मुंबई को देश की आर्थिक राजधानी, मायानगरी, सपनों का शहर जाने क्या क्या नाम दिया गया है। लेकिन इसी शहर को एक और नाम दिया गया है और वह नाम है हादसों का शहर। मुंबई में हर साल सैकड़ों की मौत विभिन विभिन हादसों में होती है। इन हादसों में सड़क दुर्घटना, रेल दुर्घटना, आग लगना, इमारत का गिरना जैसे अनेक कारण शामिल होते हैं. बताया जाता है कि ट्रेन दुर्घटनाओं में सबसे अधिक मौते हैं, उसके बाद सड़क हादसे में, फिर जर्जर इमारतों के गिरने से भी मौतें होती है। मुंबई में एक बार फिर से इमारत के गिरने से 13 मौतें हुई है और 25 से अधिक लोग घायल हुए हैं। मरने वालों में महिलाएं और बच्चे अधिक हैं। यह हादसा 16 जुलाई को मुंबई के डोंगरी इलाके में घटित हुआ था।
6 साल में 2704 मौत
RTI से मिली एक जानकारी के अनुसार साल 2012 से जुलाई 2018 तक मुंबई में कुल 2704 इमारत गिरने की दुर्घटना हुई, जिसमे 234 लोगों की मौत हो गयी और लगभग 840 लोग जख्मी हुए हैं। डोंगरी हादसा कोई पहला मामला नहीं है, मुंबई में हर साल इमारत गिरती है और लोग असमय काल के गाल में समा जाते हैं।
आखिर इसका जिम्मेदार कौन है? यह किसकी विफलता है? इसे क्यों रोका नहीं जा रहा है? बताया जाता है कि डोंगरी में जो इमारत गिरी वह 100 साल पुरानी और जर्जर थी, तो समय रहते इसका पता क्यों नहीं लगाया गया? और समय रहते खाली क्यों नहीं करवाया गया? क्या इसी दिन का इंतजार प्रशासन कर रहा था?
इस हादसे के जिम्मेदार कौन?
मुंबई में लोगों को सस्ते घर उपलब्ध कराने वाली महाराष्ट्र हाउसिंग और एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी (MHADA) ने यह कह कर अपना पल्ला झाड़ लिया कि जो इमारत गिरी वह अवैध थी, और वह उपकर प्राप्त इमारत नहीं थी। इसीलिए ऐसी इमारतों की जिम्मेदारी म्हाडा की नहीं होती है। इसके बाद बृहनमुबंई नगर निगम (BMC) ने भी कहा कि इमारत 100 साल पुरानी थी और पुरानी इमारतों को रिपेयरिंग करने की जिम्मेदारी MHADA की होती है। इससे साफ़ है कि इस हादसे का जिम्मेदार कोई नहीं होना चाहता। ब्लेम गेम के इस खेल में मुख्य आरोपी बच कर निकल जाएगा और धीरे धीरे लोग इस हादसे को भूल जाएंगे। लेकिन फिर वही सवल कि जब यह इमारत अवैध थी तो इसे बनने से रोका क्यों नहीं गया? क्यों इसमें लोगों कि रहने दिया जा रहा था? अगर देखा जाएं तो BMC और MHADA दोनों ही इस हादसे के जिम्मेदार हैं। अगर ये दोनों एजेंसियां साथ मिलकर काम करतीं तो इन बेकसूर लोगों को मौत से बचाया जा सकता था।
सरकार और नीति दोनों जिम्मेदार
बीएमसी से जुड़े एक अधिकारी ने नाम नहीं छापने कि शर्त पर बताया कि डोंगरी में अभी भी कई ऐसी इमारतें हैं जो जर्जर हो चुकीं हैं और जिनके गिरने का खतरा मंडरा रहा है। लेकिन उसमें रहने वाले लोग अपना घर छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं। डोंगरी की ही तरह मुंबई में कई ऐसे इलाके हैं जहां स्थिति इसी तरह से बुरी है। लोग खतरनाक इमारतों में औरतों और छोटे छोटे बच्चों के साथ जान जोखिम में डाल कर रहते हैं। यहां सवाल यह उठता है कि आखिर लोग ऐसे इमारतों में रहते ही क्यों हैं? दरअसल इसके लिए सरकार और नीति जिम्मेदार है। पुनर्विकास के नाम पर लोगों को कहीं और भेज दिया जाता है जहां से उनके बच्चों का स्कूल काफी दूर होता है, और कोई महंगी जगह छोड़ कर सस्ती जगह क्यों जाना चाहेगा? यही नहीं सरकार और बिल्डर का नेक्सस ही ऐसा होता है कि कोई इन पर आसानी से विश्वास नहीं करता। एक बार बिल्डर घर खाली करवा लेता है तो उसे तत्काल तोड़ दिया जाता है इसके बाद टेनेन्ट घर पाने की आस में कई साल पड़े तक पड़े रहते हैं।
कब तक चलेगा सिलसिला?
यह खेल साल दर साल चलता रहता है। यही कारण है कि ऐसे हादसे हर साला होते हैं। प्रशासन मौके पर पहुंचकर राहत और बचाव कार्य करता है। हर बार की तरह राजनेता इस दुखद घटना पर शोक व्यक्त कर रहे हैं। पीड़ित परिवार के लिए कुछ आर्थिक सहायता का भी ऐलान होटा है, जांच के आश्वासन दिए जाते हैं, किसी एक अधिकारी को सस्पेंड कर दिया जाता है। धीर-धीरे सब कुछ सामान्य हो जाता है और फिर अगले हादसे का इंतजार होता है।