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गांधी परिवार के तिलिस्म से बाहर कब निकलेगी कांग्रेस

सवाल यह कि क्या कांग्रेस कभी गांधी नाम के मायाजाल से निकल पाएगी, सवाल यह कि क्या इतनी बड़ी और पुरानी पार्टी में इतने बड़े बड़े दिग्गज नेताओं के होते हुए उनकी काबिलियत पर भरोसा क्यों नहीं किया जा रहा है।

गांधी परिवार के तिलिस्म से बाहर कब निकलेगी कांग्रेस
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कांग्रेस (Congress) के अध्यक्ष चुनाव के समय CWC (congress working committee) में जो जोरदार बहस हुई और सुई घूम कर जिस तरह से एक बार फिर सोनिया गांधी (sonia gandhi) पर आकर टिक गई उससे कांग्रेस जैसी बड़ी और पुरानी पार्टी पर सवाल ही खड़े होते हैं। सवाल यह कि क्या कांग्रेस कभी गांधी नाम के मायाजाल से निकल पाएगी, सवाल यह कि क्या इतनी बड़ी और पुरानी पार्टी में इतने बड़े बड़े दिग्गज नेताओं के होते हुए उनकी काबिलियत पर भरोसा क्यों नहीं किया जा रहा है।

साल 2014 चुनाव के बाद से या यूं कहे कि, जब से पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra modi) ने राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में पदार्पण किया है तभी से ही कांग्रेस के दुर्दिन शुरू हो गए हैं। राहुल गांधी (rahul gandhi) के नेतृत्व में कांग्रेस की जिस तरह से भद्द पिटी है उसे दुनिया ने देखा है।

लोकसभा चुनाव 2014 (loksabha election) और 2019 में कांग्रेस की करारी हार के बाद से ही नेतृत्व बदलने की मांग उठने लगी, जिसमें प्रियंका गांधी को दारोमदार सौपने की बात कही जाने लगी। 

लेकिन पार्टी में अध्यक्षता का मामला काफी समय तक लंबित पड़ा रहा, हालांकि अंतरिम अध्यक्षबके रूप में सोनिया गांधी (sonia gandhi) नेतृत्व संभालती रही। अब जबकि अध्यक्ष चुने को लेकर कुछ दिन पहले दिल्ली (delhi) में कांग्रेस वर्किंग कमिटी की बैठक हुई और वहां जो हंगामा हुआ उसके बाद से तो कई बड़े नेताओं के आपसी मतभेद सतही स्तर पर खुलकर सामने आ गई।

23 बड़े नेताओं ने पार्टी को नई रूपरेखा से संगठित करने के लिए कहा है, विशेष रूप से अध्यक्ष चुने जाने की मांग की है। दरअसल अध्यक्ष बदलने के लिए कांग्रेस में अलग-अलग बयान शुरू हो गए हैं। एक पक्ष गांधी परिवार को नेतृत्व देने के पक्ष में था तो दूसरा पक्ष गांधी फैमिली के बाहर के आदमी को।

पार्टी के कई नेता सोनिया, राहुल और प्रियंका की तिकड़ी से बाहर ही नहीं निकल पा रहे थे। कांग्रेस ने 60 वर्ष देश में सरकार चलाई है और उसके पास राजनीति के सिद्धांत और पार्टी चलाने की परंपरा भी रही है जहां तक गांधी परिवार का संबंध है, 2019 के बाद इस परिवार ने पार्टी में पद के लिए कोई लालच नहीं दिखाया। राहुल गांधी (rahul gandhi) ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बाद पार्टी नेताओं को नए प्रधान का चयन करने के लिए कहा था। सोनिया गांधी (sonia gandhi) ने भी कार्यकारी प्रधान इस शर्त पर बनना स्वीकार किया कि पार्टी को बाद में नया अध्यक्ष मिलेगा। इसी कारण उन्होंने लंबे समय अध्यक्षता पद संभालने की पेशकश को भी नकारा है। प्रियंका गांधी (priyanka gandhi) ने भी किसी गैर-गांधी व्यक्ति प्रधान चुनने की बात कही है। इस मामले में पार्टी नेताओं को नए प्रधान की मांग करने वालों का विरोध करने या फटकार लगाने की परंपरा को छोड़कर पार्टी को पूरी तरह लोकतंत्रीय रास्ते पर बरकरार रखने की आवश्यकता को समझना होगा। खुद गांधी परिवार पार्टी में लोकतंत्र की बात करता रहा है लेकिन कुछ नेता इस मामले में सुर्खियां बटोरने की कोशिश कर रहे हैं जो अपने आप में सतही राजनीति का प्रमाण है।

इस समय देश को एक मजबूत विपक्ष की जरूरत है, जो कांग्रेस जैसी बड़ी पार्टी ही इस भूमिका को अदा कर सकती है। लेकिन जिस तरह से पार्टी के अंदर ही कुछ खास लोग आलाकमान को खुशबकरने की कोशिश में लगे रहते हैं वह न तो पार्टी के लिए ठीक है और न उसके भविष्य के लिए।

पार्टी का चुनावों में प्रदर्शन सुधारने के लिए पार्टी संगठन की प्रक्रिया और कार्य में सुधार की आवश्यकता होती है। इस कार्य के लिए चिंतन और विचार आदान-प्रदान करना जरूरी है। खुद को राहुल गांधी या सोनिया गांधी के शुभचिंतक साबित करने का खेल खेलने की बजाए पार्टी को उभारने के लिए सिद्धांतों और परंपराओं को संभालने की आवश्यकता है। राहुल गांधी और सोनिया गांधी जैसे राष्ट्रीय नेता किसी नेता की प्रशंसा के जाल में फंसने की स्थिति में नहीं हैं। गांधी परिवार विरोधियों द्वारा कांग्रेस पर लगाए जा रहे वंशवाद के आरोपों के मामले में सामना करने के लिए भी यह कदम उठाने के लिए प्रयत्नशील नजर आ रहा है। दो लोकसभा चुनावों में हार के बाद वे पार्टी के लिए हर वह कदम उठाना चाहते हैं जो पार्टी को एकजुट बनाकर एक मजबूत विपक्ष की भूमिका निभाए।

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