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tripal talaq: क्या है बिल में, क्यों था विरोध, जानें यहां

एक आंकड़ें के अनुसार भारत में तीन से करीब 24 फीसदी मुस्लिम महिलाएं तलाक से पीड़ित हैं। हालाकि इसमें सभी प्रकार के तलाक शामिल है लेकिन अधिकांश तीन तलाक से ही पीड़ित महिलाएं हैं।

tripal talaq:  क्या है बिल में, क्यों था विरोध, जानें यहां
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शुक्रवार को ऐतिहासिक तीन तलाक (Triple Talaq) के खिलाफ राज्यसभा में बिल पास कर दिया गया। मोदी सरकार ने पहले कार्यकाल में भी ये बिल पेश किया था जो लोकसभा से तो पास हो गया पर राज्यसभा में बहुमत न होने के कारण अटक गया था। हालांकि उम्मीद के मुताबिक सदन में जमकर शोर शराबा हुआ, लेकिन जब वोट देने की बारी आई तो अधिकांश राजनीतिक पार्टियों ने वाकआउट कर दिया। राज्यसभा में तीन तलाक बिल पर जहां 99 वोट पड़े, वहीं विरोध में 84 वोट आए। इस तरह से 15 वोटों से तीन तलाक बिल को राज्यसभा ने मंजूरी दे दी। अब सिर्फ तीन तलाक बिल पर राष्ट्रपति की मुहर का इंतजार है, जिसके बाद यह कानून बन जाएगा।

बिल का प्रावधान:

  • पत्नी को मौखिक, लिखित या इलेक्ट्रानिक रूप से या किसी अन्य विधि से तीन तलाक देना होगा अवैध।
  • तुरंत तीन तलाक यानी तलाक-ए-बिद्दत होगा गैर कानूनी।  
  •  पुलिस को बिना वारंट गिरफ़्तार करने का होगा अधिकार।
  • तीन साल तक की सजा का है प्रावधान।  
  • खुद महिला के या  फिर उसके कोई सगा-संबंधी द्वारा शिकायत करने पर ही होगा मामला दर्ज। 
  • मजिस्ट्रेट आरोपी को जमानत दे सकता है. जमानत तभी दी जाएगी, जब पीड़ित महिला का पक्ष सुना जाएगा।
  • पीड़ित महिला के अनुरोध पर मजिस्ट्रेट समझौते की अनुमति दे सकता है।
  • पीड़ित महिला पति से गुज़ारा भत्ते का दावा कर सकती है।
  • गुज़ारा भत्ते की रकम मजिस्ट्रेट करेगा तय। 
  • पीड़ित महिला नाबालिग बच्चों को अपने पास रख सकती है. इसके बारे में मजिस्ट्रेट तय करेगा।

इस बात को लेकर था विरोध 
इस मुद्दे पर तमाम राजनीतिक पार्टियों कुछ बातें आशंका युक्त थीं, उनका कहना था कि इस मामले में सजा का प्रावधान नहीं होना चाहिए। पहली बात अगर पति को सजा मिलती है तो आगे पति-पत्नी के समझौते की राह एकदम से बंद हो जाएगी, दूसरी बात पति तीन साल तक जेल चला जाएगा तो महिला का गुजारा भत्ता कैसे चलेगा? AIMIM नेता और सांसद असदुद्दीन ओवैसी, कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह सहित तमाम नेताओं का यह कहना था कि अगर पति ट्रिपल तलाक देता है तो मेहर की रकम का 5  या 10 गुना अधिक उसे भरना पड़े।

कांग्रेस ने किया था सेलेक्ट कमिटी में भेजने की मांग 
कांग्रेस सांसद गौरव गोगोइ ने इस विधेयक को स्थायी समिति के पास भेजने की मांग की। उन्होंने कहा कि लाखों हिंदू महिलाओं को उनके पतियों ने छोड़ दिया है, उनकी चिंता क्यों नहीं की जा रही है? इससे पहले कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद ने भी विधेयक का विरोध किया और कहा कि इसे संसद की स्थायी समिति के पास भेजा जाना चाहिए और पतियों से अलग रहने को मजबूर सभी धर्मों की महिलाओं के लिए एक कानून बनना चाहिए।

बीजेपी ने जोड़ा मुस्लिम महिलाओं से 
बीजेपी मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए ये बिल लाती रही है। राज्यसभा में चर्चा के दौरान रविशंकर प्रसाद ने कहा कि जब इस्लामिक देशों में इस तरह के तलाक का प्रावधान नहीं है तो हम तो एक लोकतांत्रिक एवं धर्मनिरपेक्ष देश में रह रहे हैं, हमें यह काम क्यों नहीं करना चाहिए? उन्होंने कहा कि तीन तलाक से प्रभावित होने वाली करीब 75 प्रतिशत महिलाएं गरीब तबके से आती हैं। ऐसे में यह विधेयक उनको ध्यान में रखकर बनाया गया है। प्रसाद ने आगे कहा कि हम ''सबका साथ सबका विकास एवं सबका विश्वास में भरोसा करते हैं और इसमें हम वोटों के नफा नुकसान पर ध्यान नहीं देंगे और सबके विकास के लिए आगे बढ़ेंगे और उन्हें (मुस्लिम समाज को) पीछे नहीं छोड़ेंगे।

क्या है तीन तलाक? 
जिस तीन तलाक को लेकर इतना हो-हल्ला मचा हुआ है उसे भी जरा जान लें। मुस्लिम धर्म के जानकारों का कहना है कि तीन तलाक का जिक्र इस्लाम के प्रमुख ग्रंथ कुरान और हदीस में नहीं है। कुरान में तलाक के कई और नियम लिखे हैं। तत्काल तीन तलाक यानी तलाक-ए-बिद्द्त का उल्लेख कुरान में नहीं होते हुए भी इस्लाम के तमाम धर्म गुरुओं ने भारत में तीन तलाक को सही बता कर इसे समाज में लागू कर दिया था। चौकानें वाली बात यह है कि हर मुद्दे पर मुस्लिम के हक़ हुकुक की बात करने वाला मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने भी इस मुद्दे पर कभी खुल कर बात नहीं की। एक आंकड़ें के अनुसार भारत में तीन से करीब 24 फीसदी मुस्लिम महिलाएं तलाक से पीड़ित हैं। हालाकि इसमें सभी प्रकार के तलाक शामिल है लेकिन अधिकांश  तीन तलाक से ही पीड़ित महिलाएं हैं।

लेकिन अब समय आ गया है कि मुस्लिम महिलाओं को भी उनका हक दिलाया जाए, उन्हें केवल बच्चे पैदा करने की मशीन हीन समझा जाए। हकीकत तो यही है कि मुस्लिम समाज में महिलाओं की दयनीय स्थिति किसी से छुपी नहीं है, इसके बाद भी उन्हें केवल वोटों तक ही सिमित रखा गया। इसीलिए अब जरूरत है कि इस्लामिक धर्म गुरू स्वयं आगे आए और तीन तलाक को अवैध बताएं। वैसे भी हमारा संविधान जितना अधिकार पुरुषों को देता है उतना ही महिलाओं को भी देता है।

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