नवरात्रि के सांतवें दिन मां दुर्गा के कालरात्रि अवतार की पूजा की जाती है। इस दिन मां काली का आशिर्वाद पाने के लिए मां कालरात्रि की अराधना की जाती है और साथ ही उनका श्रृंगार भी किया जाता है। मां कालरात्रि शांत और साहस का प्रतीक है। वह प्रकाश को अंधेरे में लाने के लिए जानी जाती है।
कालरात्रि नाम दो शब्दों से बना है, काल और रात्री, जहां काल का मतवल विनाश है तो वही रात्रि का मतलव रात। मां कालरात्रि की पूजा करने से अज्ञान दूर होता है और घरों में शांति आती है साथ ही बुराईयों का भी नाश होता है। महिषासुर , चंड-मुंड और शुम्भ-निशुंभ का संहार करनेवाली मां कालरात्रि सभी जीवों औऱ प्राणियों को मोक्ष प्रदान करती है।
कहा जाता है, इस दिन पूजा करनेवालों को अपना चित्त भानु चक्र (मध्य ललाट) में स्थिर कर साधना करनी चाहिए। देवी कालरात्रि की तीन आखें होती है। जो आग और ऊर्जा का उत्सर्जन करती हैं। वह उन लोगों को आशीर्वाद देती है जो उन्ह शुद्ध दिल से पूजा करते हैं। देवी अपने भक्तों की सभी राक्षस शक्तियों से रक्षा करती है।
भक्त नवरात्रि के सातवें दिन नीले, लाल या सफेद रंग के कपड़े पहनते हैं। कालरात्रि गर्दभ पर सवार हैं। मां कालरात्रि को शुभंकरी भी कहा गया है।
कैसे करें पूजा
आज का पंचाग
विक्रमी सम्वत्- 2074, आश्विन प्रविष्टे - 12, राष्ट्रीय शक सम्वत् - 1939, दिनांक- 5 (आश्विन), हिजरी साल- 1439, महीना: मुहर्रम, तारीख- 6, सूर्योदय- 6.23 बजे, सूर्यास्त - 6.14 बजे (जालंधर समय), नक्षत्र - ज्येष्ठा (प्रात: 9.57 तक), योग - आयुष्मान (प्रात: 9.39 तक), चंद्रमा प्रात - 9.57 तक वृश्चिक राशि पर तथा उसके बाद धनु राशि पर प्रवेश करेगा।
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