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भारत नहीं हर जगह के सइयां फ्रॉड होते हैं: सौरभ शुक्ला

अच्छी फिल्म हमेशा चलती है। यह कहना गलत होगा कि बड़े बजट और स्टारर फिल्म नहीं चलती है और छोटे बजट नॉन स्टारर फिल्म चलती है। दर्शक बेवकूफ नहीं हैं, उन्होंने इंगेजिंग और कंटेंट वाली फिल्मों को हमेशा बढ़ावा दिया है ।

भारत नहीं हर जगह के सइयां फ्रॉड होते हैं: सौरभ शुक्ला
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अपने असल नाम से अधिक किरदारों के नाम से पहचान हासिल करने वाले सौरभ शुक्ला इन दिनों अपनी आगामी फिल्म 'फ्रॉड सइयां' को लेकर चर्चा में हैं। शुक्ला ने 'सत्या', 'बर्फी', 'जॉली एलएलबी', 'पीके', 'किक', 'रेड' और 'जॉली एलएलबी 2' जैसी फिल्मों में अपनी दमदार एक्टिंग से दर्शकों का मन मोह लिया है। उन्हें 'जॉली एलएलबी 2' में उनकी नायब अदाकारी के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया है। हाल ही में ‘मुंबई लाइव' ने सौरभ शुक्ला से खास बातचीत की, पेश हैं उस मुलाकात के प्रमुख अंश.....


नया साल आपके लिए क्या कुछ नया लेकर आया है, कोई रिसोल्यूशन बनाया?

अभी तो नया साल बस शुरु हुआ है। कोई रिसॉलूशन बनाने का मौका तो नहीं मिला। एक शूटिंग से दूसरी शूटिंग में भाग रहा हूं। बस यही रिसोल्यूशन है कि जितनी भी फिल्मों में काम कर रहा हूं, बस अच्छा काम करूं।


भारत में फ्रॉड सइयां का इतना अधिक स्कोप क्यों है? 

भारत बस में नहीं पूरी दुनिया में फ्रॉड सइयां का स्कोप है। फ्रॉड झूठ से संबंधित है। फ्रॉड वही करता है जो झूठ बोलता है। झूठ बोलना इंसानों को बहुत अच्छे से आता है। 'फ्रॉड सइयां' फिल्म असल जिंदगी पर आधारित कुछ घटनाओं से प्रेरित है। असल जिंदगी में हम बस यही देखते हैं कि कोई आरोपी पकड़ा गया है, लेकिन हम यह जानने की कोशिश नहीं करते कि इन सबके पीछे वजह क्या थी। उस इंसान की क्या आइडियोलॉजी रही होगी। वह अपनी जिंदगी में कैसे खुश रहता होगा। उसकी ज़िंदगी में ऐसा क्या होगा जिस पर उसे अभिमान होता होगा। क्योंकि बिना अभिमान के हम इंसान रह नहीं सकते। हम जो भी करते हैं उसमे कुछ न कुछ अभिमान हम ढूंढ ही लेते हैं। इस फिल्म में मेरे लिए सबसे मजेदार अनुभव यह रहा कि मैंने दोनों पक्षों के पहलुओं को समझा और जाना।


फिल्म में आपका किस तरह का किरदार है? 


फिल्म में मेरे किरदार का नाम मुरारी है और वह इंत्तेफाक से भोला कैरेक्टर (अरशद वासरी) से मिलता है जोकि फिल्म में 'फ्रॉड सइयां' है। हमारी मुलाकात एक ऐसे समय पर होती है जब फ्रॉड चल रहा होता है। मैं उसे पकड़ लेता हूं और उससे कहता हूं कि मैं तुम्हारे सारे राज जान गया हूं। अब मुझे भी इसमें शामिल कर लो ताकि मैं भी कुछ पैसे बना लूं। मजबूरन भोला, मुरारी को अपनी टीम में शामिल कर लेता है। दोनों की जर्नी फिल्म में साथ दिखाई गई है, लेकिन फिल्म देखकर दर्शकों को यह महसूस होगा कि मुरारी जो कर रहा है उसके पीछे कोई और वजह भी है। वह ऐसा क्यों कर रहा है? इसका जवाब फिल्म के अंत में मिलेगा।


 अरशद वारसी के साथ आपने पहले भी काम किया, वे किस तरह के एक्टर और इंसान हैं?

अरशद बहुत ही बेहरीन एक्टर हैं। उनका ह्यूमर बहुत अच्छा है। वे बहुत अच्छे इंसान भी हैं। मेरे मायने में अच्छे इंसान का का मतलब है कि वे बहुत सहज हैं। जिस तरह से मैं रहता हूं उसी तरह से उनके रहने का भी तरीका है। अगर उनकी कार खराब हो जाए तो उन्हें रिक्शा लेने में कोई शर्म नहीं है।


बीते साल दर्शकों ने बड़े बजट और सुपरस्टार की फिल्मों को नकारा, वहीं कम बजट और नॉन स्टारर फिल्मों ने धमाल मचाया, इसे कैसे देखते हैं?

अच्छी फिल्म हमेशा चलती है। यह कहना गलत होगा कि बड़े बजट और स्टारर फिल्म नहीं चलती है और छोटे बजट नॉन स्टारर फिल्म चलती है। दर्शक बेवकूफ नहीं हैं, उन्होंने इंगेजिंग और कंटेंट वाली फिल्मों को हमेशा बढ़ावा दिया है अब चाहे वह छोटे बजट की हो या बड़े बजट की स्टारर हो या नॉन स्टारर।


आपने फिल्मों में काम तो किया ही है हाल ही में आप वेब सीरीज भी कर रहे हैं, कितना फर्क देखते हैं दोनों में?

 फिल्म में कम करना और वेब सीरीज में काम करना बेशक दोनों में फर्क है। फर्क यह है कि फिल्में अभी भी अधिक समय लेती हैं। हालांकि वेब सीरीज में भी ऐसा नहीं है कि कैसा भी हो शूट करके खत्म करो, वे भी फिल्मों की तरह ही बनाना चाहते हैं। वेब सीरीज में काम का दबाव अधिक होता है, क्योंकि इसकी स्टोरी बड़ी होती है। फिल्म 2 घंटे की होती है तो वेब सीरीज 8 घंटे की इतना बड़ा फर्क है। वेब सीरीज हमारे लिए नया प्लेटफॉर्म है। हमें नहीं पता कि इसमें क्या चलने वाला है, इसलिए इसमें ट्राइंगआउट चल रह है और पीरियड सबसे अच्छा पीरियड होता है।


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