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'आशा है सुशांत केस का हश्र दाभोलकर केस की तरह नहीं होगा' : शरद पवार ने कसा तंज

पवार का बयान उस समय आया है जब सुशांत केस की जांच सीबीआई को सौंपे जाने को लेकर महाराष्ट्र सरकार की आलोचना हो रही है।

'आशा है सुशांत केस का हश्र दाभोलकर केस की तरह नहीं होगा' : शरद पवार ने कसा तंज
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NCP सुप्रीमों शरद पवार (sharad pawar) ने सुशांत सिंह राजपूत आत्महत्या मामले (sushant singh rajput suicide case) में प्रतिक्रिया दिया है। सुशांत की मौत मामले की जांच सीबीआई (CBI) को सौंपे जाने के बाद एनसीपी प्रमुख शरद ने तंज कसते हुए कहा कि, आशा है कि इस जांच के परिणाम डॉ. नरेंद्र दाभोलकर (narendra dabholkar) की हत्या की जांच जैसे न हो, जिसका अभी तक कोई हल नहीं निकल पाया।

पवार का बयान उस समय आया है जब सुशांत केस की जांच सीबीआई को सौंपे जाने को लेकर महाराष्ट्र सरकार की आलोचना हो रही है।

शरद पवार (sharad pawar) ने ट्वीट कर कहा है कि, मुझे आशा है, इस जांच के परिणाम डॉ. नरेंद्र दाभोलकर (narendra dabholkar) की हत्या की जांच जैसे न हो। 2014 में सीबीआई द्वारा शुरू की नरेंद्र दाभोलकर की जांच का अभी तक कोई हल नहीं निकल पाया है।


उन्होंने आगे कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट ने सुशांत सिंह राजपूत केस की जांच सीबीआई को ट्रांसफर करने का आदेश दिया है। मुझे यकीन है कि महाराष्ट्र सरकार इस निर्णय का सम्मान करेगी और जांच में पूरी तरह सहयोग करेगी।’

दाभोलकर के परिवार ने कहा- यह पीड़ादायक है कि सीबीआई सात साल में भी जांच पूरी न कर पाई।

पवार द्वारा ट्वीट करने के बाद इस मुद्दे पर डॉ. दाभोलकर की बेटी मुक्ता और बेटे डॉ. हमीद दाभोलकर ने भी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा- ‘हत्या को पूरे सात साल हो गए हैं। पुलिस ने शुरुआती नौ महीने तक ठीक से जांच नहीं की। जिसके बाद हाईकोर्ट के आदेश के बाद मामला सीबीआई को सौंपा गया था, लेकिन यह बहुत ही पीड़ादायक है कि सीबीआई जैसी प्रतिष्ठित एजेंसी भी अब तक जांच पूरी नहीं कर पाई है।

डॉ. नरेंद्र दाभोलकर हत्याकांड के बारे में जानें

पुणे के रहने वाले डॉ. नरेंद्र दाभोलकर अंधविश्वास और प्रचलित सामाजिक बुराई के खिलाफ हमेशा आवाज उठाते थे।

20 अगस्त 2013 को दो अज्ञात बाइक सवारों ने दाभोलकर को उस समय गोली मार कर हत्या कर दी थी, जब वे सुबह मॉर्निंग वॉक पर निकले थे।

दाभोलकर की हत्या के बाद पूरे महाराष्ट्र में सरकार के खिलाफ प्रदर्शन हुए। और सरकार ने विरोध को देखते हुए अंधविश्वास के खिलाफ कानून भी बनाया। जांच में पुलिस की लीपापोती के बाद इसे सीबीआई को सौंप दिया गया। लेकिन हत्या के 7 साल बीत जाने के बाद भी आज तक जांच पूरी नहीं हो सकी है।

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