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Review: ‘पैडमैन' एक फिल्म नहीं, बल्कि डाक्यूमेंट्री बननी चाहिए थी

'पैडमैन' का सब्जेक्ट अच्छा है, बात समाज को जागृत करने की है। पर इसे फिल्म की तरह देख पाना मुश्किल नजर आता है। फिल्म बनाने की बजाय इसे डॉक्यूमेंट्री बनाते ज्यादा बेहतर होता।

Review: ‘पैडमैन' एक फिल्म नहीं, बल्कि डाक्यूमेंट्री बननी चाहिए थी
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कास्ट: अक्षय कुमार, राधिका आप्टे, सोनम कपूर

रेटिंग: 2/5

पिछले कुछ सालों से बॉलीवुड फिल्मों में समाजिक मुद्दों को जोर शोर से भुनाया गया है। और इसमें कई फिल्म मेकर सफल भी रहे हैं। जब इस तरह के मुद्दे फिल्मों के माध्यम से उठाए जाते हैं तो सबसे पहले ये मुद्दे सोशल मीडिया पर धमाल मचाते हैं। जैसे अक्षय कुमार की फिल्म ‘पैडमैन’ के लिए #PadmanChallenge को बॉलीवुड इंडस्ट्री के अलावा अन्य लोगों ने भी बढ़चढ़क सपोर्ट किया।

समाज में बदलाव लाने के मकसद से ट्विंकल खन्ना, अक्षय कुमार और आर बाल्की ने एक फिल्म बनाने का निर्णय लिया। जिसका नाम ‘पैडमैन’ दिया गया जो रियल लाइफ हीरो अरुणाचलम मुरुगनांथम के जीवन पर बेस्ड है। मुरुगनांथम ने अपनी पत्नी के लिए सैनेटिरी पैड बनाया ताकि पीरियड से समय पत्नी को ज्यादा तकलीफ ना हो। पद्मश्री से सम्मानित मुरुगनांथम ने पूरे देश की महिलाओं के लिए कम दाम में सैनेटिरी पैड का इनोवेशन किया। आज देश के 23 राज्यों में इनके प्लांट बहुत कम कीमत में चल रहे हैं। आज देश दुनियां में उन्हें मेन्स्ट्रूअल मैन के नाम से जाना जाता है।

लक्ष्मीकांत चौहान (अक्षय कुमार) अपनी पत्नी गायत्री (राधिका आप्टे) के साथ हंसी खुशी वाली जिंदगी जी रहा है। वह एक दिन देखता है कि महंगे पैड की वजह से पीरियड के समय उसकी पत्नी अखबार और बेकार कपड़ों का इस्तेमाल करती है। वह पत्नी की तकलीफ देख परेशान हो जाता है, और सेनिटरी पैड बनाने का निश्चय करता है। वह रुई से पैड बनाता है पर रिजेक्शन के चलते उसका यह योजना विफल हो जाती है। पर लक्ष्मीकांत को समझ में आता है कि पैड के उत्पादन की लागत बहुत कम है, लेकिन बहुराष्ट्रीय कंपनियां उन्हें उस कीमत से 40 गुना अधिक में बेच रहे हैं। जिसके बाद वह तय करता है कि अब वह खुद इसका उत्पादन करेंगे इसके लिए जब लोगों कि जरूरत पड़ती है तो शर्म आड़े आती है। आखिर इस पहल में लक्ष्मीकांत कैसे सफल होता है इसके लिए आपको फिल्म देखनी होगी।

फिल्म में अक्षय कुमार ने किरदार को बारीकी से पकड़ा है और इसमें राधिका आप्टे भी कामयाब रही हैं। पर फिल्म में सोनम कपूर का रोल मजबूत नहीं है। फिल्म का सब्जेक्ट अच्छा है, बात समाज को जागृत करने की है। पर इसे फिल्म की तरह देख पाना मुश्किल नजर आता है। फिल्म फिल्म कम डॉक्यूमेंट्री ज्यादा लगती है। इसे डॉक्यूमेंट्री बनाया गया होता तो ज्यादा बेहतर होता।

अगर आप इस सब्जेक्ट सा वाकिब हैं, और चाहते हैं कि बदलाव से जुड़ें तो फिल्म देखने की कोई खास जरूरत नहीं है। अगर आपको इस विषय के बारे में जानकारी नहीं है और अक्षय के तगड़े वाले फैन हैं तो देख सकते हैं।

 

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