ठाणे सत्र न्यायालय ने हाल ही में बदलापुर यौन उत्पीड़न मामले के आरोपी अक्षय शिंदे के साथ कथित मुठभेड़ के संबंध में मजिस्ट्रेट की जांच रिपोर्ट के एक पैराग्राफ पर रोक लगा दी है, जिसमें पुलिस अधिकारियों के नाम और कथित मुठभेड़ की वैधता पर सवाल उठाए गए हैं। इसलिए, अक्षय की मुठभेड़ के लिए जिम्मेदार ठहराए गए पुलिस को अब राहत मिली है। (Akshay Shinde encounter case Thane sessions court gives immediate relief to the police responsible for the encounter)
20 जनवरी को कोर्ट मे पेश हुई थी रिपोर्ट
अक्षय की मुठभेड़ की जांच रिपोर्ट मजिस्ट्रेट ने 20 जनवरी को हाईकोर्ट में पेश की थी। इसमें ठाणे क्राइम ब्रांच के वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक संजय शिंदे, सहायक पुलिस निरीक्षक नीलेश मोरे, कांस्टेबल अभिजीत मोरे, हरीश तावड़े और खटल, जो अक्षय को तलोजा जेल से कल्याण ले जा रहे थे, को उसकी हिरासत में मौत के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था।
पुलिस ने वकीलों सयाजी नांगरे और सूरज नांगरे के माध्यम से मजिस्ट्रेट की जांच रिपोर्ट के निष्कर्षों के खिलाफ राहत मांगने के लिए ठाणे सत्र न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।सत्र न्यायालय ने 21 फरवरी को उनके आवेदन पर सुनवाई करते हुए जांच रिपोर्ट के पैराग्राफ 81 और 82 को अगले आदेश तक के लिए स्थगित कर दिया।
तलोजा से कल्याण ले जाते समय अक्षय ने सहायक पुलिस निरीक्षक नीलेश मोरे से पिस्तौल छीन ली और गोली चला दी। इसलिए, मोरे ने भी अक्षय के हमले का जवाब दिया। शिंदे और मोरे दोनों घायल हो गए। हालांकि, हथकड़ी लगे अक्षय को पुलिस द्वारा नियंत्रित किया जा सकता था।
मजिस्ट्रेट ने मुठभेड़ पर सवाल उठाते हुए निष्कर्ष निकाला कि उनका बल प्रयोग उचित नहीं था। हालांकि, पुलिस ने ठाणे सत्र न्यायालय में अपने आवेदन में दावा किया है कि मजिस्ट्रेट अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर मामले में निष्कर्ष पर पहुंचे।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 196 के अनुसार, मजिस्ट्रेट की जांच मौत के कारण का पता लगाने तक सीमित थी। मजिस्ट्रेट के पास जिम्मेदारी निर्धारित करने या पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठाने का अधिकार नहीं है। रिपोर्ट के पैराग्राफ 76, 77, 79, 80, 81 और 82 में निष्कर्ष प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं। इसलिए, पुलिस ने ठाणे सत्र न्यायालय से इसे बाहर करने का अनुरोध भी किया है।
मजिस्ट्रेट ने गोपनीयता के आधार पर अधिकारियों को रिपोर्ट की प्रति देने से इनकार कर दिया था। बाद में पुलिस ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उस समय जस्टिस रेवती मोहिते-डेरे और नीला गोखले की पीठ ने उन्हें मजिस्ट्रेट की रिपोर्ट की प्रति उपलब्ध कराने का आदेश दिया था।
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