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...इन्हें मिलेगा आजाद बचपन ?


...इन्हें मिलेगा आजाद बचपन ?
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हर इंसान को अपने बचपन से प्यार होता है। यही वह वक्त होता है जब इंसान को तनाव छू भी नहीं पाता। उसे जो अच्छा लगता है वह करता है और अपनी दुनियां में मस्त रहता है। पर क्या आपको लगता है कि यह सभी बच्चों के हक में आता है? बहुत से बच्चों से उनका बचपन जल्द ही छीन लिया जाता है। उन्हें चाय की टपरी, राशन की दुकान, ढाबा, यहां तक की फैक्ट्री में काम करने के लिए लगा दिया जाता है। बचपन उनका हक है, पर उन्हें इस हक से वंचित कर दिया जाता है। उनकी नन्ही मुस्कान को गुमनामी में तब्दील कर दिया जाता है। 14 साल की उम्र से कम के बच्चों से काम कराना कानून अपराध है। फिर भी यह हो रहा है और कहीं कहीं बड़ी तादात में हो रहा है।  

एक प्राइवेट सर्वे के मुताबिक उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना की 610,208 दुकानों में 2,648 बालक मजदूरी करते मिले, जिनकी उम्र 14 साल से कम थी। पर मुंबई के आंकड़े चौकाने वाले मिले। 3, 16,693 दुकानों का सर्वे करने पर 700 ही बाल मजदूर मिले। इससे यह स्प्ष्ट होता है कि मुंबई में बाल मजदूरों का आंकड़ा कम हुआ है।

आज  अंतर्राष्ट्रीय बाल मजदूरी निषेध दिवस है इस मौके पर हमने मुंबई के बहुत सी चाय की टपरी, राशन की दुकान,  कपड़ों की दुकान, भोजनालय, बीच और सिग्नल्स का मुआयना किया। हमने जानना चाहा कि मुंबई में बच्चों की क्या हालत है?  क्या ये भी बाल मजदूरी के शिकार हैं?  

दूसरे की दुकानों में काम करने वाले बालकों की संख्या में निश्चित रूप से कमी आई है। पर इसके उलट बालकों को खुद उनके घर खुद के व्यसाय में काम में लगा रहे हैं। या फिर वे  गिरगांव, जुहू जैसी बीच में पानी की बॉटल या फूल बेचते नजर आते हैं। इसके अलवा सिग्नल्स पर भी छोटे छोटे खलोने या गुलदस्ता बेचते नजर आते हैं।

नोबल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी का कहना है, लोगों के मन में यह भ्रांति है कि गरीबी की वजह से बाल मजदूरी होती है। कहा जाता है कि देश में इतनी गरीबी है कि गरीब का बच्चा काम नहीं करेगा तो भूखा मर जाएगा। लेकिन हकीकत इसके उलट है। दरअसल बालमजदूरी की वजह से गरीबी है।

दुकानदार बच्चों से 15-20 घंटे काम कराते हैं, बदले में बहुत ही कम पैसे देते हैं। यही वजह है कि ये दुकानदार बच्चों को काम पर रखना चाहते हैं। अगर युवक काम करता है तो कंपनी या दुकानदार को पैसा भी अधिक देना पड़ता और वे 8 घंटे ही काम करते हैं। 8 घंटे से अधिक काम करते हैं तो ओवर टाइम का अलग से भुगतान करना पड़ता है। अगर बच्चे काम नहीं करते तो घर के अन्य लोगों और युवाओं को रोजगार मिलेंगे साथ ही पैसा भी अधिक मिलेगा और जब बच्चा पढ़ लिख कर तैयार हो जाएगा तो उसे भी रोजगार मिलेगा। 

 

निश्चित रूप से मुंबई में बाल मजदूरी का निषेध शुरु हो गया है। अव वक्त है कि जो लोग अपने बच्चों को खुद के व्यवसाय में लगाते हैं, वे बच्चों को पढ़ाएं लिखाएं ताकि उनका भविष्य उज्जवल बन सके।

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