शिवसेना ने अपने मुखपत्र 'सामना' के संपादकीय में सवाल उठाते हुए लिखा है कि, अगर राम मंदिर मुद्दा मध्यस्थता से हल हो सकता था तो यह विवाद 25 सालों से अटका नहीं होता और सैकड़ों लोगों को अपनी जान क्यों गंवानी पड़ती?
शिवसेना ने राम मंदिर बनाए जाने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा तीन सदस्यीय समिति का गठन किये जाने पर सवाल उठाया है। शिवसेना का कहना है कि राम जन्मभूमि एक भावनात्मक मुद्दा है और इसे मध्यस्थता के जरिए हल नहीं किया जा सकता बल्कि इस पर सरकार को अध्यादेश लाना चाहिए और राम मंदिर का निर्माण शुरू करना चाहिए। शिवसेना ने तीनो मध्यस्थों पर राम मंदिर मुद्दे को हल करने को लेकर आशंका भी जताई।
शिवसेना ने अपने मुखपत्र 'सामना' के संपादकीय में सवाल उठाते हुए लिखा है कि, अगर राम मंदिर मुद्दा मध्यस्थता से हल हो सकता था तो यह विवाद 25 सालों से अटका नहीं होता और सैकड़ों लोगों को अपनी जान क्यों गंवानी पड़ती?
'सामना' ने संदेह जताते हुए आगे लिखा है कि, देश के तमाम नेताओं सहित सुप्रीम कोर्ट भी इस मामले में कुछ नहीं कर पाएं तो क्या अब मध्यस्थ ऐसा कर पाएंगे? इतने सालों में विरोधी पक्ष मध्यस्थता के लिये तैयार नहीं थे तो अब सुप्रीम कोर्ट ऐसा क्यों कर रहा है? संपादकीय में आगे लिखा है कि, मंदिर का मुद्दा केवल जमीन विवाद का मुद्दा नहीं है बल्कि यह लोगों के लिए एक भावनात्मक मुद्दा है।
आपको बता दें कि राम मंदिर मुद्दा सुलझ जाए इसीलिए शुक्रवार को न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एफएमआई कलीफुल्ला की अध्यक्षता में एक तीन सदस्यीय समिति का गठन किया है, जिसमें कलीफुल्ला सहित आध्यात्मिक गुरु और ऑर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन के संस्थापक श्री श्री रविशंकर और वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीराम पांचू भी शामिल हैं।
शिवसेना ने राम मंदिर बनाए जाने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा तीन सदस्यीय समिति का गठन किये जाने पर सवाल उठाया है। शिवसेना का कहना है कि राम जन्मभूमि एक भावनात्मक मुद्दा है और इसे मध्यस्थता के जरिए हल नहीं किया जा सकता बल्कि इस पर सरकार को अध्यादेश लाना चाहिए और राम मंदिर का निर्माण शुरू करना चाहिए। शिवसेना ने तीनो मध्यस्थों पर राम मंदिर मुद्दे को हल करने को लेकर आशंका भी जताई।
शिवसेना ने अपने मुखपत्र 'सामना' के संपादकीय में सवाल उठाते हुए लिखा है कि, अगर राम मंदिर मुद्दा मध्यस्थता से हल हो सकता था तो यह विवाद 25 सालों से अटका नहीं होता और सैकड़ों लोगों को अपनी जान क्यों गंवानी पड़ती?
'सामना' ने संदेह जताते हुए आगे लिखा है कि, देश के तमाम नेताओं सहित सुप्रीम कोर्ट भी इस मामले में कुछ नहीं कर पाएं तो क्या अब मध्यस्थ ऐसा कर पाएंगे? इतने सालों में विरोधी पक्ष मध्यस्थता के लिये तैयार नहीं थे तो अब सुप्रीम कोर्ट ऐसा क्यों कर रहा है? संपादकीय में आगे लिखा है कि, मंदिर का मुद्दा केवल जमीन विवाद का मुद्दा नहीं है बल्कि यह लोगों के लिए एक भावनात्मक मुद्दा है।
आपको बता दें कि राम मंदिर मुद्दा सुलझ जाए इसीलिए शुक्रवार को न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एफएमआई कलीफुल्ला की अध्यक्षता में एक तीन सदस्यीय समिति का गठन किया है, जिसमें कलीफुल्ला सहित आध्यात्मिक गुरु और ऑर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन के संस्थापक श्री श्री रविशंकर और वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीराम पांचू भी शामिल हैं।