो लुआब निकल कर सामने नहीं आता, जिससे इन समस्याओं का निदान हो सके।

इसीलिए अगर आप सोशल मीडिया में देखेंगे तो इसमें वैचारिक मतभेद की जगह आपको एक कग ही प्रकार की लड़ाई देखने को मिलती हवीं जहां नेटिजन्स भी चटकारे लेकर देश की मीडिया पर सवाल उठाते हैं।

वर्तमान समय की मीडिया इंडस्ट्री पर नजर डालेंगे तो यहां आम लोगों से जुड़े मुद्दे से कोई सरोकार नहीं होता बल्कि राष्ट्रवाद, देशवाद,धर्मवाद सहित अन्य वाद विवाद जरूर होते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि आम लोगों के बीच मीडिया ने अपनी साख खोई है।

मीडिया क्षेत्र में गिरावट का कारण: मिशन का अभाव, कॉर्पोरेट घरानों का कब्ज़ा, प्रिंट मीडिया की गिरती अहमियत और इन सबसे बढ़कर छोटे-मझोले अख़बारों के साथ पत्रकारों की कमाई के स्रोत सूख जाना, जैसे विषय इस क्षेत्र के सुधीजनों को परेशान किये हुए हैं । आज आखिर कौन अपने बेटों को इस क्षेत्र में लाना चाहता है? थोड़ा व्यापक रूप से गौर किया जाए तो इस क्षेत्र में जो कठिनाइयां आयी हैं, उनका बड़ा कारण तकनीक की समझ और उसके प्रयोग को लेकर नज़र आता है। फिर वह चाहे मीडिया के मिशन की बात हो अथवा इसके अर्थशास्त्र को लेकर ही उहापोह क्यों न हो।

थोड़ा और स्पष्ट करें तो बड़े या छोटे 'प्रिंट मीडिया' के पास पाठक ही नहीं दिखते हैं। इंटरनेट क्षेत्र में आयी क्रांति और उसके बाद मोबाइल क्रांति ने तो इस क्षेत्र के सभी पाठकों को झटके से छीन लिया है, जिसकी भनक छोटे तो छोड़िए, बड़े अख़बार समूहों तक को नहीं लगी, जिसका नतीजा उन्हें प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप में भुगतना ही पड़ा।

पहले की अपेक्षा अब मीडिया का स्वरूप काफी बदल गया है। लोग बाग भी अब इसके बदलते स्वरूप को महसूस करने लगे हैं। यही नहीं मीडिया अब अपनी सीमाएं भी लांघने लगा है, इसीलिए समय समय पर इस पर लगाम लगाने के लिए लोग कोर्ट के जरिये आवाज भी उठाते रहते हैं।

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