बॉम्बे हाईकोर्ट ने पुणे पुलिस को फटकार लगाते हुए उसकी उस प्रेस कांफ्रेंस पर सवाल उठाये जो एलगार परिषद एवं प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश मामले में दो दिन पहले की गयी थी। एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है तब पुलिस इस मामले को लेकर कैसे प्रेस कांफ्रेंस कर सकती है।
पुणे पुलिस के खिलाफ याचिका हुई दाखिल
आपको बता दें कि खुद को भीमा-कोरेगांव हिंसा का शिकार बतानेवाले सतीश गायकवाड ने याचिका दायर कर यह मांग की है कि UAPA से संबंधित सभी मामले राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) देखती है तो पुणे पुलिस इस मामले में कैसे लोगों को गिरफ्तार कर सकती है. दरअसल गायकवाड का इशारा उन पांच सामाजिक कार्यकर्ताओं की तरफ था जिन्हे पुलिस ने कथितरूप से नक्सलियों से संबंध बता कर गिरफ्तार किया था।
पुणे पुलिस पर उठे सवाल?
गायकवाड ने अपनी याचिका में कहा था कि एक ओर महाराष्ट्र पुलिस इस मामले की सुनवाई कैमरों की निगरानी में करवाना चाह रही है, जबकि दूसरी ओर वह स्वयं गिरफ्तार माओवादी कार्यकर्ताओं की चिट्ठियों का खुलासा प्रेस कॉन्फ्रेंस में कर रही है।
कोर्ट ने लगाई फटकार
कोर्ट से सोमवार को इसी से जुड़े मामले सुनवाई की। न्यायमूर्ति भाटकर ने महाराष्ट्र पुलिस को झाड़ते हुए कहा कि जब मामला सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है, तो पुलिस उससे संबंधित विषय पर प्रेस कॉन्फ्रेंस कैसे कर सकती है ? भाटकर ने कहा कि ऐसे मामलों में तथ्यों का खुलासा करना गलत है। कोर्ट अब इस मामले में अगली सुनवाई 7 अगस्त को करेगा।
क्या था मामला?
गौरतलब है कि पिछले शुक्रवार को महाराष्ट्र पुलिस के अतिरिक्त महानिदेशक (कानून-व्यवस्था) परमवीर सिंह ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी। जिसमें उन्होंने कथितरूप से माओवादी कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारियों से जुड़े कई ठोस सबूतों को पेश करते हुए उनकी गिरफ्तारी को जायज बताया था, क्योंकि इन पांचों कार्यकर्ताओं को नजरबंद किए जाने के बाद इनकी गिरफ्तारी को गलत बताते हुए पुलिस पर चौतरफा हमले शुरू हो गए थे।
पढ़ें: पुलिस ने नक्सल और आतंकवाद का गठजोड़ बताया कहा, हमारे पास 'इनके' खिलाफ पुख्ता सबूत
जनहित याचिका दायर
पुलिस द्वारा ली गई पत्रकार परिषद पर कोर्ट में एक जनहित याचिका भी दायर की गई है, जिसकी अगली सुनवाई 7 सितंबर को होगी।