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क्या सचमुच आनंददायी होगा इस बार का मानसून?

भारतीय मौसम विभाग (IMD) के वरिष्ठ वैज्ञानिक तथा मुंबई प्रादेशिक मौसम विभाग के पूर्व उप महासंचालक कृष्णानंद होसालीकर का इस बारे में कहना है कि इस बार का मानसून 98 प्रतिशत से ज्यादा सक्रिय होगा.

क्या सचमुच आनंददायी होगा इस बार का मानसून?
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देश के दूसरे सबसे बड़े राज्य महाराष्ट्र (Maharashtra) में मानसून (monsoon) की विशेष रूप से प्रतीक्षा की जाती है, क्योंकि यहां के किसान मानसूनी वर्षा पर ज्यादा निर्भर रहते हैं. राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में जल संसाधनों की संख्या कम होने के कारण अधिकांश किसान मानसूनी वर्षा पर ही ज्यादा निर्भर रहते हैं. इस बार मानसून के जल्दी सक्रिय होने का अनुमान व्यक्त किया गया है. मौसम विभाग की मानें तो इस वर्ष राज्य में 1 जून से ही सक्रिय हो जाएगा, इतना ही नहीं इस वर्ष अच्छी वर्षा के भी आसार नज़र आ रहे हैं. यानि इस बार झमाझम वर्षा (rain) से पूरा राज्य सराबोर हो जाएगा. भारतीय मौसम विभाग (IMD) के वरिष्ठ वैज्ञानिक तथा मुंबई प्रादेशिक मौसम विभाग के पूर्व उप महासंचालक कृष्णानंद होसालीकर का इस बारे में कहना है कि इस बार का मानसून 98 प्रतिशत से ज्यादा सक्रिय होगा.

2003 से मौसम विभाग दीर्घकालीन पूर्वानुमान देता आ रहा है. 2017 राज्य में क्लाइमेंट फार कास्टिंग सस्टिम को उपयोग में लाया जा रहा है. मानसून के जरिए किसान वर्षभर का प्रोग्राम तैयार करता है. कृषि विज्ञान केंद्र के माध्यम से तहसील स्तर पर मौसम की जानकारी मिलेगी. इसके लिए वाट्सअप ग्रुप तैयार किया जा रहा है. बहुत से किसान मौसम विभाग से जुड़े हैं और वे यह मानकर चल रहे हैं कि मौसम विभाग जो कह रहा है, उसमें पूरी सच्चाई है. कृषि क्षेत्र में सिंचाई के लिए राज्य के सभी क्षेत्रों में लगभग एक जैसी स्थिति देखने को मिल रही है. उत्तर महाराष्ट्र, पश्चिम महाराष्ट्र, विदर्भ, मराठवाडा तथा कोकण इन सभी क्षेत्रों की तुलना में मुंबई, ठाणे, में ज्यादा वर्षा होती है. हालांकि कोकण तथा विदर्भ क्षेत्र में तुफान तथा बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं के कारण इस क्षेत्र  के किसानों को भारी तबाही सहन करनी पड़ी है.

फ्लड वार्निंग सिस्टम की ओर से जिला, तहसील बाढ़ की आशंका के बारे में जानकारी दी जाती है. भारी वर्षा से उत्पन्न होने वाली स्थितियों का सामना के लिए तैयारियां अंतिम चरण में हैं. वर्षा काल में किसानों को हर साल यही प्रतीत होता है, कहीं उनकी फसल बर्बाद न हो जाएं. नदी के किनारे स्थित क्षेत्रो में आकाश फटने, बिजली गिरने की आशंका बहुत कम रहती है.

आकाश फटने की घटना का वक्त ज्यादा से ज्यादा 10 मिनट तक का होता है और इस मिनट में आकाशीय बिजली से तबाही मचती है, उसकी जितनी निंदा की जाए वह कम ही नहीं होगी. विदर्भ तथा मराठवाडा में आमतौर पर जलस्तर काफी कम है. यहां के जलाशयों, नदियों तथा पानी के अन्य स्त्रोतों में जल का भंडारण बहुत कम होने की वजह से सिंचाई के लिए पानी की किल्लत महसूस की जाने लगी है. मानसूनी वर्षा पर किसानों की निर्भरता इस बात का प्रमाण है कि राज्य में जल के प्राकृतिक संसाधनों को सुव्यवस्थित करने के बारे में उतना नहीं सोचा गया, जितना सोचा जाना चाहिए था.

कुल मिलाकर यह कहना गलत नहीं कि राज्य में मानसूनी वर्षा अच्छी हुई तो अतिरिक्त जल भंडारण कैसे किया जाए इस पर भी ध्यान दिया जाना जरूरी है. सरकार, कृषि मंत्री तथा कृषि विशेषज्ञों को एक मंच पर लाकर सिंचाई के लिए ज्यादा के ज्यादा पानी कैसे उपलब्ध हो, इस पर गंभीरता से विचार किया जाना जरूरी है. किसानों को आधुनिक तकनीक के साथ-साथ कृषि क्षेत्र में किए गए शोधों के बारे में विस्तार से बताया जाना जरूरी है. जल के प्राकृतिक संसाधनों को पुनजीर्वित करने के लिए क्या किया जाना चाहिए, इसके बारे में भी व्यापक रणनीति बनानी जरूरी है.

गांव को पानी के मामले में आत्मनिर्भर बनाने के लिए हर वर्ष हर गांव के कुओं समेत अन्य जलाशयों की सफाई करनी चाहिए ताकि मानसून काल शुरु होने से पहले ही हर क्षेत्र के जल संकट के बारे  में यह सुनिश्चित किया जाए कि इस वर्ष के मानसूनी वर्षा का जल कुछ इस तरह से सुनियोजित किया जाये कि संकट की स्थिति में वर्षा का संरक्षित जल सिंचाई के उपयोग में लाया जा सके. किसानों ने इस बार यह आस लगायी है कि मानसून बहुत आनमंदायी होगा, अब देखना यह है क्या सचमुच इस बार का मानसून किसानो के लिए आनंददायी साबित होता है या नहीं.

Note: लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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