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शिक्षा का ऑस्कर जीतने वाले दिसले की उपलब्धियों को पढ़ कर रह जाएंगे दंग

दिसले ने विदेशों में रणजीत माइक्रोसॉफ्ट, गूगल, ब्रिटिश काउंसिल, प्लिपग्रिड, प्लकर्स जैसे इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशंस के साथ काम किया है।

शिक्षा का ऑस्कर जीतने वाले दिसले की उपलब्धियों को पढ़ कर रह जाएंगे दंग
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रंजीत सिंह दिसले, यह नाम आज किसी पहचान का मोहताज नहीं है। महाराष्ट्र के सोलापुर के रहने वाले रंजीत सिंह दिसले पेशे से प्राइमरी के शिक्षक हैं और उन्हें शिक्षा जगत का ऑस्कर कहे जाने वाले ग्लोबल टीचर अवार्ड से सम्मानित किया गया है। 

इंग्लैंड के वार्के फाउंडेशन द्वारा साल 2014 से हर साल ग्लोबल टीचर प्राइज शिक्षकों को दे रही है। जो शिक्षक अभूतपूर्व काम करते हैं, यह इनाम उन्हें ही मिलता है। इस साल दुनिया के 140 देशों के 12 हजार से ज्यादा टीचर्स इस दौड़ में थे। जिसमें से मात्र 10 फाइनलिस्ट ही चुने गए। 

32 साल के विजेता रंजीत सिंह दिसले (Ranjit singh Disale) को इस प्राइज के तहत 10 लाख डॉलर (लगभग 7 करोड़ 38 लाख रुपए) का पुरस्कार मिला। यह पहली बार है जब किसी भारतीय को यह प्राइज मिला है। यूनेस्को और लंदन स्थित वार्के फाउंडेशन की तरफ से दिए जाने वाले ग्लोबल टीचर प्राइज की घोषणा 3 दिसंबर को की गई थी।

अपनी महानता दिखाते हुए इनाम की राशि का एलान होते ही दिसाले ने आधी राशि बाकी प्रतिभागी शिक्षकों में बांटने की घोषणा कर दी। वे कहते हैं कि शिक्षक हमेशा देने और बांटने में यकीन करते हैं। बता दें कि इनाम की आधी राशि बांटने पर हरेक रनर-अप के हिस्से 40 हजार पाउंड आएंगे।

अब आइए जानते हैं कि, दिसले ने आखिर किया क्या? दरअसल दिसले ने शिक्षा को तकनीकी के साथ जोड़ दिया। किताबों में दिखने वाला QR कोड दिसले की ही देन है। साथ ही दिसले ने गांव गांव जाकर लड़कियों के लिए शिक्षा का महत्व समझाया। अनपढ़ किसानों के बीच जागरूकता पैदा की। इनके प्रयासों का ही परिणाम था कि, गांवों में बाल विवाह पर काफी हद तक सुधार हुआ। 

साल 2009 से दिसले ने एक छोटे से गांव के प्राइमरी स्कूल में पढ़ाना शुरू किया। तब वहां मवेशियों को रखने के लिए शेड बना हुआ था। रणजीत ने प्रशासन और स्थानीय लोगों से गुहार लगवाकर स्कूल को ठीक करवाया।

इस बारे में रंजीत बताते हैं कि, शुरू में भाषा की समस्या आई। लगभग सारी किताबें अंग्रेजी में थीं, इसके बाद मैंने एक-एक करके सभी किताबों का मातृभाषा में अनुवाद किया, बल्कि उसमें तकनीक भी जोड़ दी। ये तकनीक थी क्यूआर कोड देना ताकि स्टूडेंट वीडियो लेक्चर अटेंड कर सकें और अपनी ही भाषा में कविताएं-कहानियां सुन सकें।

वे आगे कहते हैं कि, 'स्कूल आने वाले बच्चों को पढ़ाई में मन लगा रहे, इसलिए 6 महीने मोबाइल और लैपटॉप की मदद से उन्हें गाने, कहानी और कार्टून दिखाते थे। साथ ही उनकी नॉलेज बढ़ाने की कोशिश भी करते रहे। बच्चों ने धीरे-धीरे स्कूल आना शुरू कर दिया। लॉकडाउन से पहले तक स्कूल में फुल स्ट्रेंथ में बच्चे पढ़ने आते रहे।'

यह दिसले के ही प्रयसों का फल था कि, साल 2017 में महाराष्ट्र सरकार ने घोषणा की कि वह सभी श्रेणियों के लिए राज्य में क्यूआर कोड पाठ्यपुस्तकें शुरू करेगी। अब तो एनसीईआरटी ने भी ये घोषणा कर दी है।

बताया जाता है कि, सिर्फ शिक्षा के क्षेत्र में नहीं रणजीत सिंह ने दुनिया के आठ देशों में 5,000 छात्रों को साथ लेकर एक शांति सेना बनाई है। इन देशों में भारत, पाकिस्तान, ईरान, इराक, इजरायल, फिलिस्तीन, अमेरिका और उत्तर कोरिया जैसे देश शामिल हैं। इन देशों में शांति स्थापित करने की कोशिश में उन्होंने लेट्स क्रॉस द बॉर्डर प्रोजेक्ट शुरू किया।

इसके अलावा दिसले ने विदेशों में रणजीत माइक्रोसॉफ्ट, गूगल, ब्रिटिश काउंसिल, प्लिपग्रिड, प्लकर्स जैसे इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशंस के साथ काम किया है। यही नहीं वे वर्तमान में वर्चुअल फील्ड ट्रिप प्रोजेक्ट के जरिए दुनियाभर के 87 देशों के 300 से ज्यादा स्कूलों में बच्चों को पढ़ा रहे हैं।

पिछले नौ सालों में रणजीत ने 12 अंतर्राष्ट्रीय और 7 राष्ट्रीय पुरस्कार जीते हैं। इसके अलावा 12 एजुकेशनल पेटेंट उनके नाम पर हैं। माइक्रोसॉफ्ट के CEO सत्या नडेला ने रणजीत के काम की तारीफ करते हुए स्पेशल वीडियो हिट रिफ्रेश लॉन्च किया है।

दिसले जैसे विरले ही होते हैं, जो अपने काम की धुन में इतने मस्त रहते हैं कि, न तो किसी देश दूनिया की परवाह है औऱ न ही किसी इनाम के मोहताज। उनका सबसे बड़ा इनाम ही वे पढ़ी लिखी लड़कियां हैं जो अपने दम पर समाज और देश को प्रगति के पथ पर आगे ले जाने के लिए हमेशा प्रयासरत हैं।

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