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ई- लर्निंग: इस तरह पढ़ेगा इंडिया तो आगे कैसे बढ़ेगा इंडिया

भारत जैसे विपुल जनसंख्या वाले देश में हमें गरीब, उपेक्षित एवं दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों में बसे छात्रों तक इंटरनेट ,उसके अनुप्रयोग और उसकी सतत उपलब्धता की भी चुनौती है। देश के शहरी इलाकों में मोबाइल की उपलब्धता 78% और ग्रामीण क्षेत्रों में 57% है।

ई- लर्निंग: इस तरह पढ़ेगा इंडिया तो आगे कैसे बढ़ेगा इंडिया
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देश मे कोरोना वायरस (Coronavirus) के आगमन के बाद लॉकडाउन (lockdown) लगा दिया गया, जिसके तहत सभी क्षेत्रों को बंद कर दिया गया। जिसमें शिक्षा क्षेत्र में स्कूल और कॉलेजों को भी बंद कर दिया गया। जब नए सत्र की शुरुआत हुई तो सरकार ने स्कूलों से ई-लर्निंग (E-learning) प्रकिया पर जोर देने को कहा, जिसमें टीचर्स बच्चों को ऑनलाइन (online study) ही पढ़ाने का निर्देश दिया गया था। लेकिन सरकार यह नियम लागू करते समय यह भूल गयी कि, कितने बच्चों के पास ई-लर्निंग की सुविधा है, और कितने बच्चे इस सुविधा से मरहूम हैं।

अंग्रेजी अखबार मिड डे की एक रिपोर्ट के अनुसार, धारावी (dharavi) के झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले लगभग 60 फीसदी गरीब बच्चों के पास ऑनलाइन पढ़ाई का कोई साधन नहीं है, इन बच्चों के गरीब परिवार वालों के पास स्मार्ट फोन तक नहीं है कम्प्यूटर (Computer) दूर की कौड़ी है। इसिलए इन बच्चों के सामने पढ़ाई की समस्या खड़ी हो गई है।

कोरोना महामारी (COVID-19 pandemic) के बीच, धारावी (dharavi) में रहने वाले अधिकांश परिवारों के सामने जीवन यापन की समस्या आ गई है। तो ऐसे में अधिकांश परिवार वालों के सामने जहां 2 जून की रोटी की जुगत करने में मुश्किल आ रही है तो वहीं वे डिजिटल दूनिया से उनका कोई संबंध ही नहीं है।

महाराष्ट्र सरकार ने पहले प्री-प्राइमरी के छात्रों के लिए ऑनलाइन कक्षाओं की अनुमति दी थी, जिसके तहत एक या दो बच्चों को सप्ताह में पांच दिन 30 मिनट का सत्र लिया जाता है।

जबकि चौकानें वाली बात यह है कि, इस इलाके की विधायक खुद इस समय महाराष्ट्र सरकार में स्कूल शिक्षा मंत्री हैं। मतलब यह तो दीपक तले अंधेरा वाली बात हो गई।

इस मुद्दे पर RTI एक्टिविस्ट और सामाजिक कार्यकर्ता अनिल गलगली (anil galgali) का कहना है कि, ऑनलाइन शिक्षा (online education) का प्रयोग तब सफल होगा जब शत प्रतिशत छात्रों के पास डिजिटल यंत्रणा उपलब्ध हो। धारावी के अधिकांश छात्रों कर पास ना तो लैपटॉप हैं ना ही अत्याधुनिक मोबाइल और कम्प्यूटर। इसी क्षेत्र की विधायक खुद शिक्षा मंत्री हैं। इन्हें एक विधायक के तौर पर छात्रों को सुविधा उपलब्ध करानी चाहिए ताकि उन्हें ऑनलाइन शिक्षा प्राप्त हो।

जबकि जाने माने शिक्षाविद् और मुंबई विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के हेड करुणाशंकर उपाध्याय तो इस बारे में विस्तार से बात करते हैं। वे कहते हैं कि, भारत जैसे विपुल जनसंख्या वाले देश में हमें गरीब, उपेक्षित एवं दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों में बसे छात्रों तक इंटरनेट ,उसके अनुप्रयोग और  उसकी सतत उपलब्धता की भी चुनौती है। देश के शहरी इलाकों में मोबाइल की उपलब्धता 78% और ग्रामीण क्षेत्रों में 57% है।

आज भी देश के 59% युवाओं को कम्प्यूटर का ज्ञान नहीं है और  64% युवाओं को इंटरनेट के इस्तेमाल की प्रक्रिया का ज्ञान नहीं है।ऐसी स्थिति में हम भले ही ई-लर्निंग की ओर बढ़ रहे हों परन्तु हमारी सरकारों के समक्ष अंतिम छात्र तक मूलभूत सुविधाएं पहुंचाने की भी चुनौती है। इसके अलावा भारत में इंटरनेट की गति भी एक बड़ी समस्या है।ब्राडबैंड स्पीड का विश्लेषण करने वाली कंपनी ऊकला के अनुसार सितंबर 2019 तक भारत मोबाइल स्पीड के मामले में संपूर्ण विश्व में  128 वें स्थान पर था।

साथ ही , यह भी देखा गया है कि ऑनलाइन कक्षाओं (online class) का विद्यार्थियों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ रहा है। उनमें मानसिक व्याधियां बढ़ रही हैं। अतः हमारे समक्ष डिजिटल विश्व में आत्मनिर्भर और स्वावलंबी बनने के साथ – साथ उसके खतरों की भी गहरी समझ विकसित करने की चुनौती है। ऑनलाइन शिक्षा के कारण छात्रों की सामाजिकता बाधित हो रही है। उनमें प्रतियोगिता का अभाव पैदा हो रहा है।अतः प्राध्यापकों के समक्ष पाठ-सामग्री, प्रश्न-बैंक एवं नोट्स प्रेषित करने के अलावा छात्रों को प्रेरित, प्रभावित और उनके व्यक्तित्व निर्माण की भी चुनौती है। चूंकि शिक्षा पर सभी का समान अधिकार है अतः शिक्षकों का भी प्रशिक्षण होते रहना चाहिए। यह दायित्व योग्य, कर्तव्यनिष्ठ और क्षमतावान प्रशिक्षकों को सौंपा जाना चाहिए।

देश के माहौल को देखते हुए अनेक राज्यों के पैरेंट्स कोरोनो वायरस (Coronavirus) के प्रकोप के कारण अपने बच्चों को वापस स्कूल भेजने में हिचकिचाहट महसूस करते हैं। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सभी राज्यों में शैक्षणिक संस्थानों में तालाबंदी खत्म होने के बाद स्कूल अपने छात्रों की सुरक्षा के लिए सोशल डिस्टेंस (social distance) जैसे प्रोटोकॉल को कैसे बनाए रखते हैं?


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