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बॉम्बे हाईकोर्ट ने सार्वजनिक रोजगार में अनाथों के लिए महाराष्ट्र सरकार के आरक्षण पर सवाल उठाया

कोर्ट ने सरकार से पुछा की क्या आप बाल श्रम को बढ़ावा दे रहे है?

बॉम्बे हाईकोर्ट  ने सार्वजनिक रोजगार में अनाथों के लिए महाराष्ट्र सरकार के आरक्षण पर सवाल उठाया
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बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार को अनाथ बच्चों  ( reservation for orphan childrens)   के लिए रोजगार में आरक्षण प्रदान करने वाले उसके परिपत्र के संबंध में महाराष्ट्र सरकार से सवाल करते हुए जवाब मांगा।  मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति अभय आहूजा की खंडपीठ ने कहा, "18 साल से कम उम्र के किसी भी व्यक्ति को नौकरी पर नहीं रखा जा सकता है,  क्या बच्चे से काम कराया जा सकता है? इसका मतलब है कि आप बाल श्रम को बढ़ावा दे रहे हैं।”

इसके साथ ही कोर्ट ने कहा की "जहां तक शिक्षण संस्थानों में आरक्षण का सवाल है, ठीक है। लेकिन किसी बच्चे को रोजगार में आरक्षण कैसे दिया जा सकता है?" 

महिला एवं बाल कल्याण विभाग द्वारा अगस्त 2021 में जारी एक सरकारी संकल्प (GR) को रद्द करने की मांग करने वाली दो कार्यकर्ताओं, अमृता करवंडे और राहुल कांबले की एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा था जिसमें 0-18 साल के अनाथ बच्चों को 1% का लाभ उठाने के लिए तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया था। शिक्षा और रोजगार में आरक्षण भी दिया गया था।  याचिकाकर्ता ने जीआर में श्रेणी सी को चुनौती दी है जो अनाथ बच्चों को आरक्षण प्रदान करता है जिनके माता-पिता का निधन हो गया है और वे रिश्तेदारों के साथ रह रहे हैं। हालांकी इसके लिए अनाथों की जाति की जानकारी भी मांगी गई थी।  

पीठ ने बताया कि जीआर ने अनाथों के लिए रोजगार में आरक्षण दिया और याचिकाकर्ताओं से सवाल किया कि इसे चुनौती क्यों नहीं दी गई। "क्या एक नाबालिग के साथ अनुबंध पर हस्ताक्षर किए जा सकते हैं?" 

सरकार की ओर से पेश अधिवक्ता रीना सालुंखे ने कहा कि जीआर का उद्देश्य अनाथ बच्चों को रियायतें प्राप्त करने में सक्षम बनाना था।

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