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कोरोना के शिकंजे से कैसे बाहर निलकेगा महाराष्ट्र?


कोरोना के शिकंजे से कैसे बाहर निलकेगा महाराष्ट्र?
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देश की आर्थिक राजधानी मुंबई (finance capital Mumbai) में कोरोना का शिकंजा कुछ इस कदर कस चुका है कि अब उससे निकल पाना सहज संभव नहीं है। तो वहीं महाराष्ट्र (maharashtra) में पिछले सप्ताह की गई दो दिवसीय तालेबंदी (lockdown) के परिणाम से इस बात का खुलासा हो गया कि राज्य सरकार के आदेश का भी लोगों की तरफ से अच्छी तरह से पालन किया जाता है। अधिकाश शहरों तथा गावों में कोरोना (Covid19) के नए मरीजों की संख्या भले ही पहले के मुकाबले कुछ कम हुआ हो, लेकिन कोरोना के खिलाफ जंग अभी-भी कम नहीं हुई है। कोरोना की पहले लॉट की गंभीरता की ओर से उतना ध्यान नहीं दिया गया, जितना दिया जाना चाहिए था। पिछले वर्ष 2020 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (prime minister narendra modi) ने देश भर में तालाबंदी की थी, उस वक्त से शुरु हुआ तालेबंदी का दौर अभी-भी जारी है। सभी रोजगार, व्यवसाय तथा उद्योगधंधों पर ताले लग जाने की वजह से लोगों को मानसिक तथा आर्थिक तनाव के दौर से गुजरना पड़ा था।

कोरोना को लेकर राज्य में जारी विकेंड तालाबंदी के बीच मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे (uddhav thackeray) की ओर से बुलायी गई सर्वपक्षीय बैठक में एकमत के स्थान पर मतभेद का ही दर्शन अधिक हुए। एक ओर कोरोना फैलाव की चेन तोड़ने का आव्हान और दूसरी ओर कामकाज रुक जाने से लोगों को होने वाली परेशानी से लोगों के बीच सरकार की एक गलत छवि सामने आई है। 'फेडरेशन ऑफ रिटेल ट्रेडर्स वेल्फेयर एसोसिएशन'ने फुटकर व्यापारियों क लिए की गई पैकेज की मांग यह इस परेशानी की जड़ है। राज्य सरकार अब इस तरह के पैकेज केवल एक वर्ग को नहीं दे पाएगी। अगर सरकार इसे देना चाहती है तो हर दिन कमा कर कमाकर खाने वाले फुटपाथ के दुकानदार से लेकर सब्जी विक्रेताओं और चर्मकार, नाई समाज से लेकर होटल तथा मॉल में काम करने वाले मजूदरों तक सभी को देना पड़ेगा।

कोरोना वायरस (Coronavirus) की पहली लाट में केंद्र सरकार ने जैसे सीधे बैंक के खातों में आर्थिक मदद की धनराशि के पैसे जमा किए, कुछ ऐसा ही काम राज्य सरकार को भी करना होगा। सर्वपक्षीय बैठक में इस तरह की योजना पर  राज्य सरकार की ओर से विलंब न करते हुए तथा गलतियां न होने संबंधी विचार करके अमल में लाया जाए। देश में कोरोना की दूसरी लॉट में भी सबसे ज्यादा नुकसान महाराष्ट्र को ही पहुंचा है। राज्य में टीकाकरण (vaccination) के आकड़े भले ही सबसे ज्यादा हो, लेकिन कोरोना महामारी (corona pandemic) के खिलाफ जंग में सरकार, विपक्ष, सामाजिक संस्थाएं अभी-भी एकजुट नहीं हुई हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री के साथ बातचीत करते हुए कहा था कि कुछ काम  राज्यपाल को सौंपने की जानकारी दी थी। मुख्यमंत्री ने जिस तरह से टॉस्क फोर्स का निर्माण किया है, इसी तरह सभी पूर्व मुख्यमंत्री अनौपचारिक गट तुरंत गठित करनी जरूरी है। शरद पवार, मनोहर जोशी, नारायण राणे, अशोक चव्हाण, सुशील कुमार शिंदे, पृथ्वीराज चव्हाण, देवेंद्र फडणवीस इन सभी पूर्व मुख्यमंत्री अनेक समस्याओं पर प्रकाश डाला। चार ही प्रमुख राजनीति दल प्रतिनिधित्व करने वाले नेता है।

महाराष्ट्र में की जा रही मांग को केंद्र सरकार ने आता रेमडेसिविर नामक औषधि की निर्यात पर प्रतिबंध किया है। ये इंजेक्शन कितना गुणकारी है।  औषधि तथा टीकाकरण के बारे में जी घबराहट की भावना राज्य में  फैली हुई है। राज्य में अनेक स्थानों पर एक ही वेटिलेंटर, बेड बचे नहीं है। अब केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर (prakash javdekar) ने कहा है कि महाराष्ट्र को 11 वेटिलेंटर दिए जाएंगे, ऐसा कहा है। पिछले वर्ष 25 मार्च को कोरोना की पहली लॉट का देश भर में कहर बरपा था। वर्षभर में मिले अनुभव ने स्वास्थ्य विभाग, सरकार तथा समाज ने अगर सीख ली होगी तो वह बर्ताव से दिखने का यही समय है। 

महाराष्ट्र में टीकाकरण ने तेजी पकड़ी है। इसी के माध्यम से आज नहीं तो कल समूह प्रतिकार शक्ति तैयार होगी। अब सर्वपक्षीय बैठक में दिखी दूरियां और अविश्वास का वातावरण को पीछे छोड़कर एकसाथ आगे बढ़ने की जरूरत है। सरकार तथा विपक्ष के वाचाल नेताओं ने मिडिया से बातचीत करना बंद किया तो राज्य पर बहुत बड़ा उपकार होगा। सामान्य नागरिक अपनी तरफ से कोरोना के खिलाफ लढ़ाई लढ रहा है,  उसे सबसे पहले धैर्य, आधार और हाथ देने का काम सरकार तथा विपक्ष का है, लेकिन सरकार यह न करते हुए कोरोना के खिलाफ लढाई में दलीय राजनीति लाने वालों तथा लबाडी तथा भ्रष्टाचार करने वालों को कदापि माफ नहीं किया जा सकता।

कोरोना विषाणु पर कुछ दिनों जरूर नियंत्रण पा लिया जाएगा। अगली पीढ़ियों को कोरोना सर्दी से ज्यादा परेशान नहीं कर पाएगा, लेकिन आज कोरोना ने विश्व को अपनी मुठ्ठी में कर लिया है, ऐसे दौर में कोरोना से सामना करते समय अपने हर बार के राजनीतिक हिसाब, दांवपेच तथा आरोप-प्रत्यारोप को अलग करना चाहिए। महाराष्ट्र में बड़ी तेजी से कोरोना प्रभावितों तथा मृतकों के आकडे बढ़ते वक्त केंद्र तथा राज्य सरकार के बीच टीके की आपूर्ति को लेकर किए जा रहे दावों-प्रतिदावों से एक अलग ही चर्चा ने जन्म ले लिया है। यह बहुत ही खेदजनक तथा धिक्कार योग्य है. आज मुंबई, पनवेल, सांगली, सातारा, गोंदिया, चंद्रपूर में अनेक केंद्रो में ठीके का भंडार ही शेष नहीं बचा है। नवी मुंबई, यवतमाल, कोल्हापुर, वाशीम इन जिलों में भी टीकाकरण किसी भी समय रोका जा सकता है। महाराष्ट्र के  स्वास्थ्य मंत्री राजेश का कहना है कि टीके नहीं आए तर तीन दिन बाद राज्य में टीकाकरण बंद कर दिया जाएगा। दूसरी ओर से केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर का कहना है कि महाराष्ट्र में कोरोना टीके के पांच लाख डोज बेकार कर दिए गए हैं।

महाराष्ट्र में विपक्षी दल की सरकार होने के कारण केंद्र सरकार ने टीका वितरित करते समय महाराष्ट्र पर अन्याय कर रही होगी तो इस तरह की राजनीति को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने भी महाराष्ट्र सरकार कार्यक्षमता के आधार पर पर ठीकाकरण नहीं कर रही है। देश में सबसे ज्यादा टीकाकरण महाराष्ट्र में ही किया गया, इस बात को भी हर्षवर्धन को याद रखना होगा। मुंबई और महाराष्ट्र की कुछ जिम्मेदारी केंद्र सरकार लेगी या नहीं। महाराष्ट्र सरकार किस तरह के असफल साबित हो रही है, केंद्र सरकार यह दिखाने में लगी हुई है। केंद्र सरकार किस तरह से महाराष्ट्र के साथ सैतला व्यवहार कर रही है, ऐसी शिकायत राज्य सरकार की ओर से की जा रही है, यह ठीक है। कुल मिलाकर अगर यह कहा जाए कि महाराष्ट्र से कोरोना का कहर क्यों नहीं जा रहा है तो इसके लिए  मनमाना काम करने वाली जनता तथा अपने-अपने स्वार्थ के लिए केंद्र तथा राज्य सरकार के बीच जारी टकराव ही जिम्मेदार है।

NOTE: (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, यह उनके अपने विचार हैं) 

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