शिवसेना प्रमुख बालासाहेब केशव ठाकरे का आज 92वां जन्मदिन है। प्यार से लोग उन्हे बालासाहेब, हिन्दूहृद्य सम्राट जैसे नामों से भी पुकारते थे। बालासाहेब केशव ठाकरे का व्यक्तित्व हमेशा से ही अलग रहा है। वो जिसे भी अपना दोस्त मानते थे उसकी खुल कर तारीफ करते थे और जिसे अपना दुश्मन उसकी बुराई भी सरेआम करते थे। वह बड़ी ही बेबाक तरिके से अपनी राय किसी भी मुद्दे पर रखते थे। फिर चाहे वो इमरजेंसी हो या फिर बाबरी मस्जिद पर। बालासाहेब के जवाब हमेशा सटीक रहते थे। हालांकी समय के साथ साथ शिवसेना ने अपनी राजनीति भी बदली है। कभी गुजरातियों और उत्तर भारतीयों का विरोध करनेवाली शिवसेना औज खुगद गुजरात और उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ रही है। इसतना ही बल्की उत्तर प्रदेश में तो शिवसेना का एक प्रत्याशी जीतकर भी आया है।
पुणे में हुआ जन्म
बाल ठाकरे का जन्म आज ही के दिन साल 1926 को पुणे में हुआ था। बाला साहेब के पिता पिता केशव चान्द्रसेनीय कायस्थ प्रभू परिवार से थे। वे एक प्रगतिशील सामाजिक कार्यकर्ता व लेखक थे । बालासाहेब का विवाह मीनाताई ठाकरे से हुआ। उनसे उनके तीन बेटे हुए-बिन्दुमाधव, जयदेव और उद्धव ठाकरे। उनकी पत्नी मीना और सबसे बड़े पुत्र बिन्दुमाधव का 1996 में निधन हो गया।
'फ्री प्रेस जर्नल' से की करियर की शुरुआत
उन्होंने अपने करियर की शुरुआत मुंबई में न्यूज पेपर 'फ्री प्रेस जर्नल' में कार्टूनिस्ट के तौर पर की थी। हालांकि, 60 के दशक में उनके कार्टून 'टाइम्स ऑफ़ इंडिया' के संडे एडिशन में भी छपे। 1960 में उन्होंने यह नौकरी छोड़ दी और अपना खुद का कार्टून वीकली 'मार्मिक' शुरू किया। हालांकी उन्होने नौकरी करना ज्यादा समय तक पसंद नहीं किया और अपने पिता केशव सीताराम ठाकरे के मार्ग पर चल पड़े।
1966 में बाल ठाकरे ने 'शिवसेना' का गठन
बालासाहेब ठाकरे अपने पिता की कार्यशैली से काफी प्रभावित थे। उस समय भाषा के आधार पर महाराष्ट्र को एक अलग राज्य बनाने वाले आन्दोलन 'संयुक्त महाराष्ट्र मूवमेंट' के अग्रणी नेता केशव सीताराम ठाकरे बेहद लोकप्रिय नेता थे। बालासाहेब ठाकरे ने भी अपने पिता के सोच को आगे बढ़ाया। शिवसेना के गठन के बाद उन्होने महाराष्ट्र और मुंबई में गुजरातियों, मारवाड़ियों और उत्तर भारतीयों के बढ़ते प्रभाव के खिलाफ जमकर आंदोलन चलाया। अपनी विचारधारा को लोगों तक पहुंचाने के लिए उन्होंने 1989 में 'सामना' नामक अखबार की शुरुआत की।
गुजराती, उत्तर भारतीय का किया विरोध
1960 और 1970 के दशक में महाराष्ट्र में “लुंगी हटाओ, पुंगी बचाओ” अभियान चलाया गया। बालासाहेब ठाकरे ने मुंबई और महाराष्ट्र में उत्तर भारतीयों के खिलाफ जमकर आंदोलन किया। उन्होने तो एक बार ये नारा भी दिया था की एक बिहारी सौ बीमारी। शिवसेना की एक पहचान यह भी है की वो उत्तर भारतीयों को पसंद नहीं करती है।
उत्तर प्रदेश से शिवसेना ने लड़ा चुनाव
शिवसेना ने समय के साथ साथ अपनी राजनीति भी बदली है। कभी उत्तर भारतीयों का विरोध करनेवाली शिवसेना ना हालही में उत्तर प्रदेश के नियाक चुनाव में अपने उम्मीदवार खड़े किये और एक जगह पर शिवसेना ने जीत भी दर्ज की ।
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एक साल में मिले दो बड़े सदमें
1996 में बाल ठाकरे को दो बड़े बुरे दौर को देखना पड़ा। 20 अप्रैल 1996 को उनके पुत्र बिंदु माधव की सड़क दुर्घटना में मौत हो गई जबकि, इसी साल सितम्बर में उनकी पत्नी मीनाताई का हार्ट अटैक के बाद निधन हो गया।
6 साल तक वोट डालने पर लगा रहा प्रतिबंध
बालासाहेब ठाकरे उस समय महाराष्ट्र के साथ साथ भारत में तेजी से उभरते हुए नेता था, लोग उनके भाषणों को सुनने के लिए दुर दुर से आते थे। हालांकी कई बार उनके बोलने की शैली और भाषण करने के अंदाज ने उनको मुसीबत में भी डाला नफरत और डर की राजनीति करने के कारण चुनाव आयोग ने बाल ठाकरे के वोट डालने और चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया था। चुनाव आयोग ने 28 जुलाई 1999 को बालासाहेब ठाकरे को 6 साल तक चुनावों से दूर रहने के लिए प्रतिबंधित कर दिया था। बालासाहेब ठाकरे 2005 में ही प्रतिबंध हटने के बाद वोट डाल सके। हालांकी उन्होने अपने पुरे जीवन में कभी चुनाव नहीं लड़ा।
राष्ट्रपति तक पर साधा था निशाना
मोहम्मद अफजल की फांसी की सजा पर कोई फैसला ना सुनाने के लिए बाल ठाकरे ने तत्कालीन राष्ट्रपति ए.पी.जे. अबुल कलाम पर भी अभद्र टिप्पणियां की थी। जिसके बाद राजनीति गलियारे में इसे लेकर काफी हो हल्ला हुआ था। बावजूद इसके बालासाहेब ठाकरे अपनी जुंबान पर टिके रहे।
कभी किसी से मिलने नही गए
बालासाहेब ठाकरे की एक खास बात ये भी है की वह कभी किसी से मिलने के लिए नहीं गए। जिसे मिलना है वह खुद उनके घर आता था। भारत की हर बड़ी हस्ती उनसे मिलने के लिए उनके मुंबई के घर मातोश्री में जाती थी। राजनेता से लेकर फइल्मी हस्ती और बड़े बड़े उद्योग घरानों के लोग भी बालासाहेब से मिलने के लिए मातोश्री जाते थे।
चाँदी के सिहांसन पर बैठने के शौकीन
बाल ठाकरे के दरबार में विरोधी भी हाजरी लगाते थे. ठाकरे खुलेआम धमकी देते थे। बालासाहेब ठाकरे चाँदी के सिहांसन पर बैठने के शौकीन थे। बालासाहेब के देहांत के बाद भी इस चांदी के सिंहासन पर कोई नहीं बैठता है।
सिगार, वाइट वाइन का शौक
बाल ठाकरे के कुछ स्पेशल शौक थे। सिगार, वाइट वाइन etc. ज्यादातर फोटो या इंटरव्यू में उनके हाथ में पाइप या सिगार होती है. पाइप तो 1995 में दिल के दौरे के बाद छोड़ दी लेकिन सिगार तो मौत के साथ ही छूटी।
21 तोपों की मिली सलामी
बाल साहेब ठाकरे ना तो मुख्यमंत्री थे और ना सांसद. फिर भी उन्हें मरने के बाद ‘21 तोपों की सलामी‘ दी गई. जो राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री को मिलती है।
उत्तर प्रदेश से शिवसेना ने लड़ा चुनाव
शिवसेना ने समय के साथ साथ अपनी राजनीति भी बदली है। कभी उत्तर भारतीयों का विरोध करनेवाली शिवसेना ना हालही में उत्तर प्रदेश के नियाक चुनाव में अपने उम्मीदवार खड़े किये और एक जगह पर शिवसेना ने जीत भी दर्ज की ।
उत्तर भारतीयों से बढ़ो मोह
शिवसेना अब धीरे धीरे अपनी राजनीति में परिवर्तन करती जा रही है। शिवसेना अब युवाओं में अपनी पकड़ को फिर से मजबूत करना चाहती है। शिवसेना में आज उत्तर भारतीयों के लिए मोह बढ़ता जा रहा है। शिवसेना के सांसद राहुल शेवाले ने कहा कि शिवसेना मुंबई में रहने वाले उत्तर भारतीयों पर विशेष ध्यान दे रही है। अधिक से अधिक उत्तर भारतीयों को जोड़ने के लिए शिवसेना जल्द ही उत्तर भारतियों की एक विंग तैयार कर उसमें नियुक्ति करने वाली है।
उत्तर भारतीय कलाकरा निभाएंगे बालासाहेब ठाकरे का किरदार
बालासाहेब की जीवनी पर बननेवाली फिल्म में बालासाहेब का किरदार भी एक उत्तर भारतीय अभिनेता ही निभाएंगे। बॉलीवुड अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दिक्की इस फिल्म में बालासाहेब ठाकरे का किरदार निभाएंगे।