1996 में भाजपा के जयवंतीबेन मेहता की जीत को अगर छोड़ दिया जाए तो इस सीट पर कांग्रेस ही हावी रही है। इस सीट से कांग्रेस के मुरली देवड़ा चार बार और मिलिंद देवड़ा दो बार लोकसभा पहुंच चुके है। इस सीट पर देवरा परिवार की काफी अच्छी पकड़ मानी जाती है। हालांकी साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में शिवसेना के उम्मीदवार इस सीट से जीतकर सांसद पहुंचे थे।
गटप्रमुख से लेकर सांसद का सफर
1968 में पार्टी में उन्हे गट प्रमुख की जिम्मेदारी दी गई। अरविंद सावंत ने 1969 में सीमा अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह 30 वर्षों के लिए महानगर टेलीफोन निगम कामगार संघ के अध्यक्ष हैं। उन्हें देश में 'द बेस्ट यूनियन लीडर ’पुरस्कार से सम्मानित किया है। फेम इंडिया ऑर्गनाइजेशन द्वारा सर्वश्रेष्ठ सासंद पुरस्कार के लिए 'अरविंद सावंत' को हाल ही में सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार दिया गया। पिछलें पांच सालों में अरविंद सावंत की संसद में उपस्थिती 98 प्रतिशत थी, उन्होंने संसद के 279 चर्चाओं में भाग लिया। उन्होंने निर्वाचन क्षेत्रों और अन्य मुद्दों पर संसद में अधिकतम 463 प्रश्न पूछे। सांसद निधि के 25 कोरड़ रुपये में से उन्होने 15 करोड़ रुपये खर्च किये तो वही 3 करोड़ रुपये का काम अभी भी जारी है।
निर्वाचन क्षेत्र का इतिहास
दक्षिण
मुंबई निर्वाचन क्षेत्र कभी मराठा इलाका था। हालाँकि, संसदीय चुनावों में
मुस्लिम समुदाय की राय निर्णायक रही है। दक्षिण मुंबई लोकसभा सीट पर
कांग्रेस का पलड़ा ही हमेशा से भारी रहा है। कांग्रेस के मुरली देवड़ा
1980 के उप-चुनावों में पहली बार संसद के लिए चुने गए थे। बाद में 1989 और
1991 के दोनों लोकसभा चुनाव देवरा ने जीते। हालांकी 1996 के लोकसभा चुनाव
में बीजेपी की जयवंतीबेन मेहता ने मुरली देवरा को हराया था। 2004 के
लोकसभा चुनावों में, मुरली देवड़ा ने अपने बेटे मिलिंद देवड़ा के लिए यह
सीट छोड़ दी ।
मिलिंद देवड़ा लगातार 10 साल तक सांसद बने रहे। 2014 के चुनावों में, मिलिंद देवड़ा को शिवसेना के उम्मीदवार अरविंद सावंत ने 1 लाख 28 हजार वोटों से हरा दिया।
उद्धव और बालासाहेब के वफादार
अरविंद सावंत को दिवंगत बालासाहेब
ठाकरे और शिवसेना पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे के करिबी और वफादार माना जाता
है। इसके अलावा, सावंत शिवसेना नेता और मीडिया के प्रवक्ता के रूप में
पार्टी के पक्ष का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं।