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क्या चुनावों में कार्यकर्ताओं की जगह खत्म करता जा रहा है सोशल मीडिया?


क्या चुनावों में कार्यकर्ताओं की जगह खत्म करता जा रहा है सोशल मीडिया?
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जैसे जैसे तकनीक बढ़ती जाती है वैसे वैसे उसके इस्तेमाल और दुरुपयोग का दायरा भी बढ़ता जा रहा है। आज के दौर में सोशल मीडिया का इस्तेमाल जमकर किया जा रहा है।  पिछलें कुछ सालों से भारत में सोशल मीडिया का बाजार काफी बढ़ा है। भारत में सोशल मीडिया के बढ़ते कदम का असर कुछ ऐसा हुआ है की अब सोशल मीडिया कंपनियों को भारतीय बाजार के लिए अलग तरह के नियम निकालने पड़ रहे है।  मौजूदा समय में भारत में ही  फेसबुक इस्तेमाल करने वालों की तादाद 30 करोड़ है जबकि व्हाट्सएप के मामले में यह तादाद 20 करोड़ है।  इतनी बड़ी तादाद में सोशल मीडिया का  इस्तेमाल करनेवालों के लिए कंपनियां भी हर दिन कुछ ना कुछ नये नये फिचर्स निकालती रहती है। 

चिठ्ठियों  का जमाना अब लगभग खत्म सा हो गया है , पत्रव्यवहार भी सिर्फ ज्यादातर सरकारी कार्यों में ही नजर आते है।  एक दौर था जब लोग एक दूसरे का हालचाल जानने के लिए पत्र लिखते थे और कई कई दिनों तक उस खत का जवाब आने का इंतजार करते थे।  बदलते समय में बदलते तकनीक ने उस इंतजार को तो खत्म कर दिया लेकिन उस एहसास को भी खत्म कर दिया जो कई दिनों के इंताजर के बाद एक राहत की सांस लेकर आती थी।  पहले हमारे पास इतनी तकनीक तो नहीं थी लेकिन लोगों के लिए समय काफी हुआ करता था लेकिन अब  हमारे पास तकनीक है लेकिन लोगों के लिए समय नहीं है।  इसे ही कहते है तकनीक की कुछ अच्छाईयां और कुछ बुराईयां।

मौजूदा समय में सोशल मीडिया भी कुछ ऐसा ही रुप लेता जा रहा है। भारतीय बाजार में सोशल मीडिया का रुप इतना बड़ा है की इस्तेमाल करनेवाले  की हर एक जरुरत बस एक क्लिक पर पूरी हो जाती है।  सोशल मीडिया ने खबरों की रफ्तार को भी बढ़ा दिया है लेकिन इसके साथ ही फेक न्यूज की एक बढ़ती समस्या को भी हमारे सामने ढकेल दिया है।  आज के दौर में शायद ही किसी पार्टी का मुखिया सोशल मीडिया पर सक्रिय ना हो।  पार्टी की हर एक बात , हर एक घोषणा आज कल सोशल मीडिया के जरिए के आम लोगों के साथ साथ पार्टी कार्यकर्ताओं तक पहुंच जाती है, लेकिन इसी सोशल मीडिया ने  अब धीरे धीरे पार्टी में कार्यकर्ताओं की अहमियत को खत्म कर दिया है।

जहां पहले पार्टी कार्यकर्ताओं से मुलाकात करने के लिए और उन्हे संबोधित करने के लिए नेता दूर दराज इलाके में आते थे और आम कार्यकर्ता पार्टी के नेता को अपने सामने देखकर एक अलग एनर्जी महसूस करते थे तो वही अब ये यह अहसास खत्म हो गया है।

नेता होना कोई बूरी बात नहीं है, एक नेता बनने के लिए आपको अपना सबकूछ त्यागना होता है , नेता को सामाजिक जिवन में इतना घूल जाना पड़ता है की वह कई बार अपनी तो छोड़ीये, अपने परिवार को भी समय नहीं दे पाता। किसी नेता का समर्थक होना भी कोई बूरी बात नहीं है ,क्यो फैन सिर्फ अभिनेता और खिलाड़ियों के ही हो सकते है , नेताओं के नही? एक नेता जो अपनी पूरी जिंदगी सामाजिक कार्यों में लगा देता है , समाज के भले के कार्य  के लिए लगा देता है उनका फैन होना कोई बूरी बात  नहीं। लेकिन नेताओं को भी ये बात समझनी होगी की उनके साथ जो पार्टी कार्यकर्ता होते है वह उनसे भावनात्मक तरिके से भी जुड़े होते है।  

डिजीटल प्रचार ने ली जगह 

समय बदलने के साथ साथ चुनाव में प्रचार करने का तरिका भी बदलता रहा है। देश के आजाद होने के बाद हुए पहले लोकसभा चुनाव में हाथों से बने बैनर  और पोस्टरों की जमकर मांग हुआ करती थी।  तो वही बाद के हुए लोकसभा चुनावों में फ्लैक्स बैनर , रेडियों और टीवी पर प्रचार प्रसार ने इसकी जगह ले ली और अब मौजूदा समय में  थ्री डी से लेकर फेसबुक लाइव और वीडियों कॉफ्रेंसिंग ने चुनाव प्रचारो की जगह ले ली है । लेकिन क्या कभी आपने सोचा है की जिस तरह से प्रचार करने का तरिका बदलता है उसी तरह इन चुनावों में प्रचार करने के लिए उसपर खर्च होनेवाली रकम भी बढ़ती है।  


पहले पार्टियां कार्यकर्ताओं के दम पर ही मतदाताओं के घर घर पर पहुंचती थी , जिसके कारण चुनाव में खर्च काफी कम होता था , लेकिन जैस जैसे  चुनाव प्रचार ने अपने आप को डिजीटलाइज किया है वैसे वैसे चुनाव प्रचार में खर्च होनेवाली राशि भी बढ़ती जा रही है।  तो भला सोचिये की जब  चुनाव प्रचार में ही इतनी राशि खर्च हो रही है तो भला पार्टियां  चंदा देनेवालों का ध्यान रखेगी या फिर अपने आम कार्यकर्ताओ का। 


फेक न्यूज से कार्यकर्ता भी परेशान

भारत में फेक न्यूज एक बहुत बढ़ा सिरदर्द बन गया है।  फेक न्यूज का आलम ये है की चुनाव आयोग को भी इसका दखल लेना पड़ा है।  चुनाव आयोग ने सभी राजनीतिक पार्टियों को आदेश दिया है की किसी भी तरह के विज्ञापन को सोशल मीडिया पर डालने से पहले  पार्टियों को  इजाजत लेनी होगी और फिर उसका सारा हिसाब चुनाव आयोग को देना होगा।   माइक्रोसॉफ्ट की सर्वेक्षण रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में इंटरनेट उपभोक्ताओं को फर्जी खबरों का सबसे अधिक सामना करना पड़ता है।   कंपनी की ओर से दुनिया के 22 देशों में किए गए सर्वेक्षण के बाद तैयार रिपोर्ट में कहा गया है कि 64 फीसदी भारतीयों को फर्जी खबरों का सामना करना पड़ रहा है। माइक्रोसॉफ्ट ने एक बयान में कहा है कि भारत इंटरनेट पर फेक न्यूज के मामले में वैश्विक औसत से कहीं आगे है। सर्वे में शामिल 54 फीसदी लोगों ने इसकी सूचना दी। इसके अलावा 42 फीसदी ने कहा कि उन्हें फिशिंग जैसी वारदातों से भी जूझना पड़ा है। फर्जी खभरों के प्रचार-प्रसार में परिवार या दोस्तों की भी अहम भूमिका होती है. ऐसा करने वालों का आंकड़ा 9 फीसदी बढ़कर 29 फीसदी तक पहुंच गया है। 

और भी बढ़ेगा बाजार

अमेरिकी कंपनी सिस्को के मुताबिक, वर्ष 2021 तक देश में स्मार्टफोन इस्तेमाल करने वालों की तादाद दोगुनी होकर 82.9 करोड़ तक पहुंचने की संभावना है। यानी की भारत में सोशल मीडिया का इस्तेमाल दिन बा दिन बढ़ते ही जानेवाला है।  सरकार के साथ साथ साभी राजनीतिक पार्टियों को चाहिये की सोशल मीडिया का इस्तेमाल तो किया जाए लेकिन पार्टी कार्यकर्ताओं को भी उतनी ही अहमियत दी जाए।  

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