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मुंबई में है एक जापान, जहां का है अनोखा इतिहास

हैरान करने वाली बात यह है कि यहां का पुजारी एक जापानी है। तो जिस मंदिर में इतनी सारी खासियत हो वहां कौन नहीं जाना चाहेगा।

मुंबई में है एक जापान, जहां का है अनोखा इतिहास
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 मुंबई जैसे शहर में शांति पाने के लिए दूर देश या फिर विदेश तक घूमने के लिए जाते हैं। लेकिन मुंबई में ही एक ऐसा मंदिर है जहां के कण-कण में एक अजीब तरह की शांति है। वैसे तो यह मंदिर अधिक विख्यात नहीं है लेकिन यहां की अलौकिक शांति में शामिल होने के लिए एक बार यहां जाना चाहिए। वैसे एक बात और चौकानें वाली है कि यह बौद्धों का मंदिर है, दूसरी चौकानें वाली बात यह है कि इस इसे जापानियों ने बनाया था, तीसरी चौकानें वाली बात यह है कि यहां हिंदी, इंग्लिश के अलावा अभी भी जापानी भाषा में भी सूचनाएं और जानकारियां लिखी हुई हैं, चौथी हैरान करने वाली बात यह है कि यहां का पुजारी एक जापानी है। तो जिस मंदिर में इतनी सारी खासियत हो वहां कौन नहीं जाना चाहेगा।

अब आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि, भला मुंबई के ऐसा मंदिर कहाँ है? तो आपको बता दें कि यह मंदिर मुंबई के वर्ली इलाके में है। वर्ली इलाके में पोद्दार हॉस्पिटल के ठीक सामने। इस बौद्ध मंदिर का नाम है ‘निप्पोजन म्योहोज। वैसे तो इस मंदिर की देखरेख ढाले परिवार के हाथ में है और अपने पति राजाराम ढाले की मौत के बाद यशोदा ढाले इसकी देखरेख करती हैं। लेकिन मंदिर और का संचालन करते हैं जापानी नागरिक और बौद्ध भिक्षु 'टी मोरिता'। जो मंदिर में जापानी पद्धति से पूजा पाठ कराते हैं।

इस मंदिर से ही सटा हुआ एक जापानी कब्रिस्तान भी है, जहां अब कोई दफनाया नहीं जाता। इस बारे में मोरिता कहते हैं कि, मोरिता कहते हैं, "इस कब्रिस्तान में अब मुर्दों को यहाँ दफ़न नहीं किया जाता क्योंकि जापानी लोग अब पार्थिव शरीर को वापस जापान ले जाते हैं।"

वे आगे इतिहास के बारे में जानकारी देते हुए कहते हैं कि, जब जापानी व्यावसायी मुंबई में कपास का व्यापार करने आए थे तो उनके साथ जापान की मशहूर ‘गीशा’ औरतें भी थीं। ‘गीशा’ औरतों को जापानी मर्द दिल बहलाने के लिए ग़ुलामों या फिर वेश्याओं की तरह इस्तेमाल करते थे।

मोरिता के मुताबिक 'गीशा' औरतों को मैं वेश्या नहीं अदाकारा कहूंगा क्योंकि जापानी भाषा में 'गीशा' का अर्थ कलाकार होता है।"

बताया जाता है कि इस मंदिर को जापानी बौद्ध भिक्षु निचीदात्सू फुजी ने साल 1930 में बनाया था। निचीदात्सू फुजी महात्मा गांधी के अच्छे मित्रों में से एक थे। गांधीजी के अहिंसा आंदोलन में निचीदात्सू फुजी ने भी भाग लिया था। 

इस मंदिर के बारे में लोग बताते हैं कि पहले यहां मठ था, लेकिन साल 1956 में यह जगह बिरला के कब्जे में चली गयी, तो मठ को आधुनिक मंदिर के रूप में बना गया गया।


इस मंदिर की संरचना पर बात करें तो मंदिर में जापानी अक्षरों से खुदे दो स्तंभों देखने को मिलते हैं, जिन्हें श्रद्धा स्तंभ कहा जाता है। इस स्तंभों की स्थापना साल 1973 में  की गई थी। बाईं ओर जो स्तंभ है उसपर रखे दो बड़े पत्थरों को हटाकर, सीढ़ियों के रास्ते नीचे पानी तक उतरा जा सकता है।"

दाईं ओर के स्तंभ पर जापानी भाषा में एक मंत्र 'नाम-म्योहो-रेंगे-क्यो' लिखा है, जापानी मान्यता के अनुसार इस मंत्रक का अर्थ सृष्टि का मूल आधार है।


मंदिर की रचना काफी सुंदर है, मंदिर में घुसते ही आपको प्रार्थना करने के लिए एक सुंदर और शांत एरिया दिखाई देगा। मंदिर के दीवारों पर बौद्ध दार्शनिक के चित्र दिखाई देंगे। मंदिर में हर दिन सुबह 6 बजे और शाम 5:30 से 7 बजे तक प्रार्थना की जाती है।

मंदिर में दर्शानर्थियों का स्वागत आम तौर पर मोरिता ही करते हैं। मारिता ही इस मंदिर के बारे में आने वाले दर्शानर्थियों को जानकारी देते हैं।


मंदिर में जाने के लिए आपको पते पर जाना चाहिए

पत्ता पोद्दार हॉस्पिटल के सामने, एनी बेसेंट रोड, वर्ली, मुंबई

समय: सुबह .३० से दोपहर १२.३०

           शाम .३० से ७.३०

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