लोकल ट्रेन मुंबई की लाइफ लाइन है, लाखों की तादात में लोग हर दिन इससे यात्रा करते हैं। अगर मुंबई में एक दिन के लिए लोकल सेवा ठप हो जाए तो सारा कामकाज ही रुक जाएगा। 16 अप्रैल 1853 को पहली रेल मुंबई से ठाणे के बीच चलाई गई थी। 35 किमी की दूरी 45 मिनट में तय की गई थी।
मुंबई पहले 7 द्वीपों में बटा था, पर अंग्रेजों के हाथ में जाने के बाद मुंबई का कायापलट हुआ। अग्रेजों नें सफर को आसान बनाने और कनेक्टिविटी बढ़ाने के मकसद से जगह जगह रेलवे स्टेशन बनाए। मुंबई का जैसे जैसे विकास हुआ वैसे वैसे नई नई जगह निकलकर सामने आती गईं। चलो यह तो हुआ मुंबई के विकास का छोटा सा इतिहास, पर क्या आपको मालूम है कि मुंबई के रेलवे स्टेशनों के नाम कैसे पड़े? तो चलिए आज हम आपको बताते हैं। मुंबई के कुछ प्रमुख रेलवे स्टेशनों का इतिहास।
ब्रिटिश की महारानी विक्टोरिया के नाम पर छत्रपती शिवाजी महाराज टर्मिनस का नाम विक्टोरिया टर्मिनस पड़ा। यह स्टेशन विक्टोरिया के 50वें जन्मदिन पर बनकर तैयार हुआ था। इस टर्मिनस के निर्माण में 10 साल का वक्त लगा था। जिसके लिए 16 लाख 35 हजार 562 रुपए का खर्च आया था। स्वतंत्रता मिलने के कुछ सालों बाद वीटी का नाम बदलकर छत्रपती शिवाजी महाराज टर्मिनस किया गया।
अंग्रेजों ने 1857 में भायखला स्टेशन का निर्माण किया था। भायखला की यह जहग एक समय पर खलिहान हुआ करती थी। इसके मालिक भाया थे। भाया का खलिहान होने के चलते इसका नाम भायखला पड़ा।
करी रोड स्टेशन का नाम एजेंट सी. करी के नाम से पड़ा था। उस समय एजेंट सी. भारत में जीआयपी, बीबीसीआय जैसी रेलवे कंपनियों की देखरेख किया करते थे।
18वीं शताब्दी में अंग्रेजों के किला (आज का फोर्ट भाग) में सेंट थॉमस चर्च स्थित था। जो पूरी तरह से हरियाली से सराबोर था साथ ही बंदरागाह के आस पास कपास के गठ्ठे आते थे। इसलिए ही इसका नाम कॉटन ग्रीन रखा गया।
यहां पर एक किला था जिसके तीन दरवाजे थे। जिसका एक दरवाजा सेंट थॉमस कॅथड्रल चर्च की तरफ खुलता था। इसके चलते इस स्टेशन का नाम चर्चगटे पड़ा।
1835 से 1838 के दौरान सर रॉबर्ट ग्रैंट मुंबई के गवर्नर थे। यह भाग वीरान था, यहां कोई रहता भी नहीं था। इस भाग में सड़क बनाकर गिरगांव से जोड़ने का काम गवर्नर ग्रैंट ने किया इसलिए ही इसका नाम ग्रांट रोड पड़ा।
गिरगांव का यह भाग पहले चारागाह हुआ करता था। यहां पर मुफ्त में लोग अपने जानवरों को घास चराने के लिए लेकर आते थे। और जब यहां पर स्टेशन बना तो उसे चर्नी रोड नाम दिया गया। क्योंकि मराठी लोग चाराहगाह को चरन की जगह बोलते हैं।
यहां पर परली के पेड़ बहुत बड़ी संख्या में थे। इसलिए जब यहां पर स्टेशन बना तो उसे परेल नाम दिया गया।
दादर रेलवे के दो हिस्से थे, स्टेशन पर पहुंचने के लिए यात्रियों के लिए एक ब्रिज बनाया गया। जिसे दादर नाम दिया गया। दादर शब्द 1831 में प्रकाशित हुई मोल्सवर्थ के मराठी इंग्लिश शब्दकोष में मिला। जिसका अंग्रेजी में अर्थ था 'ब्रिज'।
पहले के वक्त में इस परिसर में बस्ती और छोटे झोपड़े थे। यहां पर कोली (मछुआरा समाज) रहता था। विले मतलब गांव (बस्ती) पावडे पुर्तगाली शब्द है, जिसका अर्थ झोपड़ी है। इसलिए इसका नाम विले पावडे पड़ा। लेकिन गलत उच्चारण की वजह से बाद में इसका नाम विले पार्ले पड़ गया।
यहां पर एक घाट था जिसके ऊपर गांव बसा था। इसलिए इसका नाम घाट के ऊपर से घाटकोपर बन गया। इसका मतलब है कि गलत उच्चारण की वजह से इसका नाम भी घाट के ऊपर से घाटकोपर पड़ा।