Advertisement

वोट के लिए कुछ भी करेगा, राज ठाकरे उत्तर भारतीयों के साथ

कभी टैक्सी और ऑटो चालकों से मारपीट करना, कभी फेरीवालों को मारना तो कभी दुकानों में लगे होर्डिंग को मराठी भाषा में करने का तुगलकी फरमान जारी करना, तो कभी मराठियों को नौकरी से निकाले जाने पर आंदोलन करना, यानी मनसे हर वो काम कर रही थी जिससे उत्तर भारतीयों को आसानी से निशाना बना कर मराठियों के बीच अपनी पैठ बनाई जा सके।

वोट के लिए कुछ भी करेगा, राज ठाकरे उत्तर भारतीयों के साथ
SHARES

वह साल 2006 का मार्च महीना था, जब महाराष्ट्र की राजनीति में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) नामकी एक राजनीतिक पार्टी का प्रादुर्भाव हुआ। इस पार्टी की नींव रखी बाल ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे ने। कट्टर मराठी अस्मिता की बात करने वाली इस मनसे पार्टी को नेशनल स्तर लोगों ने साल 2008 नवंबर महीने में उस समय सुना, जब कई उत्तर भारतीय के कई छात्र मुंबई में रेलवे की परीक्षा देने आए थे, तो मनसे के कार्यकर्ताओं ने उस समय कई छात्रों के साथ यह कह कर मारपीट की कि वे मराठियों का हक़ मार रहे हैं।  

कट्टरता ही आधार 

राजनीति में एंग्री मैन के रूप में अपने पहचान बनाने वाले राज ठाकरे का राजनीतिक एजेंडा भाषा और क्षेत्रवाद पर आधारित था। खुले मंच सार्वजानिक रूप से उत्तर भारतियों के खिलाफ जगह उगलने वाले राज ठाकरे जब बोलते तो लोगों को बाल ठाकरे की याद आ जाती। कहा जाता है कि बाल ठाकरे की झलक लोगों को उनके उध्दव ठाकरे में नहीं बल्कि राज ठाकरे में दिखाई देती है।

बढ़ी लोकप्रियता 

अपने राजनीतिक शुरुआत में राज ठाकरे ने भी अपने चाचा बाल ठाकरे की तरह भाषा और क्षेत्रवाद को मुख्य हथियार बनाया। शुरुआत में मनसे की लोकप्रियता का आलम ऐसा था कि कांग्रेस और एनसीपी से अलग होकर लगभग 200 लोगों ने मनसे ज्वाइन किया। 2009 के चुनाव में मनसे को लोगों ने दिल खोल कर वोट दिया और उसने विधानसभा चुनाव में 288 सीटों में 13 सीटें जीती। अपने शुरूआती दिनों में ही इतनी सीटें जितना किसी भी पार्टी के लिए बड़ी बात थी। यही नहीं नासिक महानगर पालिका में तो मनसे ने 40 सीटें जीत कर अपनी ही सरकार बना ली। इससे मनसे का आत्मविश्वास तो बढ़ा ही साथ ही उत्तर भारतीयों के खिलाफ नफरत के माहौल को भी बढ़ावा मिला। 

40 लाख उत्तर भारतीयों के व्याप्त डर 

कभी टैक्सी और ऑटो चालकों से मारपीट करना, कभी फेरीवालों को मारना तो कभी दुकानों में लगे होर्डिंग को मराठी भाषा में करने का तुगलकी फरमान जारी करना, तो कभी मराठियों को नौकरी से निकाले जाने पर आंदोलन करना, यानी मनसे हर वो काम कर रही थी जिससे उत्तर भारतीयों को आसानी से निशाना बना कर मराठियों के बीच अपनी पैठ बनाई जा सके। कहने को तो मुंबई में 40 लाख उत्तर भारतीय हैं लेकिन मनसे के गुंडों ने उनके बीच डर और भय का माहौल बना दिया था। कट्टरता इतनी कि मनसे के जितने भी प्रवक्ता थे सभी हिंदी चैनलों वालों को भी मराठी भाषा में ही प्रतिक्रिया देते थे।

पार्टी के अस्तित्व पर सवाल 

लेकिन प्रकृति का एक शाश्वत सत्य यह भी है कि जो जितना काम समय में आगे बढ़ता है उतने ही कम समय में पीछे भी हटता है। साल 2014 के चुनाव में मनसे की लोकप्रियता काफी गिर गयी और विधानसभा चुनाव में मात्र ही सीट जीती। जितने वाले उम्मीदवार का नाम शरद सोनवणे है जिन्होंने पुणे के जुन्नर से यह सीट निकाली। राज ठाकरे खूब रैली करते खूब आंदोलन करते और उनके साथ लोगों की भीड़ भी जुटती लेकिन भीड़ वोटों में तब्दील नहीं हो पाती थी। कमजोर होती मनसे का फायदा उठाया शिवसेना ने। आज हालात ऐसे हैं कि बीएमसी में मनसे का एक मात्र नगरसेवक रह गया है बाकी छह लगों ने शिवसेना का दामन थाम लिया। मनसे के लिए स्थिति बद से बदतर होती चली गई, हालात ऐसे बने कि पार्टी के अस्तित्व पर ही सवाल उठने लगे।

राज ठाकरे उत्तर भारतीयों के साथ 

खैर धीरे-धीरे ही सही राज ठाकरे को यह आभास होने लगा कि अगर राजनीति के जमीन पर लंबी पारी खेलनी है तो सभी को अपने साथ लेकर चलना होगा, इसीलिए यूपी बिहार के 40 लाख वोटरों को देखते हुए राज ठाकरे ने कुछ ऐसा किया कि जिसकी कल्पना लोगों ने बहुत कम की होगी। राज ठाकरे को उत्तर भारतीयों का प्रतिनिधित्व करने वाले एक संगठन द्वारा आयोजित कार्यक्रम में बुलाया गया जिसे उन्होंने स्वीकार भी कर लिया। यह कार्यक्रम कांदिवली में दो दिसंबर को होना है और इसका आयोजन उत्तर भारतीय महापंचायत संघ द्वारा किया जा रहा है।

चुनावी जमीं तैयार करते राज 

राजनीति के जानकर इस बात का भी कयास लगा रहे हैं कि जब शिवसेना राम मंदिर मुद्दे पर यूपी के फैजाबाद (अब अयोध्या) जा सकते हैं तो मनसे ने भी अपने एजेंडे में प्राथमिकताओं में बदलाव किया है। जानकर बताते हैं कि अगले साल चुनाव है, तो ऐसे में उत्तर भारतीयों से संपर्क के लिए राज को किसी उत्तर भारतीय मंच की तलाश थी और उन्हें यह मंच मिला। अपनी स्थिति को देखते हुए राज यह जानते हैं कि महाराष्ट्र में उत्तर भारतीयों को साथ लिए बिना सत्ता हासिल करना आसान नहीं है। मुंबई मेट्रोपोलिटिन रीजन से लेकर पुणे, नासिक, विदर्भ में उत्तर भारतीय बेहद प्रभावी हैं।

इस मुद्दे पर मनसे के नेता देशपांडे ने कहा कि 'किसी मुद्दे को लेकर हमारे विचार भिन्न हो सकते हैं लेकिन, किसी समाज के मंच पर जाकर अपने विचार रखने में कोई बुराई नहीं है।' तर्क देते हुए वे आगे कहते हैं कि 'अगर पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी आरएसएस के मंच पर जा सकते हैं तो राज ठाकरे उत्तर भारतीयों के मंच पर क्यों नहीं जा सकते।'

खैर अब यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि राज ठाकरे उत्तर भारतीय मंच से क्या बोलते हैं, लेकिन यह तो सभी जानते हैं कि राजनीति बदलती विचारधाराओं का खेल हो गया है। यहां न तो कोई  दोस्त है कर न ही कोई दुश्मन। कब क्या हो जाए कोई नहीं जानता। इसीलिए किसी शायर ने आम लोगों की स्थिति पर बहुत अच्छी बात कही...

क्या खोया, क्या पाया जग में,

मिलते और बिछुड़ते मग में,

मुझे किसी से नही शिकायत

यद्यपि छला गया पग-पग में...

संबंधित विषय
Advertisement
मुंबई लाइव की लेटेस्ट न्यूज़ को जानने के लिए अभी सब्सक्राइब करें