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आषाढी एकादशी ( देवशयनी एकादशी) पर सीएम देवेंद्र फड़नवीश ने वर्षा बंगलो में की पूजा, वडाला के प्रति पंढरपूर मंदिर में दर्शन के लिए उमड़ी भीड़


आषाढी एकादशी ( देवशयनी एकादशी) पर सीएम देवेंद्र फड़नवीश ने वर्षा बंगलो में की पूजा, वडाला के प्रति पंढरपूर मंदिर में दर्शन के लिए उमड़ी भीड़
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आषाढी एकादशी के मौके पर राज्य के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवनीस ने अपने अाधिकारिक निवास वर्षा पर भगवान विठ्ठल की पूजा की।  कुछ कारणों के वजह से सीएम पंढरपूर में दर्शन नहीं कर पाए। देवशयनी एकादशी के मौके पर वडाला के पंढरपूर मंदिर में भगवान के दर्शन के लिए सुबह से भक्तों की लंबी लाइन लगी है।


क्या है देवशयनी एकादशी का महत्व
आषाढ़ शुल्क एकादशी को देवशयनी एकादशी कहते हैं । इसे हरिशयनी एकादशी भी कहते हैं और इस दिन से भगवान विष्णु का शयन काल शुरू हो जाता है। चातुर्मास या चौमासा की शुरुआत भी इसी दिन से हो जाती है। सनातन मान्यताओं के अनुसार देवताओं के शयन के चलते विवाह संस्कार, मुंडन, गृह प्रवेश और मांगलिक कार्य बंद हो जाते हैं। यानी शनिवार का भड़ल्या नवमी के अबूझ सावे के बाद अब देवउठनी एकादशी तक कोई सावा नहीं होने से अगले चार महीने तक किसी भी तरह के शुभ कार्यों में रोक लग जाएगी।

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दैत्य बलि को दिया है वरदान

दैत्य बलि को दिया है वरदान वैसे पुराणों में ये भी वर्णन है कि इसी दिन भगवान हरि ने वामन रूप में दैत्य बलि के यज्ञ में तीन पग दान के रूप में मांगे थे। भगवान ने पहले पग में संपूर्ण पृथ्वी, आकाश और सभी दिशाओं को ढ़क लिया था। अगले पग में सम्पूर्ण स्वर्ग लोक ले लिया। तीसरे पग में बलि ने अपने आप को समर्पित करते हुए सिर पर पग रखने को कहा। इस प्रकार के दान से भगवान ने प्रसन्न होकर पाताल लोक का अधिपति बना दिया और कहा वर मांगो। बलि ने वर मांगते हुए कहा कि भगवान आप मेरे महल में नित्य रहें। कहते हैं ये चार महीने भगवान पाताल में इसलिए ही शयन करते हैं।


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