'मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी लोकतंत्र और संवैधानिक अधिकारों का हनन'


'मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी लोकतंत्र और संवैधानिक अधिकारों का हनन'
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पुणे पुलिस द्वारा कथित नक्सली लिंक के आरोप में गिरफ्तार किए गए मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के समर्थन में और सरकार के विरोध में बुधवार को मुंबई के पत्रकार संघ में कुल 37 मानवाधिकार संगठनों ने एक प्रेस कांफ्रेंस आयोजित कर अपना विरोध दर्ज कराया। संगठन ने दावा किया कि गिरफ्तार किये गए लोगों का कोई नक्सल कनेक्शन नहीं है और सरकार कुछ कट्टर लोगों को बचाना चाहती है।

सरकार दबाती है आवाज 
संगठन की तरफ से पत्रकारों को सम्बोधित करते हुए कहा गया कि देश में शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, महिला सुरक्षा जैसे कई मुद्दे हैं, इन मुद्दों पर सरकार कुछ भी नहीं बोल रही है। इन मुद्दों के खिलाफ जो भी आवाज उठाता है सरकार उसके खिलाफ कार्रवाई करती है उसकी आवाज को दबाने की कोशिश की जाती है। उन्होंने आगे कहा कि वामपंथी होने के नाते जानबूझकर इनका संबंध नक्सलवादियों से जोड़ा जा रहा है।


'भीमा-कोरेगांव के आरोपी अभी भी बाहर'
उपस्थित बॉम्बे हाईकोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस और एल्गार परिषद के संयोजक बीजी कोलसे पाटिल ने कहा कि भीमा-कोरेगांव हिंसा के आरोपी संभाजी भिड़े को अभी तक गिरफ्तार नहीं किया गया है। सरकार द्वारा जानबूझकर एल्गार परिषद के आयोजकों और कार्यकर्ताओं को टारगेट कर रही है।

'दलितों को फंसाया गया'
उन्होंने आगे कहा कि एल्गार परिषद का नक्सलियों से कोई संबंध नहीं है, और न ही नक्सलियों के साथ कोई व्यवहार किया गया है। उन्होंने आरोप लगाया कि उलटे भीमा कोरेगांव हिंसा में कई दलित युवकों को झूठे केस में पुलिस ने फंसाया है।

क्या था मामला?
 आपको बता दें कि इसी साल 1 जनवरी को भीमा-कोरेगांव हुई हिंसा में 1 व्यक्ति की मौत हो गयी थी. बाद में पुलिस जांच में पुणे पुलिस ने सनसनीखेज खुलासा करते हुए कहा था कि कुछ लोग पीएम मोदी के हत्या का साजिश रच रहे हैं. इस मामले में पुणे पुलिस ने कुछ लोगों को गिरफ्तार भी किया था और अब उनसे ही पूछताछ के बाद इन 5 लोगों वरवरा राव, सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा, वेरनोन गोन्जाल्विस और अरुण फरेरा को गिरफ्तार किया गया है.

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