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'विकास' के मुंह से नहीं निकलता 'राम मंदिर' का नाम!

प्रधानमंत्री नरेंंद्र मोदी ने अपनी छवि विकास के रुप में लोगों के सामने रखी है।

'विकास' के मुंह से नहीं निकलता 'राम मंदिर' का नाम!
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आज के दौर में भारत की राजनीति में अपने आप को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विकास के रुप में स्थापित किया है। प्रधानमंत्री अपने आप को लोगों के सामने इस तरह से पेश करते है जैसे वह खुद ही विकास हो। ऐसा नहीं है की मोदी जी के कार्यकाल में कोई विकास नहीं हुआ , लेकिन गौर करनेवाली बात है की कुछ ना कुछ कार्य तो हर सरकार के कार्यकाल में होते है। पिछलें साढें चार सालों में प्रधानमंत्री ने विकास के मुद्दे पर ही वोट मांगा है , हालांकी कई बार चुनावों में वो पाकिस्तान, कब्रिस्तान का भी जिक्र लेकर आये , लेकिन गौर करनेवाली बात ये है की प्रधानमंत्री जी ने साढ़े चार साल में एक बार भी राम मंदिर का जिक्र तक नहीं किया।


राम मंदिर पर एकदम मौन

राम मंदिर के मुद्दे पर ही बीजेपी पहली बार सत्ता में आई थी। इतना ही नहीं पहली बार पार्टी ने राम मंदिर के मुद्दे पर ही लोकसभा में सैकड़ा का आकड़ा पार किया था। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में भी पार्टी ने राम मंदिर को मुद्दा तो बनाया लेकिन विकास के आगे इस मुद्दे को नाम मात्र ही रखा। मौजूदा समय में जहां एक ओर आरएसएस के साथ साथ बीजेपी भी राम मंदिर का नाम जप रही है तो वही दूसरी ओर देश के प्रधानमंत्री और उसी बीजेपी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राम मंदिर पर एकदम मौन है।

दिल खोलकर राम मंदिर का समर्थन कर रही है बीजेपी

प्रधानमंत्री ने किसी भी रैली में पिछलें साढ़े चार साल में राम मंदिर के बारे में जिक्र तक नहीं । हां , साल 2014 में लोकसभा चुनाव के पहले उन्होने जरुर एक दो बार राम मंदिर का नाम लिया था, लेकिन चुनाव जितने के बाद मानो जैसे राम मंदिर के मुद्दे पर प्रधानमंत्री ने चुप्पी साध ली है। प्रधानमंत्री जिस पार्टी से आते है उस पार्टी का हर एक कार्यकर्ता , पदाधिकारी राम मंदिर पर दिल खोल कर बोल रहा है। बीजेपी का हर एक कार्यकर्ता बोल रहा है की मंदिर वही बनाएंगे। लेकिन प्रधानमंत्री खुद इस बारे में बोलने से बचते दिख रहे है।

विकास की छवि में रहना चाहते है प्रधानमंत्री
दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने आप को विकास के रुप में लोगों के सामने रखना चाहते है। वह चाहते है की लोग उन्हे विकास पुरुष के नाम से याद रखे , लिहाजा मोदी जी ने राम मंदिर के मुद्द पर अपने आप को इससे दूर ही रखा है। पिछलें साढ़े चार साल के कार्यकाल में ना तो प्रधानमंत्री की ओर से और ना ही प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से राम मंदिर पर कोई बयान आया।

खुद को हिंदुत्ववादी पार्टी बताने में जुटी बीजेपी

जहां प्रधानमंत्री मोदी जी ने इस बारे में शांती बनाई रखी है तो वही दूसरी ओर बीजेपी के सारे कार्यकर्ता और पदाधिकारी राम मंदिर के मुद्दे को लेकर आक्रामक होते दिख रहे है। बीजेपी अपने आप को हिंदुत्तववादी पार्टी दिखाने के रुप में पूरी तरह कार्य कर रही है और लोगों को साथ में ये भी भरोसा देना चाहती है की पार्टी आज भी राम मंदिर के लिए उतनी ही गंभीर है जितनी पहले थे। बीजेपी के साथ साथ आरएसएस ने भी राम मंदिर के मुद्दे को लेकर आक्रामक रुख तैयार किया है।

दोनों हाथों में लड्डू चाहती है बीजेपी
दरअसल बीजेपी अपना पारंपरागत वोट बैंक नहीं खोने देना चाहती , वह नहीं चाहती ही हिंदू वोट बैंक में उसकी पकड़ कमजोर पड़े। इसके साथ ही प्रधानमंत्री मोदी जी ने अपने आप को विकास के रुप में पेश किया है ताकी युवाओं में मोदी जी की जो विकास के रुप में छपि है उसे भी भुनाया जा सके। इस तरह बीजेपी ना ही तो अपने हिंदु वोट बैंक को खोना चाहती है और नाही विकास के रुप में मोदी के छवि को नुकसान पहुंचाकर युवाओं के वोटबैंक से समझौता कर सकती है।

फिलहाल राम मंदिर पर अध्यादेश और कानून नहीं लाएगी केंद्र सरकार
मौजूद समय में केंद्र सरकार किसी भी स्वरुप में राम मंदिर के मुद्दे पर ना तो अध्यादेश लाने की तैयारी में दिख रही है और ना ही संसद के जरिये कानून बनाने की तैयारी में । हां , सरकार अपने डैमेज कंट्रोल के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को आगे कर अयोध्या में राम भगवान की सबसे लंबी मुर्ति और अयोध्या के विकास को राम भगवान के नाम के आधार पर करने की बात कर रही है। फैजाबाद का नाम अयोध्या करने और बाकी और इलाको के नाम हिंदू धर्म के आधार पर रखने की राजनीति के सहारे बीजेपी राम मंदिर के मुद्दे पर डैमेज कंट्रोल करना चाहती है।



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