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महाविकास आघाड़ी सरकार का बढ़ता आत्मविश्वास


महाविकास आघाड़ी सरकार  का बढ़ता आत्मविश्वास
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महाराष्ट्र (maharashtra) की उद्धव ठाकरे (uddhav thackeray) के नेतृत्व वाली सरकार पर लगातार विपक्ष हावी रहा है, लेकिन पिछले दिनों हुए विधान परिषद के चुनाव में महाविकास आघाडी (mva) सरकार ने जो सफलता प्राप्त की है, उससे सरकार का आत्मविश्वास बढ़ा है। राज्य की छह विधान परिषद सीटों में से चार में महाविकास आघाडी के उम्मीदवार विजयी हुए हैं। विधान परिष्द के चुनाव में महाविकास आघाडी की इस जीत से इस बात का खुलासा हो गया है कि महाविकास आघाडी उतनी कमजोर नहीं है, जितनी उसे विपक्ष दल समक्ष रहा था। राज्य में महाविकास आघाडी सरकार की स्थापना के बाद मिली इस पहली जीत को सरकार की बढ़ती ताकत का प्रतीक बताया जा रहा है। सरकार के एक साल पूरे होते-होते सरकार की झोली में जो यह जीत आई है, इस जीत को सरकार अपनी सफलता के रूप में देख रही है। इस चुनावों में महाविकास की जीत पर विधानसभा में विरोधी पक्ष नेता तथा राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस (devendra fadnavis) ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि हमारा आकलन गलत साबित हुआ। 

भाजपा प्रदेशाध्यक्ष चंद्रकांत पाटील (chandrakant patil) इस हार के बाद भी यह मानने को तैयार नहीं हैं कि महाविकास आघाडी की इस जीत के कारण ताकत थोड़ी बहुत बढ़ी ही है। कहा जा रहा है कि बोल बचन के कारण ही भाजपा को करारी शिकस्त मिली है। केंद्रीय मंत्री तथा महाराष्ट्र भाजपा के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष राव साहेब दानवे  (rav saheb dance)ने राज्य सरकार को अमर-अकबर-एंथोनी की सरकार कहा था, यही वाचालता भाजपा की हार का कारण बनी। बिहार विधानसभा तथा हैदराबाद मनपा के चुनाव में अच्छी सफलता प्राप्त करने वाली भाजपा को स्नातक तथा शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र मंब इतनी करारी शिकस्त क्यों सहनी पड़ी है, यह चिंतन का विषय है। 

राज्य में स्नातक तथा शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र में पांच तथा धुलिया-नंदूरबार की स्थानीय स्वराज्य संस्था की एक सीट को मिलाकर विधान परिषद की छह निर्वाचन क्षेत्रों के चुनाव हुए, इन चुनावों में कांग्रेस से भाजपा में गए अमरीश पटेल की उत्तर महाराष्ट्र की जगह छोड़कर भाजपा को एक भी सीट पर विजय प्राप्त नहीं हुई। पुणे तथा नागपुर ये दोनों निर्वाचन क्षेत्र तो भाजपा के गढ़ माने जाते हैं। पुणे स्नातक निर्वाचन क्षेत्र से राकांपा से अरुण लाड, मनसे की ओर से एड. रुपाली पाटिल, निर्दलीय डॉ श्रीकांत कोकाटे तथा जनता दल(से) की ओर से प्रा. शरद पाटिल चुनावी जंग में उतरे थे, जिनमें राकांपा के अरुण लाड विजयी हुए। नागपुर निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस के अभिजीत  वंजारी विजयी रहे, जबकि भाजपा के संदीप जोशी दूसरे स्थान पर रहे। निर्दलीय अतुल कुमार खोब्रागडे यहां से तीसरे स्थान पर रहे। वंचित बहुजन आघाडी के उम्मीदवार राहुल वानखेड़े ने भी अच्छा प्रदर्शन किया। 

मराठवाडा स्नातक निर्वाचन क्षेत्र से राष्ट्रवादी कांग्रेस के सतीश चव्हाण विजयी रहे, जबकि भाजपा शिरीष बोरालकर दूसरे स्थान पर रहे। प्रहार जनशक्ति पार्टी के सचिन ढवले तीसरे स्थान पर रहे। इसी तरह पुणे शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस के जयंत असगांवकर विजयी रहे, जबकि निर्दलीय दत्तात्रय सावंत दूसरे स्थान पर रहे। भाजपा समर्थित जीतेंद्र पवार को तीसरा स्थान मिला। धुलिया- नंदूरबार स्थानीय स्वराज्य संस्था चुनाव में भाजपा के अमरीश पटेल विजयी रहे, इन्होंने कांग्रेस के अभिजीत पाटिल को पराजित किया। अमरावती शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से निर्दलीय उम्मीदवार किरण सरनाईक विजयी हुए। महाविकास आघाडी के उम्मीदवार श्रीकांत देशपांडे को किरण सरनाईक ने 3242 वोटों से पराजित किया। सरकार की स्थापना से लेकर अब तक हर दिन यह कहा जा रहा है कि सरकार अब गिरी कि तब गिरी। सरकार कब गिरेगी, इसकी चातक पक्षी की तरह भाजपा प्रतीक्षा कर रही है। 

पिछले कई वर्षों से नागपुर स्नातक निर्वाचन क्षेत्र भाजपा के कब्जें में था। देवेंद्र फडणवीस के पिता गंगाधर फडणवीस,उनके बाद नितीन गडकरी जैसे दिग्गजों ने इस निर्वाचन क्षेत्र का  प्रतिनिधित्व किया है। अनिल सोले केंद्रीय मंत्री नितीन गडकरी के समर्थक हैं और वे पछली बार निर्वाचित हुए थे। पिछले तीन माह तक उन्होंने कोरोना प्रभावित होते हुए भी बड़ी मेहनत से प्रचार किया, लेकिन नामांकन पत्र भरने से दोन-तीन दिवस पहले उनकी जगह देवेंद्र फडणवीस के खास समर्थक तथा नागपुर मनपा के महापौर संदीप जोशी को उम्मीदवार बनाया गया। उम्मीवदारी को लेकर गडकरी तथा फडणवीस के समर्थकों के बीच के गुप्त संघर्ष का फायदा कांग्रेस ने उठाया। कांग्रेस ने इस सीट पर तेली समाज के व्यक्ति को उम्मीदवार बनाया और जातीय समीकरण के आधार जीत का रणनीति बनायी और यह सीट जीत ली। 

अमरावती शिवसेना ने श्रीकांत देशपांडे को टिकट दी थी तो भाजपा ने नितीन धांडे को उम्मीदवारी दी थी। कांग्रेस कार्यकर्ता किरण सरनाईक निर्दलीय उम्मीदवार के रुप में चुनावी जंग में उतरे थे, फिर भी उनकी ओर किसी का ध्यान नहीं था, उन्होंने वाशिम, अकोला, बुलढ़ाना इन तीन जिलों के शिक्षकों को जोड़ा और बाजी मारी। औरंगाबाद स्नातक निर्वाचन क्षेत्र में फिर से राष्ट्रवादी कांग्रेस के सतीश चव्हाण की जीत का तो पहले से ही अनुमान लगाया जा रहा था।   भाजपा के लोग यहां भी किसी चमत्कार का अंदेशा लगा रहे थे। इस बार पुणे स्नातक निर्वाचन क्षेत्र से श्रीमंत कोकाटे, नीता ढमाले जैसे कुछ नाम चर्चा में थे। पुणे के शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से जयंत आसगांवकर के लिए भी कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस तथा शिवसेना इन तीनों पार्टियों के कार्यकताओं ने मन लगाकर काम प्रचार किया और उसी वजह से महाविकास आघाडी को चुनाव में सफलता प्राप्त हुई। भाजपा समर्थित उम्मीदवार जीतेंद्र पवार के लिए भाजपा कार्यकर्ताओं ने भी शिवसेना-राकांपा तथा कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की तरह की कोशिश की थी या नहीं, यही सबसे बड़ा सवाल है। 

विधान परिषद के छह सीटों के लिए चुनाव केवल महाविकास आघाडी के नेताओं के स्तर पर या मंत्रालय में बैठने वाले  मंत्रियों के स्तर पर न होकर हर स्तर के कार्यकर्ताओं की दृष्टि से भी बहुत मायने रखने वाले दिखायी दिए हैं। चुनाव में जीत के लिए महाविकास आघाडी के तीन दलों की एकजुटता यह बता रही है कि तीनों दल एकसाथ मिलकर काम कर रहे हैं। महाविकास आघाडी के तीनों दलों की यह एकता भाजपा के लिए खतरे की घंटी ही है, उसे अब अपनी रणनीति बदलनी होगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर मिलने वाले वोटों को अपने नाम पर मिलने की भूल महाराष्ट्र भाजपा के नेताओं के लिए भारी पड़ी और यह भूल उनकी हार का कारण भी बनी।   

महाविकास आघाडी की सरकार को अमर, अकबर, एंथनी की सरकार कहने वाले केंद्रीय मंत्री राव साहेब दानव का दांव उल्टा पड़ गया और तीन दलों की सरकार को मिली इस सफलता ने भाजपा को चौकन्ना कर दिया है। कम से कम देवेंद्र फडणवीस को इस बात का आभास हो गया है कि महाविकास आघाडी के की ताकत पहले की तुलना में बढ़ी है, इसलिए 7 दिसंबर से शुरु हो रहे विधानसभा के शीतकालीन सत्र में भी सरकार विपक्ष का सामना करने में हिचकिचाएंगी नहीं। सरकार अब तक विपक्ष के मुकाबले खुद को कमजोर समझती थी, लेकिन विधान परिषद में मिली जीत सरकार का संबंल जरूर बढ़ाएगी। 

पुणे, नागपुर तथा औरंगाबाद इन तीन स्नातक निर्वाचन क्षेत्रों तथा पुणे तथा अमरावती शिक्षक निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा को मिली पराजय बहुत कुछ कहती है। विधान परिषद का चुनाव परिणाम भाजपा के लिए मंथन-चिंतन का विषय है, जबकि महाविकास आघाडी के लिए आत्मविश्वास बढ़ाने वाला है, अब यह सरकार और विपक्ष को तय करना है कि उनकी आगे की रणनीति क्या होगी। अगर भाजपा ने चिंतन- मनन किया तो उसकी पराजय का कारण सामने आएगा और चिंतन-मनन न करके बोल बचन जारी रखा तो भविष्य में होने वाले अन्य चुनावों में भी भाजपा को ऐसी ही पराजय का सामना करना पड़ेगा, जो उसे विधान परिषद के चुनाव में देखने को मिली है।

(Note: यह लेखक के अपने विचार हैं।)

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