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कामातुर, कौमार्यभंग और इंद्रियसुख जैसे शब्दों से शिक्षा विभाग सवालों के घेरे में


कामातुर, कौमार्यभंग और इंद्रियसुख जैसे शब्दों से शिक्षा विभाग सवालों के घेरे में
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शिक्षा विभाग द्वारा जारी की गयी किताब 'बाल नचिकेता' के लेकर शिक्षा विभाग विवादों में आ गया है। कक्षा एक से लेकर 5वीं तक के बच्चों को नियमित पाठ्यक्रम से इतर पढ़ने के लिए महापुरुषों और संस्कृति से जुडी किताबें भी दी जाती हैं। बाल नचिकेता उन्ही किताबों में से है। बताया जाता है कि इस किताब में जो शब्द प्रयुक्त किये गए हैं उसे लेकर शिक्षकों के साथ साथ बच्चों के पैरेंट्स में भी नारजगी है।


पुस्तक को ही हटाओ 

बाल नचिकेता पुस्तक में मिलन, कामातुर, कौमार्यभंग और इंद्रियसुख जैसे शब्दों का प्रयोग किया गया है। शिक्षकों के साथ साथ पैरेंट्स का भी यह कहना है कि इन शब्दों का अर्थ बच्चों को नहीं समझ में आएगा। तो वहीँ पैरेंट्स और टीचरों की यह भी मांग है कि इस तरह का कोई चैप्टर बच्चों के लिए कोई जरुरी नहीं है इसीलिए 'बाल नचिकेता' पुस्तक को ही हटा देना चाहिए।


मुश्किल है समझाना 

एक शिक्षक ने बताया कि यह किताब कक्षा 1 से लेकर 5 तक के छात्रों के लिए आवंटित की  गयी है, अगर पढ़ाने के दौरान किसी बच्चे ने इन शब्दों का अर्थ पूछ लिया तो इतने छोटे बच्चों को समझाना हमारे लिए कठिन होगा।

इस बारे में अधिक जानकारी के लिए जब बालभारती के संचालक सुनील मगर से  किया गया तो उन्होंने बस इतना ही कहा कि इस पुस्तक का चुनाव संबंधित विषयों के विशेषज्ञों द्वारा किया गया है।  



हुआ है पुस्तक घोटाला

विरोधी पक्ष के नेता राधाकृष्ण विखे पाटील पुस्तक खरीदी में भारी घोटाले का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक से संबंधित 'भारतीय विचार संस्था' के कार्यालय में 'बाल नचिकेत' की किताब मात्र 20 रुपये में उपलब्ध है। तो वहीं इस किताब को सरकार ने 50 रुपये में खरीदने का ऑर्डर दिया है। इस पर 8.17 करोड़ रुपये अधिक खर्च कर रही है। विखे पाटील ने सवाल उठाया कि आखिर सरकार भारतीय विचार संस्था की किताबों पर क्यों इतनी रूचि क्यों दिखा रही है?

- राधाकृष्ण विखे पाटील, विरोधी पक्षनेता, विधानसभा



छोटे बच्चों को पढ़ने के लिए इस तरह की किताब आ रही है। उनके सामने इस तरह के अश्लील शब्द बोले जाएंगे तो उन्हें क्या समझ में आएगा? अगर वे इन शब्दों का  अर्थ पूछेंगे तो उन्हें क्या बताया जायेगा? अब प्रश्न उठता है कि  जिस कमिटी ने इस पुस्तक को पास किया है क्या उन्होंने इस पढ़ा था?

- प्रशांत रेडीज, सचिव, मुंबई मुख्याध्यापक संघटना

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