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रेमन मैग्सेसे अवार्ड से सम्मानित होने वाले डॉ. भरत वाटवाणी से 'मुंबई लाइव' ने की एक्सक्लूसिव बात

डॉ भरत वाटवाणी को मुंबई की सड़कों पर घूमने वाले मानसिक रूप से पीड़ित गरीबों के इलाज के लिए तो सोनम वांगचुक को प्रकृति, शिक्षा और संस्कृति के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य के लिए इस सम्मान से नवाजा गया है।

रेमन मैग्सेसे अवार्ड से सम्मानित होने वाले डॉ. भरत वाटवाणी से 'मुंबई लाइव' ने की एक्सक्लूसिव बात
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अपने क्षेत्र में विशेष रूप से उल्लेखनीय कार्य करने के लिए रेमन मैग्सेसे अवार्ड दिया जाता है। इस अवार्ड को एशिया का नोबल पुरूस्कार भी कहते हैं। इस बार यह अवार्ड छह लोगों को मिला है जिसमें दो भारीतय शामिल हैं। ये दो नाम हैं मुंबई के डॉ भरत वाटवाणी और लद्दाख के सोनम वांगचुक। सोनम वांगचुक वही शख्स हैं जिन्हे लोग मूवी 'थ्री इडियट' में आमिर के किरदार में देख चुके हैं। डॉ भरत वाटवाणी को मुंबई की सड़कों पर घूमने वाले मानसिक रूप से पीड़ित गरीबों के इलाज के लिए तो सोनम वांगचुक को प्रकृति, शिक्षा और संस्कृति के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य के लिए इस सम्मान से नवाजा गया है।

क्या करते हैं डॉ. भरत वाटवाणी
डॉ. भरत वाटवाणी और उनकी पत्नी ने मानसिक रूप से बीमार गरीब सड़कों पर घूमने वाले लोगों को अपने क्लीनिक मे लाकर उनका इलाज करना शुरू किया था। यही नहीं इन्होने 1988 में 'श्रद्धा पुनर्वास फाउंडेशन' नामके एक एनजीओ का गठन किया जो मानसिक तौर पर बीमार, सड़क या रेल पटरी पर रह रहे लोगों को मुफ्त छत, भोजन और मनोवैज्ञानिक चिकत्सा प्रदान करना उन्हें उनके घर तक सही सलामत पहुंचाता है। इसी के साथ यह एनजीओ ग्रामीण इलाकों के साथ साथ पुलिस विभाग,रेल विभाग और आम जनता के बीच मानसिक स्वास्थ्य के लिए जागरुकता अभियान भी चलाती है।

ऐसे में मुंबई के बोरीवली में रहने वाले डॉ. भरत वाटवाणी से कई मुद्दों पर बात किया मुंबई लाइव ने, डॉ. भरत वाटवाणी ने बताया कि उन्हें अभी और भी काफी कुछ करना है. पेश है बातचीत के कुछ प्रमुख अंश.

 
इस काम की प्रेरणा कैसे मिली?
डॉ.भरत वाटवाणी बताते हैं कि उन्हें इस काम की प्रेरणा मिली डाॅ. बाबा आम्टे से. जो सड़क पर पड़े कुष्ठ रोगी को अपने घर लाकर बिना किसी स्वार्थ से उसकी सेवा बड़ी लगन से करते थे। डॉ. वाटवाणी के मुताबिक कोई अपनी ख़ुशी से भीख नहीं मांगता, लोग परिस्थितियों के अधीन होकर यह काम करते हैं। उसका परिवार उसे सड़क पर लाता है। उस समय उन्हें सपोर्ट और उपचार की आवश्यकता होती है। उस भावना को ध्यान में रखते हुए मैंने और मेरी पत्नी ने साल 1988 से ही सड़क पर आवारा घूमने वालों बेघर लोगों को सही सलामत उनके घर भेजने का निर्णय लिया। देखते-देखते यह प्रयास जिंदगी का ध्येय बन गया। धीरे-धीरे इस काम का दायरा इतना बढ़ गया कि यह एक बड़ा सामाजिक कार्य बन गया। अब डॉ. वाटवाणी बाबा आम्टे के बेटे प्रकाश आम्टे के साथ मिलकर लोगों की सेवा करने का काम करते हैं।

'श्रद्धा' का ख्याल मन में कैसे आया?
अगर सड़क पर कोई भी बेघर मानसिक रूप से विक्षिप्त आवारा घूमते हुए मिल जाता था तो उसे हम अपने बोरीवली स्थित क्लिनिक लाते, उसका उचित देखभाल और इलाज करते। फिर उसके घर वालों की तलाश करते। बाद में काम बढ़ता गया तो कार्यालय छोटा लगने लगा। इसके बाद मुंबई के निकट कर्जत में 'श्रद्धा पुनर्वास फाउंडेशन' नाम से एक एनजीओ की स्थापना की गयी। इस समय इस एनजीओ में 7000 से भी अधिक मनोरोगियों का इलाज हो रहा है। लगभग 90 फीसदी मनोरोगियों का सफल इलाज कर उन्हें उनके घर सही सलामत भेज दिया गया।

पुरस्कार मिलने की बात आपको कैसे पता चली?
मुझे इस सम्मान की कोई इच्छा या लालसा नहीं थी, मै तो बस अपना काम कर रहा था। डाॅ. प्रकाश आम्टे का फोन आया और उन्होंने मुझे सबसे पहले इस बात की खुशखबरी दी। उन्होंने हंसते हुए कहा 'भरत यु डिजर्व इट'। अपने गुरु के मुंह से मेरे लिए प्रशंसा के यह चार शब्द सुन कर मुझे मैग्सेसे से भी बड़ा पुरस्कार मिलने की ख़ुशी हुई।

जीवन का क्या लक्ष्य है?
यह पुरस्कार मिलने के बाद अब मुझे ऐसा लगता है कि समाज के प्रति मेरी जिम्मेदारी अब और भी बढ़ गयी है। अभी बहुत कुछ करना बाकी है। रास्ते के भिखारियों और विक्षिप्त लोगों के लिए सबसे पहले सभी को अपनी मानसिकता बदलनी होगी। यह लोग भी एक इंसान हैं इन्हे प्यार और सम्मान के साथ साथ इलाज की जरूरत है। लोग घर के कूड़े कचरे की तरह इन्हे बाहर फेंक देते हैं इसका भी इलाज  हो सकता है। अगर लोगों की मानसिकता बदलेगी तो सड़क पर एक भी बीमार भिखारी नहीं दिखेगा।

एक और श्रद्धा की जरूरत
जिस तरह से लोगों का प्यार और सम्मान मिल रहा है उसे देखते हुए समाज के लिए मैं बहुत कुछ करना चाहता हूँ। मैं चाहता हूँ कि मानसिक रोगियों के लिए ही कर्जत में एक और 'श्रद्धा' खोलूं।

मुंबई लाइव डॉ. भरत वाटवानी के इस हौसले और जज्बे को सलाम करता है, साथ ही उनकी इच्छा पूरी होने की शुभकामना भी देता है।

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