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गणपति बाप्पा को बनाते हैं बिहारी हाथ!


गणपति बाप्पा को बनाते हैं बिहारी हाथ!
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गणपति बाप्पा मोरया... गणपति बाप्पा मोरया... बस डेढ़ महीने बाकी हैं, और मुंबई की हर गली में यही गूंज सुनाई देने वाली है। गणेशोत्सव के मौके पर मुंबई में जगह जगह हजारों गणपति बाप्पा विराजमान होते हैं। हर धर्म और संप्रदाय के लोग बाप्पा में आस्था रखते हैं। आम आदमी से लेकर बिजनेसमैन, क्रिकेटर, राजनेता और बॉलीवुड एक्टर सभी बाप्पा को घरों में स्थापित करते हैं। पर क्या आपने कभी सोचा है, बाप्पा कि जो हम इतनी बड़ी बड़ी मूर्तियां देखते हैं, उन्हें स्वरूप देने में किसका हाथ है?

दरअसल बाप्पा को स्वरूप देने में बिहार राज्य के कारीगरों का हाथ है। आपको लग रहा होगा कि मूर्तियां मुंबई में बनाई जाती हैं, तो इन्हें मुंबईकर या महाराष्ट्र के मूर्तिकार ही बनाते होंगे, पर यह सत्य नहीं हैं। बाप्पा को विशालकाय स्वरूप देने में ज्यादा से ज्यादा बिहार के मूर्तिकारों का ही हाथ है। इसकी सबसे बड़ी वजह माहाराष्ट्र के मूर्तिकारों की मूर्तिकला में घटती दिलचस्पी है।


महाराष्ट्र के मूर्तिकारों में बाप्पा पर घटती दिलचस्पी 

 

लालबाग स्थित पोहरकर आर्ट्स कारखाना पिछले 80 सालों से गणपति और मां दुर्गा की मूर्तियां बनाने का काम कर रहा है। वर्तमान में इसे सुशांत पोहरकर (34) चला रहे हैं। इनके यहां भी ज्यादातर बिहार और उत्तर प्रदेश के मूर्तिकार ही काम करते हैं। उनका कहना है, कुछ सालों से 2-5 फीसदी लोग ही महाराष्ट्र के कोकण से मूर्तिकार हैं। बाकी बिहार और उत्तर प्रदेश से ही हैं।

हमने पूछा कि ऐसा क्यों? महाराष्ट्र के मूर्तिकार क्यों काम नहीं कर रहे? इस पर उन्होंने कहा कि, यह अपनी अपनी पसंद की बात है। शायद उन्हें इस काम में लगाव नही रहा इसलिए वे अब यह काम छोड़ते जा रहे हैं।    


विजय खातू का मत

मुंबई में विजय खातू आर्ट्स का बड़ा नाम है। ये हर साल लगभग 200 बाप्पा की बड़ी मूर्तियां बनाते हैं। उन्होंने भी माना है कि उनके कारखाना में भी सबसे ज्यादा कारीगरों की संख्या बिहार से है।    


4 महीनें में तैयार होते हैं बाप्पा

साल के 12 महीनों में मूर्ति बनाने का काम सिर्फ 4 महीने ही होता है। इस साल 25 अगस्त को गणेश चतुर्थी है। इसी को ध्यान में रखते हुए कारखानों में जून से काम शुरु कर दिया गया है। ताकि समय पर बाप्पा को तैयार करके भेजा जा सके। जो मुंबई में रहता है वह 4 महीने काम करके बाकी समय बेकार नहीं बैठ सकता। इसलिए मुंबई के कारीगर नदारद रहते हैं। इसी के चलते इसका लाभ बिहार और अन्य राज्यों से आए मूर्तिकारों को मिलता है।


बारिश में कारखाना फिर खुद का धंदा

बिहार से आए मूर्तिकार 4 महीने बाप्पा की मूर्तियां बनाने का काम करते हैं। उसके बाद ये अपने गांव लौट जाते हैं। ज्यादातर लोगों ने गांव में खुद की छोटी-मोटी किराना की दुकान या फिर आर्टिफीशियल ज्वेलरी की दुकान खोल रखी हैं। गांव लौटने के बाद इसी धंधे में लग जाते हैं। उनका मानना है कि बारिश के समय में धंधे में मंदी रहती है। इसी के चलते वे मुंबई आ जाते हैं।


12 घंटे ड्यूटी और कारखाना में रैन बसेरा

मुंबई में मूर्ति बनाने के ज्यादातर कारखानों में सुबह 8 बजे काम शुरु होता है और रात को 8 बजे तक चलता है। इनका खाना पार्सल आता है। जोकि उनकी सैलरी से कट होता है। रात होने पर ये लोग कारखाना में ही सो जाते हैं। सुबह होते ही फिर बाप्पा को आकार देने में जुट जाते हैं।


भुगतान

नाम ना बताने की शर्त पर एक मूर्तिकार ने हमें बताया कि यहां पर भुगतान महीने के हिसाब से किया जाता है। मैं नया हूं, इसी साल बिहार के कारीगरों के एक ग्रुप के साथ मुंबई आया। मुझे महीने के 15 हजार रुपए मिलते हैं। पर जो सीनियर होते हैं उन्हें 50-60 हजार भी महीने के दिए जाते हैं। खाने का पैसा हमारी वेतन से ही काटा जाता है। चाय हमें फ्री में दी जाती है।


बाप्पा देते हैं पार्टटाइम जॉब

मुंबई में 11 दिनों तक गणेशोत्सव का पर्व धूमधाम के साथ मनाया जाता है। देशभर से लोग बाप्पा के दर्शन करने यहां पहुंचते हैं। सबसे ज्यादा भीड़ लालबागचा राजा के दर्शन के लिए होती है। इस मौके पर चाय वाले से लेकर बड़ी बड़ी होटल के मालिकों तक के धंधे को बाप्पा बढ़ाते हैं। वहीं विद्यार्थियों को भी बाप्पा पार्ट टाइम काम करने का मौका देते हैं। मनोज गुप्ता खालसा कॉलेज से आर्ट में ग्रेजुएशन कर रहा है। उसे पेंटिंक का शौख है। अपने इस शौख से उसने थोड़ा पैसा कमाना चाहा और वह पोहरकर आर्ट्स आ पहुंचा। अब यहां वह बाप्पा की मूर्तियों को पेंट करता है और रात में पढ़ाई करता है।

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