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पालघर पर फिर से बीजेपी ने दर्ज की जीत, ये रहे जीत के कारण!

पालघर लोकसभा सीट पर शिवसेना ने साल 1989 से अपना कोई उम्मीदवार नहीं उतारा था।

पालघर पर फिर से बीजेपी ने दर्ज की जीत, ये रहे जीत के कारण!
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सांसद चिंतामणी वांगा के निधन के बाद महाराष्ट्र के पालघर लोकसभा सीट पर फिर से चुनाव कराए गए। 28 मई को पालघर लोकसभा में मतदान किया गया और 31 मई को वोटों की गिनती। पालघर लोकसभा पर बीजेपी ने एक बार फिर अपनी जीत का परचम लहराया। शिवसेना को कड़ी टक्कर देते हुए बीजेपी उम्मीदवार ने राजेंद्र गावित ने अपने ही सांसद रह चुके चिंतामणी के बेटे और शिवसेना के उम्मीदवार श्रीनिवास वांगा को हराया। आपको बता दे की पालघर लोकसभा से बीजेपी सांसद चिंतामणी वांगा का निधन हो गया था, जिसके बाद चिंतामणी के बेटे श्रीनिवास वांगा ने ये कहते हुए शिवसेना का दामन थामा की बीजेपी उन्हे भूल गई है, जिसके बाद शिवसेना ने पालघर से उन्हे सांसद के लिए उम्मीदवार बनाया।


चिंतामणि के बेटे के शिवसेना में जाने के बाद भी बीजेपी ने इस सीट पर कांग्रेस से बीजेपी में आए राजेंद्र गावित को उम्मीदवार बनाया और जमकर प्रचार किया। बीजेपी के लिए ये सीट कितनी अहम थी, इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है की उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पालघर में चुनाव के लिए बुलाया गया था।

बीजेपी के जीत के कारण
दरअसल इस चुनाव को जीतने के लिए बीजेपी ने अपना पूरा जोर लगा दिया था। लेकिन इसके अलावा कुछ ऐसे मुख्य कारण है जिसके कारण इस चुनाव में बीजेपी को जीतने में मदद मिली।

1) शिवसेना की कमजोर उपस्थिती - दरअसल पालघर लोकसभा सीट पर शिवसेना ने साल 1989 से अपना कोई उम्मीदवार नहीं उतारा है। बीजेपी के साथ गठबंधन होने के बाद से इस सीट पर लगातार बीजेपी और शिवसेना का संगठित उम्मीदवार ही सांसद का चुनाव लड़ता आ रहा है, जिसके कारण शिवसेना ने खुद कभी इस सीट पर सांसद का चुनाव नहीं लड़ा, और गठबंधन होने के नाते बीजेपी ने इस इलाके में अपनी पैठ बना ली।


2) बाकी पार्टियों का साथ ना आना- दरअसल इस चुनाव में बीजेपी और शिवसेना के अलावा एक पार्टी और भी है जिसने अपना छाप इस चुनाव में छोड़ा, बहुजन विकास आघाड़ी। हिंतेद्र ठाकूर की अध्यक्षता वाली बहुजन विकास आघाड़ी ने भी पालघर लोकसभा चुनाव में 2 लाख से ज्यादा वोट हासिल किये, अगर बहुजन विकास आघाड़ी को कांग्रेस और माकपा का साथ मिलता तो इस इलाके में ना शायद बहुजन विकास आघाड़ी एक बार फिर अपना सांसद बना पाती। आपको बता दे की साल 2009 से 2014 तक बहुजन विकास आघाड़ी के बलिराम जाधव ही यहां के सांसद थे।

3) योगी आदित्यनाथ को चुनाव प्रचार में उतारना- बीजेपी ने इस संसदीय क्षेत्र में रहनेवाले कई उत्तर भारतीयों को अपनी ओर खीचने के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ साथ लगभग उत्तर प्रदेश के आधा दर्जन विधायको को चुनाव प्रचार में उतारा। दरअसल वसई, बोईसर, नालासोपारा जैसे इलाको में उत्तर भारतीय मतदाता काफी ज्यादा संख्या में है जिन्हे अपनी ओर करने के लिए बीजेपी ने पूरी कोशिश की।


4) विवेक पंडित का समर्थन- राजनीतिक गलियारों में हितेंद्र ठाकूर के दुश्मन माने जानेवाले और वसई विरार से पूर्व विधायक विवेक पंडित ने भी अपना समर्थन बीजेपी को दिया। विवेक पंडित को वसई-विरार में रहनेवाले काफी लोगों का समर्थन मिला और वो 50 हजार से एक लाख वोटों तक को प्रभावित करने की ताकत रखते है। जाहीर सी बात ही विवके पंडित के समर्थन से बीजेपी को कुछ तो फायदा हुआ होगा।


5) बीजेपी जीती, लेकिन वोट घटे- जहां साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी के उम्मीदवार चिंतामणी वांगा ने लगभग 2.4 लाख के आसपास वोटो से जीत दर्ज की थी तो वही इस बार यह आकड़ा सिर्फ 30 हजार के आसपास आकर अटक गया। जिससे ये बात तो साफ होती है की अगर बीजेपी ने इस चुनाव को जरा भी हल्के में लिया होता तो शायद आज चुनाव के रिजल्ट कुछ और ही होते।

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