शुक्रवार को एनसीपी के नेता और विधायक जितेंद्र आव्हाड ने 'मातोश्री' जाकर शिवसेना के कार्यकारी अध्यक्ष उद्धव ठाकरे से मुलाकत की। दोंनो नेताओं के बीच लगभग 45 मिनट तक बातचीत हुई। इस मुलाकत अटकलें लगाई जा रहीं थीं कि यह भेंट आगामी चुनाव को लेकर हो सकती है, लेकिन आव्हाड ने इस मुलाकात को मात्र औपचारिक मुलाकात ही बताया।
मात्र सदिच्छा भेंट
आव्हाड और उद्धव ठाकरे की मुलाक़ात को लेकर जैसे ही खबरें सामने आई राजनीतिक गलियारे में यह चर्चा का विषय बन गया. हालांकि मुलाकात के बाद आव्हाड ने ट्वीट कर इसे सिर्फ सदिच्छा भेंट बताया।
दबाव की राजनीति
जैसे-जैसे चुनाव करीब आ रहा है वैसे-वैसे कई नेताओं के दूसरे पार्टियों के नेताओं ने साथ मुलाकात करने का सिलसिला बढ़ता ही जा रहा है। सभी राजनीतिक दल अपनी-अपनी सेटिंग करने में लगे हुए हैं। यही नहीं चुनाव में सीटों के बंटवारे को लेकर गठबंधन पार्टियों में रार होना कोई नई बात नहीं है, यही हाल कांग्रेस और एनसीपी का भी है। कयास लगाए जा रहे हैं कि अगर एनसीपी और कांग्रेस के बीच सीटों को लेकर कोई समझौता नहीं होता है तो एनसीपी शिवसेना के साथ संभावनाएं तलाश रही है।
राजनीती के जानकारों का यह भी कहना है कि इस मुलाकात से एनसीपी एक तरह से कांग्रेस के ऊपर दबाव बनाने का काम रही है। साथ ही बीजेपी के ऊपर हमेशा हमलावर रहने वाली शिवसेना ने यह भी घोषणा की है कि वह अगला चुनाव बीजेपी के साथ नहीं बल्कि अकेले लड़ेगी। इसी कारण एनसीपी को गठबंधन करने का यह सही समय लगा होगा। क्या आने वाले समय में बीजेपी, कांग्रेस जैसी बड़ी पार्टियों की जगह एनसीपी और शिवसेना जैसी छोटी पार्टियों का गठबंधन चुनावी समीकरण तस्वीर बदल सकता है?