बॉलीवुड में जब भी विलेन की बात आती है, तब लिस्ट में सबसे ऊपर अमरीश पुरी का नाम आता है। उन्होंने एक से बढ़कर एक फिल्मों में अपनी एक्टिंग का लोहा मनवाया है। अमरीश पुरी ने अपनी हर फिल्म में लीड एक्टर को कड़ी टक्कर दी है। अब ऐसे ही महान एक्टर के पोते वर्धन पुरी बॉलीवुड में एंट्री के लिए तैयार खड़े हैं। उनकी डेब्यू फिल्म ‘ये साली आशिकी’ का ट्रेलर रिलीज हो गया है, जिसे दर्शकों ने खासा पसंद किया है। साथ ही वर्धन की एक्टिंग को उनके दादू अमरीश पुरी से कंपेयर किया जा रहा है। वर्धन की यह फिल्म 22 नवंबर को रिलीज होगी, उससे पहले मुंबई लाइव ने उनसे खास मुलाकात कर फिल्म और पर्सनल जिंदगी से जुड़े मुद्दों पर बात की।
चार्ची चैपलिन और अमरीश पुरी प्रेरणा
इंटरव्यू के दौरान वर्धन पुरी ने कहा, मेरी प्रेरणा हमेशा दो शख्स रहे हैं, पहले मेरे दादू मिस्टर अमरीश पुरी और दूसरे चार्ली चैपलिन साब। चार्ली चैपलिन का सिनेमा मैं बचपन से देख रहा हूं। वे मुझे बहुत प्रभावित करते हैं।
5 साल की उम्र में थिएटर
वर्धन पुरी ने कहा, 5 साल की उम्र से मुझे मेरे दादू ने थिएटर में डाल दिया था। मैं पंडित सत्यदेव दुबे का स्टूडेंट रहा हूं। मैं उनका असिस्टेंट राइटर भी था। शुरुआत में मैं उनके प्ले को ऑब्जर्व किया करता था और उन्हें असिस्ट करता था। चाय-कॉफी सर्व करने से लेकर, लाइटिंग और पौछा लगाने जैसे काम भी मैं करता था।
8 साल की उम्र में पहला रोल
वर्धन पुरी ने कहा, मुझे प्ले में पहला रोल करने का मौका 8 साल की उम्र में मिला। उससे पहले मैं सिर्फ दुबे सर की हेल्प करता था। इसके बाद कभी भेलपुरी वाला बन गया, कभी झाड़ू वाला या कभी साधु का किरदार निभा लिया। पर मुझे 14 साल की उम्र तक कोई लीड रोल करने को नहीं मिला।
14 साल की उम्र में पहला लीड रोल
वर्धन पुरी ने कहा, पहले मेरा सपना कोई फिल्मी एक्टर बनने का नहीं था। मैं सिर्फ एक एक्टर बनना चाहता था। मेरे दादू ने एक चीज बोली थी कि एक्टर तुम्हें कोई बना नहीं सकता, एक्टर तुम हो, अगर एक कमरे में शीशे के सामने एक्टिंग कर लेते हो तो तुम एक एक्टर हो। अब आप मेहनत करो ताकि लोग आपको काम दें।
'दादू का कॉस्ट्यूम पहन बोलता था डायलॉग्स'
वर्धन पुरी ने कहा, मैं बचपन से ही सिनेमा प्रेमी था। दादू ने जो ‘करण अर्जुन’ में विग पहनी थी वह विग पहनकर और उनके 12 नंबर के जूते व कॉस्ट्यूम पहनकर मैं सीढ़ियों पर चलता था और शीशे के सामने उनके डायलॉग बोलता था। उसी समय मेरी फैमिली समझ गई थी कि यह एंटरटेनर है। पर दादू ने कहा कि ये एंटरटेनर है पर इसे फिल्मी बच्चा नहीं बनाना है। इसलिए उन्होंने मुझे थिएटर में डाला। ताकि वहां पर मेरा ईगो टूटे और मैं एक मैच्योर एक्टर बन सकूं।
'दादू होते तो मैं होता नादान परिंदा'
पूछे जाने पर कि अगर अमरीश पुरी जिंदा होते, तो क्या आपको फिल्में आसाानी से मिलतीं? इसके जवाब में वर्धन ने कहा, मुझे ऐसा लगता है कि मेरी सबसे बड़ी ब्लेसिंग यह है कि मुझे संघर्ष करने का मौका मिला। शायद मेरे दादू जिंदा होते तो मैं इतना सीख नहीं पाता। मेरी हालत एक नादान परिंदे की तरह होती। मैं शायद 20 की उम्र में लॉन्च तो हो जाता पर लोग कहते कि यार यह तैयार नहीं है। फिर दूसरा मौका कोई नहीं देता है, क्योंकि एक फिल्म में इतना सारा पैसा लगता है। मैंने लगभग 1200 से अधिक ऑडिशन किए हैं। दादू होते तो हो सकता है, मुझे कोई लॉन्च कर देता, उन्हें पता रहता कि दादू प्रमोशन में आएंगे। आज मेरे दादू नहीं हैं, मुझे ऐसा लगता है कि उनका मेरे साथ फिजिकली ना होना एक मकसद बना है कि मैं मेहनत कर पाऊं, अपने बलबूते पर फिल्म बना पाऊं, लोग मुझे अपनी आयडेंटी से जानें। मुझे स्ट्रगल करने का मौका मिले, क्योंकि जब इंसान स्ट्रगल करता है तो उसका ईगो टूट जाता है और जब इंसान का ईगो टूटता है तब वह कुछ बन पाता है।
'डर' के साथ तुलना
सोशल मीडिया पर फिल्म 'ये साली आशिकी' को 'डर' फिल्म से कंपेयर किया जा रहा है, इस सवाल पर वर्धन ने कहा, यह तो मेरे लिए बहुत ही अच्छी बात है। यश चोपड़ा जी हमेशा से मेरे बेहतरीन डायरेक्टर में से एक रहे हैं। आज मैं जो भी हूं, उसका एक बड़ा श्रेय मैं यश राज सर को देता हूं। 'ये साली आशिकी' के ट्रेलर को देख लोग 'डर' की बात कर रहे हैं, 'कबीर सिंह' और 'इत्तेफाक' की बात कर रहे हैं। ये सब बहुत बड़ी फिल्में हैं। इनसे मेरी फिल्म की तुलना हो रही है, यह मेरे लिए बहुत बड़ी बात है। मैं यशराज जी के साथ काम करता था, तब उन्होंने मुझे एक बात बोली थी कि देख शाहरुख खान ने 'डर' जैसी फिल्म से शुरुआत की थी। तू भी ऐसा ही कुछ करना और तू कर भी सकता है। यह बात 2012 की थी, हमने ऐसा कुछ करने की योजना भी नहीं बनाई थी और आज वैसा ही कुछ हो गया।