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अस्तित्व की तलाश करते साप्ताहिक बाजार...


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मुंबई - बीजेपी सरकार ने गाजे बाजे के साथ साप्ताहिक बाजारों की शुरुआत की थी। जहां पर किसान और ग्राहक सीधे एक दूसरे के सीधे संपर्क में आते थे। ग्राहक किसानों से डायरेक्ट सब्जियां खरीदते थे। 

इसमें कोई बिचौलिया नहीं होते थे। ऐसी उम्मीद थी कि इन बाजारों को अच्छा खासा प्रतिसाद मिलेगा। पर इन साप्ताहिक बाजारों के ऊपर अब काली छाया मडरा रही है। ग्राहकों का इन बाजारों में आना जाना बंद है। जिसकी वजह से किसानों को भारी नुकसान हो रहा है, उनकी सब्जियां सड़ रही हैं। अब सिर्फ विधानसभा परिसर, वर्ली जैसे ही कुछ साप्ताहिक बाजार शुरु हैं अगर यहां भी ग्राहकों की कमी रही तो आने वाले वक्त में ये बाजार भी बंद हो सकते हैं। 

राज्यपाल के अभिभाषण में 92 आठवडी बाजार में से 23 साप्ताहिक बाजार मुंबई महापालिका परिसर में होने का उल्लेख किया गया था, लेकिन इन साप्ताहिक बाजार की स्थिति बहुत बुरी है। मुंबई के विधानसभा परिसर, वरली और अन्य दो-चार जगहों को छोड़ दिया जाए तो बाजार तो मिलने वाले प्रतिसाद में बहुत कमी है। श्री संत शिरोमणी शेतकरी साप्ताहिक बाजार सरकार के नकारात्मक रवैए के चलते बंद होने की कगार पर है। जिसके प्रति सरकार को ध्यान देने की जरूरत है।


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