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'लालपरी' बेचारी कर्ज के बोझ की मारी

कोरोना (Coronavirus) काल में की गई तालाबंदी (lockdown) ने तो एस टी महामंडल की कमर ही तोड़कर रख दी है। हालत यह हो गई है कि महामंडल को अपने कर्मचारियों को बकाया वेतन तथा भत्ते देने के लिए दो हजार करोड़ रूपए का कर्ज लेना पड़ा है।

'लालपरी' बेचारी कर्ज के बोझ की मारी
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मुंबई (Mumbai) का नाम लेते ही एक विशाल दृश्य आंखों के सामने आता है। कारों के काफिले, काली पीली टैक्सियां, उपनगरों में दौड़ते ऑटो और उसमें चलती राज्य सड़क परिवहन महामंडल (msrtc) की बसें। गरीबों की सारथी कही जाने वाली एसटी बसें (st bus) अक्सर अपना रोना रोती रहती हैं। कभी खस्ताहाल हालत पर तो कभी अल्प आय को लेकर, कभी इस पर सवार होने वाले इसकी लेटलतीफी का रोना रोते हैं, तो कभी जनसंख्या के लिहाज से बसों की कम संख्या कम होने की स्थिति में यात्रा को पीड़ादायक होता है, यह बात किसी से छिपी नहीं है। आर्थिक तंगी का का रोना तो एसटी महामंडल (st corporation) का जैसी स्थायी भाव ही हो गया है। कोरोना (Coronavirus) काल में की गई तालाबंदी (lockdown) ने तो एस टी महामंडल की कमर ही तोड़कर रख दी है। हालत यह हो गई है कि महामंडल को अपने कर्मचारियों को बकाया वेतन तथा भत्ते देने के लिए दो हजार करोड़ रूपए का कर्ज लेना पड़ा है। इस कर्ज के लिए महामंडल ने अपने 250 डिपो तथा 610 बस स्टैंड गिरवी रखने पड़े हैं। 

कोरोना काल में हुए नुकसान की भरपाई तथा कर्ज के तौर पर ली गई धनराशि की वापसी महामंडल के लिए एक बहुत बड़ा संकट है। इस संकट से मुकाबला करने के लिए एस टी महामंडल ने कुछ डिपो तथा बस स्टैंड (bus stand) गिरव पर रखा है, लेकिन क्या कुछ डिपो को गिरवी रखकर महामंडल को आर्थिक संकट (financial crisis) से स्थायी मुक्ति दिलायी जा सकेगी, शायद नहीं। एस टी महामंडल की बसें गरीबों का सबसे पसंदीदा यात्रा वाहन है। लालपरी नामक यह वाहन गरीबों को कम पैसे में सुरक्षित तरीके उनके इच्छित स्थान तक पहुंचाता है, लेकिन गरीबों का यह वाहन आर्थिक दृष्टि से विपन्न क्यों है, एस टी महामंडल के स्थायी आर्थिक संकट का मूल्यांकन करना भी जरूरी है, विशेष रूप से तब जब राज्य परिवहन महामंडल के कर्मचारियों को तीन माह से वेतन ही नहीं मिला है। 

एसटी महामंडल की ओर से कर्ज की जो धनराशि ली गई थी, उसका ब्याज समय न पर चुकाने के कारण उसकी कर्ज की धनराशि का आकड़ा और ज्यादा बढ़ता चला जा रहा है। कोरोना काल में की गई तालाबंदी तथा उसके बाद तालाबंदी में दी गई शीथिलता के बाद भी यात्रियों के न आने से एसटी महामंडल की हालत और ज्यादा खराब हो गई है। अच्छी सुविधा का अभाव, बसों की संख्या कम होना, उनकी खस्ता हालत इन सभी कारणों से एस टी बसों से यात्रा करने से लोग बचते हैं। कोरोना महामारी (Corona pandemic) के फैलाव को रोकने के लिए किए गए प्रबंधों के तहत एसटी महामंडल की बसों के पहिए भी छह माह तक जाम रहे और अब जबकि एसटी बसें फिर से शुरु की गई हैं तो यात्रियों की संख्या बहुत कम रखी गई है। एक दौर तो ऐसा भी गुजरा है कि एक सीट एक सवारी, ऐसे में महामंडल का नुकसान होना लाजिमी है। 

सच कहा जाए तो एसटी बसों के लिए यही कहना उचित होगा कि लाल परी बेचारी कर्ज के बोझ की मारी। दीपावली पर्व सिर पर है और जेब में पैसा नहीं पर्व कैसे मनाया जाएगा, इसे लेकर महामंडल के कर्मचारी बेहद परेशान हैं। एक तरफ केंद्रीय कर्मचारी हैं, जिन्हें दशहरे में बोनस (dussehra bonus) मिल गया और एसटी महामंडल के कर्मचारियों को अपने तीन माह के वेतन के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। एसटी महामंडल ने स्वयं को कर्ज मुक्ति करने के लिए जो रणनीति बनायी है, उससे एस टी को क्या लाभ होगा, यह तो समय ही बताएगा। एस टी महामंडल को आर्थिक संकट से उबारने के लिए राज्य परिवहन महामंडल के पास दो विकल्प हैं। पहला विकल्प यह है कि राज्य सरकार से निधि लेना या फिर बैंक से कर्ज लेना। सरकार की तिजोरी खाली है, इसलिए महामंडल को सरकार की ओर से कर्ज मिलना संभव नहीं लगता, ऐसे में अपने कर्मचारियों के बकाया वेतन का भुगतान करने के लिए महामंडल को बैंक के कर्ज पर ही निर्भर रहना होगा।

 एस टी महामंडल ने सीधे-सीधे बैंक (bank) से कर्ज न लेकर बैंक को अपने मालिकाना अधिकार वाले 250 डिपो तथा 609 बस स्टैंड गिरवी रखकर उसके एवज में 2.300 करोड़ रूप का कर्ज लेने का मन बनाया है। कोरोना के कारण सात माह में हर दिन 22 करोड़ रूपए का नुकसान सहन किया है। नुकसान के अलावा महामंडल अपने कर्मचारियों का तीन माह का वेतन भी नहीं दे सका है, इसलिए महामंडल की ओर से सरकार के पास 3600 करोड़ रूपए देने का प्रस्ताव भेजा गया है। परिवहन मंत्री अनिल परब (anil parab) का कहना है कि एसटी कर्मचारियों को दीपावली से पहले बकाया वेतन दे दिया जाएगा। मतलब साफ है कि इस बार एक टी कर्मचारियों को बोनस मिलना संभव नहीं दिखता। सरकार की ओर से यह स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि राज्य की आर्थिक हालत सामान्य है, दीवाला निकलने जैसी कोई बात नहीं है, लेकिन सामान्य खर्च के अलावा कुछ अतिरिक्त खर्च नहीं किया जा सकता। बोनस देना आज की स्थिति में संभव नहीं है। सरकारी तिजोरी खाली होने की स्थिति में हालत यह हो गई है कि बस को चलाने के लिए जिन आवश्यक वस्तुओं की जरूरत होती है, जैसे पेट्रोल, टायर उसके लिए भी महामंडल को कई बार सोचना पड़ रहा है। 

न तो देश की गरीब जनता, न तो किसान और न ही सरकारी कर्मचारी कोई भी हो, वह सरकारी कामकाज से प्रसन्न नहीं है, बावजूद इसके वह इस उम्मीद पर जीता है कि आज नहीं तो कम हालात ठीक हो जाएंगे, लेकिन लाल परी के बारे में ऐसा सोचना किसी दिवा स्वप्न से कम नहीं है। लाल परी की हालत किसी भी दौर में बदली नहीं है, उन्नीस-बीस ही रही है, लेकिन महामंडल को जितना नुकसान इस वर्ष हुआ है, कर्मचारियों को जितनी आर्थिक तंगी इस वर्ष झेलनी पड़ी है, उतनी पहले कभी झेलनी नहीं पड़ी है। बहरहाल महामंडल ने आर्थिक मंदी से खुद को बाहर निकालने के लिए अपने 250 डिपो तथा 609 बस स्टैंड गिरवी रखकर प्राप्त धनराशि से अपने कर्मचारियों का बकाया वेतन तथा अन्य भत्ते देने की जो योजना बनायी है, वह कितनी सफल होती है अब इस पर सभी की निगाहें लगी हुई हैं।

(Note: उक्त विचार लेखक के अपने हैं।)

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