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आने वाली पीढ़ी रहे स्वस्थ्य तो प्लास्टिक बंद करना ही पड़ेगा

सिंगल यूज प्लास्टिक में ऐसा केमिकल पाया जाता है जो पर्यावरण के साथ हमारे स्वास्थ के लिए भी बेहद हानिकारक है।

आने वाली पीढ़ी रहे स्वस्थ्य तो प्लास्टिक बंद करना ही पड़ेगा
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केंद्र की मोदी सरकार ने 2 अक्टूबर से सिंगल प्लास्टिक यूज पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया है. अब भारत में इसका उत्पादन करना, जमा करना या फिर बेचना अपराध माना जाएगा. सरकार की तरफ से प्लास्टिक बंदी ऐसे ही नहीं लगाई गयी है. दरअसल यह वह काम था जिसे काफी पहले ही कर देना चाहिए था। भारत में यह अब अमल में लाया गया है लेकिन कई देशों में यह काफी पहले से ही बैन है। आपको जान कर हैरानी होगी कि हर साल पूरे विश्व में इतना प्लास्टिक फेंका जाता है कि इससे पूरी पृथ्वी के चार घेरे बन जाएंगे।

सिंगल यूज प्लास्टिक में ऐसा केमिकल पाया जाता है जो पर्यावरण के साथ हमारे स्वास्थ के लिए भी बेहद हानिकारक है। प्लास्टिक कभी घुलती नहीं है और यह हजारों साल ऐसे ही पड़ी रहती है, जिसके कारण यह पानी ही नहीं बल्कि मिट्टी के लिए भी खतरनाक है।

सिंगल यूज प्लास्टिक  वो प्लास्टिक होते हैं जिसका इस्तेमाल सिर्फ एक बार किया जाता है। हर दिन हम प्लास्टिक के कई प्रोडक्ट्स इस्तेमाल करते हैं और उन्हें फेंक देते हैं ये प्रोडक्ट्स सिंगल यूज प्लास्टिक में आते हैं। सिंगल यूज प्लास्टिक को डिस्पोजेबल प्लास्टिक भी कहते हैं।

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इस सिंगल यूज प्लास्टिक में कैरी बैग(50 माइक्रोन से कम), बिना बुना कैरी बैग, छोटी रैपिंग/पैकिंग फिल्म, फोम वाले कप प्याले, कटोरे, प्लेट, लेमिनेट किये गए बाउल और प्लेट, छोटे प्लास्टिक कप और कंटेनर (150 एमएल और 5 ग्राम से कम), प्लास्टिक स्टिक और इयर बड्स, गुब्बारे, झंडे और कैंडी, सिगरेट के बट्स, फैलाया हुआ पौलिस्ट्रिन, पेय पदार्थों के लिए छोटे प्लास्टिक पैकेट (200 एमएल से कम) और सड़क के किनारे बैनर (100 माइक्रोन से कम) शामिल है. 

 आपको बता दें कि प्लास्टिक केमिकल बीपीए शरीर में विभिन्न स्त्रोतों से प्रवेश करता है जिसका हमें जरा भी पता नहीं चलता। एक अध्ययन के अनुसार 6 साल से बड़े 93 प्रतिशत अमेरिकन जनसंख्या प्लास्टिक केमिकल BPA ( कुछ किस्म का प्लास्टिक साफ और कठोर होती है, जिसे बीपीए बेस्ड प्लास्टिक कहते हैं, इसका इस्तेमाल पानी की बॉटल, खेल के सामान, सीडी और डीवीडी जैसी कई वस्तुओं में किया जाता है ) को अवशोषित कर लेती है। इसका मतलब है कि ऐसी प्लास्टिक को सड़ने में कई सौ साल लग जाएंगे और यह प्लास्टिक जहां भी रहेगी प्रदूषण फैलाती रहेगी।

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भारत सहित अन्य विकसित देशों में अकसर कचरा डम्प किया जाता है या फिर कई लोग अज्ञानतावश जला देते हैं या जमीन में दबा देते हैं. इससे यह सारी प्रक्रिया प्रदूषण के रूप में हमारे जीवन के लिए बड़े खतरे के रूप में सामने आती हैं। प्लास्टिक की चीजें, जितनी भी आप सोच सकते हैं, अक्सर ही पानी के स्त्रोतों में बहुत ज्यादा मात्रा में पड़ी मिलती हैं।

मुंबई में बारिश के दिनों में जब समुद्र में पानी बढ़ता है या फिर हाई टाइड आती है तो किनारों पर कई टन कचरा बह कर सामने आता है. जिसमें 90 फीसदी प्लास्टिक होती है। जानकारों के अनुसार अरबों पाउंड प्लास्टिक समुद्र में पड़ा हुआ है। 50 प्रतिशत प्लास्टिक की वस्तुएं हम सिर्फ एक बार काम में लेकर फेंक देते हैं। प्लास्टिक के उत्पादन में पूरे विश्व के कुल तेल का 8 प्रतिशत तेल खर्च हो जाता है।  प्लास्टिक को पूरी तरह से खत्म होने में 500 से 1,000 साल तक लगते हैं। प्लास्टिक के एक बेग में इसके वजन से 2,000 गुना तक सामान उठाने की क्षमता होती है।

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असलियत में छोटे से छोटा प्लास्टिक भले ही वह चॉकलेट का कवर ही क्यों न हो बहुत सावधानी से फेंका जाना चाहिए। क्योंकि प्लास्टिक को फेंकना और जलाना दोनों ही समान रूप से भारी नुकसान पहुंचाते हैं। प्लास्टिक जलाने पर भारी मात्रा में केमिकल उत्सर्जन होता है जो सांस लेने पर शरीर में प्रवेश कर श्वसन प्रक्रिया पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। इसे जमीन में फेंका जाए या गाड़ दिया जाए या पानी में फेंक दिया जाए, इसके हानिकारक प्रभाव कम नहीं होते। इसीलिए इतना सब होने पर भी कौन प्लास्टिक यूज करना चाहेगा।

हाँ प्लास्टिक से घिरी दुनिया को एक बार छोंड़ने पर हमे थोड़ी बहुत परेशानी होगी लेकिन जब आदत बन जाएगी तो सब सही हो जाएगा। यही नहीं अपने स्वास्थ्य और आने वाली पीढ़ी के लिए प्लास्टिक क्या लोग पता नहीं क्या-क्या छोड़ देते हैं, तो प्लास्टिक क्या चीज है।

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