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बंद हुआ मुबंई विश्वविद्यालय का "मस्त " रेडियो स्टेशन !


बंद हुआ मुबंई विश्वविद्यालय का "मस्त " रेडियो स्टेशन !
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रेडियों पिछलें कई सालों से आम आदमी की आवाज बना हुआ है। आजादी के पहले और आजादी के दौरान रेडियों ने लोगों तक स्वतंत्रता के कई संदेश पहुंचाने में नाही सिर्फ एक अहम भूमिका निभाई बल्की देश के कोने कोने को एक सुत्र में बांध कर रखा। लेकिन अब इसी सुचना प्रसार माध्यम पर खतरें के बादल मंडरा रहे है। जहां एक तरफ शहर की एक रेडियों जॉकी को शहर के प्रशासन के कार्य पर सवाल उठाने पर उसे किसी अन्य मुद्दे को लेकर नोटिस भेज दिया जाता है तो वहीं दूसरी तरफ एक कम्युनिटी रेडियों भी धीरे धीरे दम तोड़ता दिख रहा है।


मुंबई विश्वविद्यालय में चलनेवाले 107.8 कम्युनीटी रेडियों बंद हो गया है। 8 फरवरी 2008 में शुरु हुए एक कम्युनीटी रेडियों के लिए विश्वविद्यालय ने 25 लाख रुपये का आवंटन किया था। इतना ही नहीं , इस रेडियों स्टेशन के लिए हर साल 12 लाख रुपये का प्रावधान भी किया गया था। बहुत ही कम समय में इस रेडियों स्टेशन ने लोगों में अपनी पहचान बना ली। मॅथ ऑन रेडिओ, दुर्ग महाराष्ट्र का, नाम के कई शो इस रेडियों स्टेशन पर काफी प्रसिद्ध हुए। लेकिन मार्च 2017 में इस रेडियों को बंद कर दिया गया।

मुंबई विश्वविद्यालय के आलसी रवैये के कारण इस रेडियों को बंद करना पड़ा । 9 साल पहले इस रेडियो स्टेशन की शुरुआत की गई। रेडियों स्टेशन में अत्याधुनिक यंत्र भी लगाए गये। लेकिन धीरे धीरे इस रेडियो स्टेशन पर सरकारी रवैया अपना असर दिखाने लगा। किसी भी कार्य के मरम्मत के लिए कई सरकारी फाईलों से होकर गुजरना पड़ता था। तकनीकी खराबी को सुधारने के लिए भी कई तरह के सरकारी इजाजतो से गुजरना पड़ता था।

रेडियों स्टेशन के ट्रांसमीटर को 9 साल तक इस्तेमाल किया जाता है। नई तकनीक के साथ साथ ट्रांसमीटर को भी बदलना जरुरी है। लेकिन सरकारी कामों के चलते ये कार्य और भी जटील हो जाता है। छोटी सी तकनीकी खराबी को भी ठिक करने के लिए कुलगुरु की इजाजत लेनी पड़ती है।

इस रेडियो स्टेशन में काम करनेवाले पंकज आठवले का कहना है की मुंबई विश्विद्यालय ने इस रेडियो स्टेशन के कार्यभार को जरा भी गंभीरता से नहीं लिया। इस रेडियों में कोई तकनीकी बदलाव ना होने का जिम्मेदार विश्वविद्यालय प्रशासन है।

रेडियों के एडिटर किरण सावंत का कहना है की रेडियों बंद होने का कारण सिर्फ और सिर्फ विश्वविद्यालय प्रशासन है। एक ट्रांसमीटर बंद होने की सुचना विश्वविद्यालय को बार बार दी गई। लेकिन इसकी प्रक्रिया काफी लंबी होने के कारण उन्हे ट्रांसमीटर नहीं मिला। अगर समय पर ट्रांसमीटर मिलता तो आज रेडियो स्टेशन ऑनएयर होता।


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