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शरद पवार, अजित पवार सहित अन्य को बैंक घोटाले में मिली क्लीन चिट, ED करेगी कोर्ट का रुख

महाराष्ट्र स्टेट को-ऑपरेटिव बैंक (MSC) में कथित रूप से करोड़ रुपये के ऋण वितरण घोटाले के सिलसिले में MRA पुलिस स्टेशन में अजीत पवार, विजय सिंह मोहिते-पाटिल, आनंदराव अडसूल, शिवाजीराव नलवाडे और अन्य के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था।

शरद पवार, अजित पवार सहित अन्य को बैंक घोटाले में मिली क्लीन चिट, ED करेगी कोर्ट का रुख
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पहले सिंचाई घोटाला (irrigation curruption) और अब महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक घोटाले (maharashtra state co-operative bank) में एसीबी (anti curruption bureau) द्वारा एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार (sharad pawar) और उप मुख्यमंत्री अजीत पवार (ajit pawar) सहित 69 लोगों को क्लीन चिट मिलने के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) अब कोर्ट पहुंच गई है।

सितंबर 2019 में ED ने बैंक घोटाले के संबंध में अजीत पवार और अन्य नेताओं के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग (money laundering) का मामला दर्ज किया था। ईडी ने इस कथित घोटाले मामले में IPC की कुल नौ धाराओं के तहत मामला दर्ज किया था। इसमें भ्रष्टाचार और सख्ती वसूली जैसी धारा भी शामिल हैं।

साथ ही शरद पवार का नाम भी संदिग्ध के रूप में शामिल किया गया था। अजीत पवार के बाद, शरद पवार को भी खुद इस मामले में पूछताछ के लिए ED के बैलार्ड पियर ऑफिस में बुलाया गया था ,उस समय इसे लेकर राज्य में काफी खलबली भी मच गई थी। तब से, ईडी ने इस मामले में किसी भी बड़े नेेता से पूछताछ नहीं की है और जांच भी ठंडे बस्ते में चली गई। अब जब सभी नेताओं को इस मामले में क्लीन चिट दे दी गई है तो एक बार फिर से ED सक्रिय हो गई है।

लेकिन मुंबई पुलिस (mumbai police) ने सभी नेताओं को क्लीन चिट देने के साथ संकेत दिए हैं कि ईडी द्वारा जांच को फिर से शुरू किया जा रहा है।

महाराष्ट्र स्टेट को-ऑपरेटिव बैंक (MSC) में कथित रूप से करोड़ रुपये के ऋण वितरण घोटाले के सिलसिले में MRA पुलिस स्टेशन में अजीत पवार, विजय सिंह मोहिते-पाटिल, आनंदराव अडसूल, शिवाजीराव नलवाडे और अन्य के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था। यह मामला उच्च न्यायालय के आदेश के बाद दर्ज किया गया था।

महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक को महाराष्ट्र के शीर्षतम बैंक के रूप में जाना जाता है। बैंक में लोन वितरण को लेकर 25,000 करोड़ रुपये का घोटाला सामने आया था। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने तब बैंक के निदेशक मंडल को बर्खास्त कर दिया था और मामले की जांच के आदेश दिए थे।

इस मामले में नाबार्ड (namard), सहकारिता कमिश्नर, कैग (CAG) की रिपोर्ट के बावजूद केस नहीं दर्ज किया गया। इसके बाद आरटीआई कार्यकर्ता सुरिंदर अरोड़ा (RTI activist surinder arora) ने इस बाबत कोर्ट में याचिका दायर किया और कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए केस दर्ज करने का आदेश पारित किया था।

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