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मुंबई की गंदगी का जिम्मेदार कौन?


मुंबई की गंदगी का जिम्मेदार कौन?
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देशभर के ए-1 और ए कैटिगरी के 407 स्टेशनों में किया गया स्वच्छता सर्वे जारी हो गया है। इस सर्वे में मुंबई टॉप 10 की लिस्ट से बाहर हो गया है। बांद्रा जंक्शन ने कुछ हद तक लाज रखते हुए 15वां स्थान हासिल किया। पर सबसे अधिक भीड़भाड़ वाला स्टेशन दादर स्वच्छता की एबीसीडी से काफी पीछे है। वैसे तो यह सर्वे रेलवे जंक्शन का था। अगर हम मुंबई के लोकल स्टेशनों की बात करें तो पता लगता है कि हमारे लोकल स्टेशन भी गंदगी से भरे हैं। आखिर इसका जिम्मेदार कौन है? रेलवे, यात्री या फिर स्टॉल लगाने वाले?

(यह फोटो दादर स्टेशन से वेस्ट की तरफ जाने वाले गेट का है, गेट के बाहर बीचोबीच कचरे का ढेर

हमने सच्चाई जानने के लिए दादर स्टेशन का मुयाना किया। तो हमें पता चला कि गंदगी के लिए सिर्फ रेलवे ही जिम्मेदार नहीं है, इसके लिए यात्री और स्टॉल लगाने वाले भी उतने ही जिम्मेदार हैं। दादर के सभी प्लेटफॉर्म पर डस्टबिन लगे हुए हैं। सूखा और गीला कचरा डालने के लिए अलग अलग डस्टबिन लगाए गए हैं। पर हमने देखा कि जो डस्टबिन गीला कचरा डालने के लिए लगाए गए हैं।

(दादर के प्लेटफॉर्म 1 पर विस्तारीकरण का काम जारी है, यहां पर लोगों ने पान, मावा खाकर जोर शोर से थूका)

उनमें यात्रियों ने पान, मावा खाकर थूका है। आखिर हम इतने लापरवाह क्यों? क्या रेलवे को साफ रखने की जिम्मेदारी अकेले रेलवे की है। क्या आपको पता है कि थूक से टीबी जैसी भयानक बीमारियां जन्म लेती हैं।

(पास में ही डस्टबिन है, पर कचरा नीचे पड़ा है, इसका जिम्मेदार कौन? हम एक सवाल खुद से भी पूछें)

इस पर डॉ. सागर कजबजे का कहना है, थूकने से टीबी, वायरल फीवर, इसके अलावा वायु के माध्यम से फैलने वाली तमाम बीमारियां हो सकती हैं। पर इंडिया में इस समय बड़ी बीमारी थूकने से जो उभरकर आ रही है, वह है टीबी। इंडिया में टीबी के ज्यादातर मरीज ड्रग एडिक्ट हैं और उनके थूक के माध्यम से लोगों को टीबी जल्दी पकड़ती है और यह ज्यादा खतरनाक होती है।

हालांकि ऐसा नहीं है कि सभी यात्री गंदगी करने के लिए जिम्मेदार हैं। पर कुछ फीसदी ऐसे यात्री जरूर हैं जो रेलवे को जाने अंजाने में बीमार बना रहे हैं। ऐसा नहीं है कि हम कुछ ठान लें और कर ना सकें। जमाना था जब रेलवे स्टेशनों पर लोग सिगरेट फूंकते नजर आते थे, पर हम जागरुक हुए और हमने रेलवे स्टेशनों पर सिगरेट पीना छोड़ा और छुड़वाया।

नाम ना बताने कि शर्त पर एक स्टॉल पर काम करने वाले व्यक्ति ने कहा, प्लेटफॉर्म पर गंदगी करने के लिए यात्री जिम्मेदार हैं। हमारे खुद के डस्टबिन होते हैं, हम उसी में कचरा डालते है और अपने स्टॉल के आस पास झाड़ू भी खुद ही लगाते हैं।

(बारिश से पहले प्लेटफॉर्म पर टपटपाता ऑयल मिक्स पानी)

यात्रियों के साथ साथ रेलवे भी गंदगी के लिए जिम्मेदार है, यात्रियों को कचरा डालने के लिए डस्टबिन नहीं मिलेगी तो यात्री ट्रैक या प्लेटफॉर्म पर कचरा डालेंगे। लोकल के बहुत सारे ऐसे स्टेशन हैं जहां पर डस्टबिन नहीं लगे हैं। अगर लगे हैं तो सही समय पर उन्हें खाली नहीं किया जाता है। साथ ही लोकल स्टेशनों के बहुत से ट्रैक के बगल में खुले गटर हैं।चूहे छलांग लगा रहे हैं।

(ट्रैक पर सैर करता मदमस्त चूहा)

आमतौर पर ऐसा देखा गया है कि जब हम गंदगी देखते हैं तो थूकने का मन करता है। इसलिए इन बातों पर रेलवे को भी ध्यान देने की आवश्यक्ता है। सफाई ही सफाई को बढ़ावा देगी। अगर रेलवे द्वारा सही से मॉनिटरिंग की जाए तो गंदगी पर काबू पाया जा सकता है।

(दादर के प्लेटफॉर्म 1 के ट्रैक पर खुला गटर )

रेलवे एक्टिविस्ट भावेश पटेल का कहना है, रेलवे को गंदा करने के लिए यात्री और रेलवे दोनों जिम्मेदार हैं। डस्टबिन पर घोटाले हो रहे हैं, स्टेशन पर जितने डस्टबिन होने चाहिए उतने नहीं हैं। जब प्लेटफॉर्म पर डस्टबिन नहीं होंगे तो यात्री क्या करेंगे? मजबूरन उन्हें कचरा ट्रैक पर डालना पड़ेगा। कुछ ही यात्री होते हैं जो प्लेटफॉर्म पर कचरा डालते हैं। रेलवे ने सर्विसेस को आउटलेट किया है। फिर भी ये समस्याएं आ रही हैं, तो इसका मतलब साफ है कि रेलवे ठीक तरह से मॉनिटरिंग नहीं कर रहा है। अगर रेलवे चाहे तो स्टेशनों को साफ सुथरा रखा सकता है, क्योंकि रेलवे का दायरा सीमित है। वेस्टर्न रेलवे स्टेशनों की हालत थोड़ी ठीक भी है, पर हार्बर और सेंट्रल लाइन की हालते बेहद ही खराब है।    

आखिर में हम बस यही कहना चाहेंगे कि मुंबई हम सबकी है और हम सबका फर्ज है कि इसे साफ सुथरी और बामारी रहित बनाएं। अबसे ना हम कचरा करेंगे और ना करने देंगे।

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