भगत सिंह का नाम किसी पहचान का मोहताज नहीं है। भगत सिंह का नाम आते ही आंखो के सामने उस शख्स की तस्वीर उभर कर आ जाती है जिसने छोटी सी उम्र में देश की आजादी के लिए अपनी जान न्योछावर कर दिया। जिस उम्र में हम और आप मोबाइल, बाईक या फिर लैपटॉप के लिए जिद्द करते है , उसी उम्र में उन्होने देश को अंग्रेजो से आजाद कराने की जिद्द ठान ली। भगत सिंह के जीवन में क्रांती शब्द का मतलब कुछ इस तरह है जैसे आदमी और उसकी परछाई।
महान क्रांतिकारी, क्रांतिदूत, शहीदे-आजम ऐसे कुछ शब्द है जो भगत सिंह के नाम के आगे जोड़े जाते है। 28 सितंबर को भगतसिंह की 110वीं जयंती है। भगत सिंह को युवाओं में आदर्श माना जाता है, वैसे तो देश के सभी लोग उनकी शहादत को सलाम करते है , लेकिन देश के युवा भगत सिंह का नाम आने पर ही अपनी छाती चौड़ी कर लेते है। भगत सिंह ने 23 साल की छोटी सी उम्र में इंकलाब का नारा बुलंद करते हुए ब्रिटिश हुकूमत की नाक में दम कर दिया था, ये वही उम्र है जहां आज का ज्यादातर युवा अपने करियर और अपने प्रेमी प्रेमिकाओं के बारे में सोचता है , लेकिन भगत सिंह की बात ही कुछ और थी, इस उम्र में उन्होने सोचा तो सिर्फ अपने देश और देशवासियों के प्रति, उनकी आजादी के बारे में।
भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को एक जाट सिख परिवार में ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रांत के लायलपुर जिले में बंगा गांव में किशन सिंह और विद्यावती के घर में हुआ था। क्रांती तो उन्हे जैसे विरासत में मिली थी। उनके जन्म के समय उनके पिता और दो चाचा, अजित सिंह और स्वर्ण सिंह जेल में थे, जिनको आजाद करने की बात चल रही थी, इन सभी बातों को भगत सिंह बड़े ध्यान से सुनते थे। जैसे जैसे भगत सिंह की उम्र बढ़ती गई , भगत सिंह के अंदर देश को आजाद करने और अंग्रेजो को देश से बाहर निकालने की भावना और भी तीव्र होने लगी।
जिस समय जलियाँवाला बाग हत्याकांड हुआ था, उस समय भगत सिंह की उम्र सिर्फ 12 साल थी। इस कांड की खबर मिलते है भगत सिंह अपने स्कूल से 12 मील पैदल चलकर जलियाँवाला बाग पहुँच गए थे। 14 साल की अम्र से ही उन्होने क्रांतीकारियों के समुहों में जुड़ना शुरु कर दिया था।
8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह ने क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर भगत सिंह ने तत्कालिन नई दिल्ली स्थित ब्रिटिश भारत की तत्कालीन सेट्रल एसेम्बली के सभागार संसद भवन में अंग्रेज़ सरकार को जगाने के लिये बम और पर्चे फेंके। बम फेंकने के बाद भी उन्होने भागने से मना कर और इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाते रहे। 23 मार्च 1931 को भगत सिंह को दो अन्य साथी, राजगुरु तथा सुखदेव के साथ फांसी दे दी गई।
नेताओं ने किया भगत सिंह को याद
I bow to the brave Shaheed Bhagat Singh on his Jayanti. His greatness and exemplary courage inspires generations of Indians.
— Narendra Modi (@narendramodi) September 28, 2017
My tributes to #ShaheedBhagatSingh on his birth anniversary. His valour and sacrifice will continue to inspire generations
— Office of RG (@OfficeOfRG) September 28, 2017
Shat Shat Naman to brave son of BharatMata #ShaheedBhagatSingh on His Jayanti today !
— Devendra Fadnavis (@Dev_Fadnavis) September 28, 2017
मुंबई लाइव भगत सिंह की 110वीं जयंती पर उन्हे शत शत नमन करता है।
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