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प्रतिद्वंदियों के भी मन को 'हर' लेते थे ऐसे थे मनोहर


प्रतिद्वंदियों के भी मन को 'हर' लेते थे ऐसे थे मनोहर
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दिल का सूना साज तराना ढूंढ़ेंगा, मुझको मेरे बाद जमाना ढूंढेगा..... किसी और नेता के लिए तो नहीं लेकिन पर्रिकर जी के लिए यह लाइन लिखने का मन करता है। सही मायनों में मनोहर पर्रिकर ऐसे इंसान थे जिन्हे जमाना याद करेगा। लंबे समय से अग्नाशय में कैंसर से जूझने के कारण आखिकार रविवार 17 मार्च को 63 साल की उम्र में उनका निधन हो गया। गोवा के चार बार मुख्यमंत्री या फिर भारत के रक्षा मंत्री के इतर उन्हें एक ऐसे इंसान के रूप में याद किया जायेगा जो सादगी और ईमानदारी की मिसाल थे। इस चीज को  दुनिया ने उस समय देखा जब वे नाक में ड्रिप लगा कर बेहद ही कमजोर स्थिति में गोवा का बजट पेश कर रहे थे। बताया जाता है कि डॉक्टरों के मना करने के बाद भी खासकर इसी काम के लिए वे अमेरिका से गोवा आये थे। उन्हें सदन में 2 लोगों ने सहारा देकर लाया गया था, यह देख सत्ता पक्ष ही नहीं विपक्ष ने भी खड़े होकर उनका अभिवादन किया था। बजट पेश करने से पहले उन्होंने कहा, हाउज द जोश...सभी ने मिल कर कहा हाई सर...इसके बाद उन्होंने बजट पढ़ना शुरू किया।

कोई ऐसे ही मनोहर पर्रिकर नहीं बनता, उसके लिए एक ईमानदार छवि, काम के प्रति निष्ठा, लगन एवं समर्पण का भाव रखने वाला, सादा जीवन उच्च विचार जिनके जीवन का भाव हो साथ ही साथ कठिन से कठिन परिस्थितियों में सख्त निर्णय लेने की क्षमता हो जैसे तमाम गुण होने चाहिए। इस शो-ऑफ वाली दुनिया में बहुत कम ऐसे मुख्यमंत्री होंगे जो स्कूटर से चलते थे, कहीं भी रुक कर चाय पीने लगते या फिर सड़क किनारे बिक रहे सब्जी खरीदने लगते। एक बार किसी ने उन्हें इसका कारण पूछा तो उन्होंने बड़ी ही विनम्रता से कहा, कि वे ऐसा करके लोगों के दुःख सुख का पता भी करते हैं।

एक साधारण परिवार परिवार में 13 दिसंबर 1955 को जन्मे पर्रिकर ने शुरू में संघ के प्रचारक के रूप में अपना राजनीतिक प्रवास आरंभ किया था। उन्होंने IIT-BOMBAY से इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद भी संघ के लिए काम जारी रखा। मनोहर पर्रिकर की गोवा में ही नहीं पूरे देश में छवि एक सीधे सादे, सौम्य और मृदुभाषी शख्स की रही। उनका 'औरा' ही ऐसा था कि राजनीति जीवन में उनके प्रतिद्वंद्वी भी उनकी बेदाग ईमानदार छवि के कायल रहे। चार बार गोवा के मुख्यमंत्री के रूप में काम किया साथ ही नरेंद्र मोदी सर्कार में रक्षा मंत्री के तौर पर भी तीन वर्ष सेवाएं दीं। जब-जब गोवा बीजेपी पर संकट आन पड़ता, अंधेरे में मोमबत्ती की तरह उन्हें ही याद किया जाता और वे बखूबी अपनी कुशलता का परिचय देते हुए संकट को दूर करते।

ऐसा भी नहीं था कि उनकी बीमारी के बाद उनकी पार्टी के लोग उनसे किसी बीमार व्यक्ति के जैसा सलूक कर रहे थे। बल्कि उसी बीमारी में ही उन्होंने रक्षा मंत्री रहते चाहे वन रैंक-वन पैंशन मामला हो, राफेल समझौता हो या फिर म्यांमार और पाकिस्तान में किया गया सर्जिकल स्ट्राइक हो, हर मौके पर उन्होंने बड़ी की कुशलता और सूझबूझ के साथ अपने काम को अंजाम दिया। यह उनकी राजनीतिक रण का परिचय ही था कि 40 सदस्यों वाली गोवा बीजेपी विधानसभा में बीजेपी के मात्र 12 विधायकों से ही बीजेपी की सरकार बनाई।

उनका इलाज करने वाले उनके डॉक्टर बताते हैं कि वे अपनी बीमारी को लेकर कभी भी चिंतित या फिर डरे हुए नहीं दिखे, बल्कि अपने छोटे से स्टाफ के सहारे वे अस्पताल में भी काम किया करते थे। वरन जब अमेरिका में भी अपना इलाज करा रहे थे तब भी वे काम करते थे। सूत्रों के मुताबिक जब उन्होने अंतिम सांस ली उसके एक घंटा पहले तक वे काम में बिजी थे। उनके जाने से बीजेपी ने ही नहीं बल्कि देश ने एक ऐसा नेता खो दिया जिसके खाली स्थान की पूर्ती शायद ही हो पाए। अब उन्होंने हमेशा के लिए काम से छुट्टी ले लिया है शायद अब वे चैन की सांस ले पाएं।

पढ़ें: गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर का निधन

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