EVM में प्रयुक्त होने वाले NOTA (NONE OF THE ABOVE) को लेकर चाहे जो भी कहें लेकिन एक बात यह तय है कि लोगों ने नोटा को स्वीकार कर लिया है और लोग इसका उपयोग अपने विरोध प्रकट करने के लिए धड़ल्ले से करते नजर आ रहे हैं। महाराष्ट्र में हुए विधानसभा चुनावों में इस बार रिकॉर्ड लोगों ने NOTA का बटन दबाया। एक आंकड़ें के मुताबिक़ 2014 में हुए पिछले चुनावों की तुलना में इस बार NOTA का इस्तेमाल 113% अधिक हुआ है।
जो आंकड़ें सामने आये है उसके अनुसार NOTA का सबसे ज्यादा इस्तेमाल जोगेश्वरी ईस्ट में किया गया। यहां 12031 मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाया है जो इस सीट पर पड़े कुल वोटों का 8.08% रहा। 2014 के मुकाबले में यह 6 गुना अधिक है। बताया जाता है कि इस सीट से इतने अधिक NOTA का इस्तेमाल लोगों ने इसीलिए किया क्योंकि जोगेश्वरी ईस्ट से सटा ही आरे का जंगल है। और लोग आरे विवाद को लेकर सरकार से खफ़ा हैं, इसीलिए यह भी कहा जा सकता है कि NOTA के जरिये लोगों ने अपना विरोध प्रकट किया है।
आंकड़ों पर नजर डाले तो यह साफ़ तौर पर पता चलता है कि पूरे मुंबई में कुल 49.28 लाख वोटों में से 3% वोट NOTA को गए हैं जबकि साल 2014 के चुनावों में यह संख्या 1.03% थी. बोरिवली सीट पर बीजेपी और कांग्रेस उम्मीदवार के बाद सबसे ज्यादा वोट NOTA को ही मिले। मुलुंड, अंधेरी ईस्ट, सायन कोलीवाड़ा और भांडुप में भी पिछली बार की अपेक्षा इस बार अधिक लोगो ने NOTA का बटन दबाया।
घाटकोपर ईस्ट में जहां 2014 में 1850 लोगों ने NOTA इस्तेमाल किया था तो वहीं इस बार 3294 लोगों ने NOTA का बटन दबाया जबकि यह सीट बीजेपी के दबदबे वाली सीट मानी जाती है। और जैसा की सभी को अपेक्षा थी बीजेपी के उम्मीदवार राम कदम ही यहां से जीते। एक और चौकानें वाली बात यह है कि वर्ली सीट से जहां से आदित्य ठाकरे चुनाव लड़ रहे थे काफी चर्चित सीट थी और आदित्य को लेकर वहां के लोगों में काफी उत्साह भी था, इसके बाद भी वहां 6000 मतदाताओं ने NOTA प्रयुक्त किया।
अगर मुंबई के बाहर की बात करें तो ठाणे की 18 सीटों पर 73,800 वोट पड़े जो कुल वोटों का 2.40% रहा। और पनवेल में बीजेपी और पीडब्ल्यूपी के बाद नोटा तीसरे स्थान पर रहा।
NOTA को लेकर राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि कोई खास मुद्दा नहीं होने के बावजूद नोटा को मिले वोटों से लोग हैरान हैं। अब यह समीक्षा करने की जरूरत है कि इतने सारे लोग आखिर क्यों सभी कैंडिडेट्स को नकार रहे हैं। इनका कहना है कि नोटा की ताकत लोगों को समझ में आने लगी है। अब राजनीतिक दलों के लिए बेहतर कैंडिडेट उतारने के लिए कोई चारा नहीं होगा।
यह सब देखते हुए यह कह सकते हैं कि NOTA पर लोगों का भरोसा बढ़ा है। वह भी तब जब NOTA को कोई संवैधानिक अधिकार नहीं दिए गए हैं। अगर इसे संवैधानिक अधिकार दिए गए होते तो शायद NOTA की संख्या काफी अधिक होती। क्योंकि बहुत सारे लोगों का यह मानना है कि NOTA का बटन दबाने से कुछ भी मतलब नहीं है क्योंकि इससे वोट खराब जाता है। अगर इसे संवैधानिक अधिकारी दिए गए होते तो बात कुछ और थी।