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दो सालों से अंतिम संस्कार का इंतजार करतीं लावारिस लाशें

मुंबई के कई सरकारी अस्पतालों में ढेर सारी ऐसी लावारिश लाशें पड़ीं हैं जो कुछ दिन, कुछ हफ्ते या फिर कुछ महीने नहीं, बल्कि दो-दो साल पुरानी हैं। इन लाशों की न तो कोई पहचान हो पा रही हैं और ना ही इनके परिजनों की कोई खोज खबर मिल रहीं है।

दो सालों से अंतिम संस्कार का इंतजार करतीं लावारिस लाशें
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क्या आपको मालुम है बीएमसी और राज्य सरकार के अंतर्गत आने वाले अस्पताल लाशों के बोझ तले दबे हुए हैं। शायद आपको यकीन न हो, लेकिन मुंबई के कई सरकारी अस्पतालों में ढेर सारी ऐसी लावारिश लाशें पड़ीं हैं जो कुछ दिन, कुछ हफ्ते या फिर कुछ महीने नहीं, बल्कि दो-दो साल पुरानी हैं। इन लाशों की न तो कोई पहचान हो पा रही हैं और ना ही इनके परिजनों की कोई खोज खबर मिल रहीं है। ये लाशें दो सालों से अपने अंतिम संस्कार का इंतजार कर रहीं हैं।


हर दिन बढ़ रही है लावारिस लाशों की संख्या

आपको बता दें कि मुंबई में हर दिन अस्पतालों में 3 से 5 मरीजों की मौत हो जाती हैं। इनमे से कुछ ऐसे भी मरीज होते हैं जिनके आगे पीछे कोई नहीं होता, और ऐसी लाशें बिना किसी पहचान के सालों तक शवगृह में पड़ी रह जाती हैं। चौकानें वाली बात यह है कि इन लाशों को क्षमता से अधिक की संख्या में भी शवगृह में रखा जाता है, जिससे अस्पताल के डॉक्टरों और शवगृह के कर्मचारियों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।


शवगृह के कर्मचारियों की स्थिति बद से बदतर

केईएम अस्पताल के शवगृह में पिछले छह महीने से पोस्टमार्टम किये हुए 23 लावारिस लाशें पड़ीं हुईं हैं। इनकी पहचान नहीं होने से पुलिस कर्मियों के साथ साथ शवगृह में काम करने वाले कर्मचारी भी काफी तनाव में रहते हैं क्योंकि पुलिस जांच प्रक्रिया के चलते इन लाशों के अंतिम संस्कार की इजाजत भी नहीं देती है।


शवों से बीमार होने का खतरा

नाम न छापने की शर्त पर शवगृह के एक कर्मचारी ने मुंबई लाइव को बताया कि, "पिछले छह महीने से केईएम अस्पताल में 23 डेडबॉडीज पड़ी है, इससे हमें काफी परेशानी होती है। हमें यहां आकर इन डेडबॉडीज को देखना पड़ता है कि वे सड़ तो नहीं रहीं हैं? इन डेडबॉडीज से इंफेक्शन होने का भी खतरा हमेशा बना रहता है। इस बारे में कई बार संबंधित अधिकारीयों द्वारा पत्र व्यवहार भी किया गया लेकिन कोई इस तरफ ध्यान नहीं दे रहा है।"


सूचना के अभाव में परिजन भी होते हैं बेखबर

अस्पतालों के सूत्रों स यह भी पता चला अगर किसी की कोई दुर्घटना में मौत हो जाती है तो उसकी लाश को नजदीकी अस्पताल में भेज दिया जाता है। कई बार तो इन लाशों को उनके परिजन अंतिम संस्कार के लिए यहां से ले जाते हैं लेकिन इनमे से कई लाशें ऐसी भी होती हैं जिनका मुंबई में कोई नहीं होता। ये लोग बाहर से आए हुए होते हैं, बिना किसी सूचना या खबर के इनके परिजनों को भी कुछ पता नहीं होता लिहाजा ये लाशें अंतिम संस्कार के लिए ऐसे ही महीनों पड़ी रह जाती हैं।


2 सालों से परिजनों के इंतजार में 20 लाशें

कांदिवली के शताब्दी अस्पताल में पिछले 2 सालों से 20 लावारिस लाशें अपने परिजनों के इन्तजार में हैं। इन लाशों का पोस्टमार्टम करने के बाद ये लाशें यहीं शवगृह में रखी गयीं हैं। पुलिस आज तक इन लाशों के परिजनों का पता नहीं लगा सकी।


पिछले 2 सालों से 20 लावारिस लाशें अस्पताल के शवगृह में रखा गया है। इस संदर्भ में हमने बार बार पुलिस विभाग को पत्र लिख कर इस ओर ध्यान दिलाने की कोशिश की लेकिन उन्होंने कुछ कदम नहीं उठाया। इसका दुष्परिणाम उस समय दिखेगा जब कोई घटना घटित होगी और लाशों को रखने के लिए अस्पताल में जगह नहीं मिलेगी। अगर पुलिस अपना काम समय पर करती है तो यह सारी समस्या ही समाप्त हो जाएगी।

डॉ. प्रदीप आंग्रे, चिकित्सा अधिकारी, शताब्दी अस्पताल, कांदिवली


अस्पतालों में लावारिस डेडबॉडीज की संख्या

  • केईएम अस्पताल - 23 डेडबॉडी
  • सायन अस्पताल - 56 डेडबॉडी
  • कांदिवली शताब्दी अस्पताल - 20 डेडबॉडी

शवगृहों में शवों को रखने की क्षमता

  • केईएम अस्पताल – 36 कैबिनेट
  • सायन अस्पताल - 57 कैबिनेट
  • जे.जे. अस्पताल – 75 कैबिनेट
  • कूपर अस्पताल – 24 कैबिनेट
  • कांदिवली शताब्दी अस्पताल – 30 कैबिनेट
  • राजावाड़ी अस्पताल – 15 कैबिनेट

अन्य अस्पतालों में भी लाशों का जमावड़ा

इसी तरह से जे.जे अस्पताल में लगभग 750 शव पिछले एक साल से लावारिस अवस्था में हैं, जबकि कूपर और राजावाड़ी अस्पताल में भी 2 से 3 लाशें लावारिस अवस्था में हैं।


बीएमसी अस्पतालों में हर दिन कई लोग इलाज के लिए दाखिल होते हैं। इनमे से अगर किसी की मौत हो जाती है तो उसका पोस्टमार्टम किया जाता है। अगर किसी बॉडी की पहचान नहीं होती तो पुलिस आगे की प्रक्रिया के लिए उन लाशों को शवगृह में रखवा देती है।

डॉ. अविनाश सुपे, डीन, केईएम रुग्णालय


क्या कहता है नियम?

नियमानुसार अगर कोई लावारिस बॉडी अस्पताल में लाई जाती है या फिर किसी की दुर्घटना में मौत हो जाती है तो मेडिकल टेस्ट के बाद उसके सभी जांच जैसे डीएनए टेस्ट, फिंगर प्रिंट आदि ले लिया जाता है। इन सभी प्रक्रिया में दो हफ्ते का समय लगता है। उसके बाद भी अस्पताल में एक हफ्ते तक शव को इसीलिए रखा जाता है ताकि लाश पर कोई क्लेम कर सके। यानि लाश को अस्पताल में मात्र दो हफ्ते तक ही रखने का प्रावधान है। लेकिन यह नियम खुद ही पुलिस विभाग और स्वास्थ्य विभाग में इस तरह उलझा हुआ है कि लाश दो-दो सालों तक लावारिस बिना क्रिया कर्म के पड़ी रह जाती है।


पुलिस की मजबूरी

इस पूरे मामले में पुलिस की यह मज़बूरी है कि अगर कोई दुर्घटना का शिकार होता है या फिर कहीं कोई आपराधिक वारदात में मारा जाता है तो उसे भी अस्पताल में लाया जाता है। अगर बॉडी क्लेम करने कोई आया तो ठीक नहीं तो बॉडी तब तक पड़ी रहती है जब तक परिजनों की तलाश पूरी नहीं हो जाती। कई बार तो ऐसा भी हुआ है कि बॉडी के क्रियाकर्म के बाद परिजन आ धमकते हैं और बॉडी के लिए क्लेम करते हैं, उस समय पुलिस के लिए विकट समस्या खड़ी हो जाती है। जबकि कई बार तो जांच प्रक्रिया के चलते भी लाशें कई महीनों तक पड़ी रह जाती है।


कौन है जिम्मेदार?

इन शवों की स्थिति देख कर तो यही कही जा सकता है कि मरने के बाद भी इन्हे चैन नहीं हैं, यानि ये मरने के बाद भी तिल तिल कर मर रहे हैं। इनकी स्थिति का जिम्मेदार वास्तव में कौन है? पुलिस विभाग की लापरवाही या फिर स्वास्थ्य विभाग का अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ना? हमने अख़बारों में या फिर न्यूज चैनलों में भी आये दिन यह खबर पढ़ते या सुनते हैं कि लशों को चूहे खा रहे हैं। अगर ऐसी स्थिति रही तो यह काफी दयनीय और मानवता को तार तार कर देने वाली स्थिति है। इस बारे में कोई नियम लेकर प्रशासन को जल्द से जल्द इन लाशों का क्रिया कर्म कर इन्हे 'मोक्ष' दिलाना चाहिए। 

 

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