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'बदल दो गेटवे ऑफ़ इंडिया का नाम'


'बदल दो गेटवे ऑफ़ इंडिया का नाम'
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एक बार फिर से नाम की राजनीती शुरू हो गयी है और इस बार निशाने पर है मुंबई की पहचान गेटवे ऑफ़ इंडिया। बीजेपी विधायक राज पुरोहित का कहना है कि गेटवे ऑफ इंडिया का नाम बदलकर 'भारतद्वार' रखना चाहिए। उन्‍होंने गेटवे ऑफ इंडिया नाम को गुलामी का प्रतीक बताया और इसे अंग्रेजों की पहचान कही।

पुरोहित ने कहा कि जब अंग्रेज चले गए, उनकी औलादें चली गईं तो उनकी महारानी के लिए बनाए गए इस गेट का नाम बदलकर देश के नाम पर रखा जाए। गुलामी अब जा चुकी है। उनका तर्क है कि इसका नाम 'भारतद्वार'  रख देने से अपनेपन का अहसास होगा। उन्होंने आगे कहा कि पीएम नरेंद्र मोदी, राज्यपाल सी.विद्यासागर राव, सीएम देवेंद्र फडणवीस और नितीन गडकरी को इसके लिए पत्र लिखूंगा। उन्होंने आगे कहा कि कई रेलवे स्टेशनों के नाम बदले गए हैं। मुंबई का नाम अंग्रेजों ने बांबे रखा था। इसलिए बाद में उसे बदलकर मुंबई किया गया। इसलिए अब गेटवे ऑफ इंडिया का नाम भी बदल दिया जाना चाहिए। वहीं पुरोहित की मांग को प्रदेश के राजस्व मंत्री चंद्रकांत पाटिल ने समर्थन दिया है।  

क्‍या है गेटवे ऑफ इंडिया

गेटवे ऑफ इंडिया मुंबई में समुद्र तट पर स्थित है. इसकी ऊंचाई 26 मीटर है। इसका निर्माण जॉर्ज पंचम और रानी मैरी के आगमन के समय 2 दिसंबर, 1911 की यादगार में शुरू हुआ था, लेकिन यह बनकर तैयार हुआ सन् 1924 में। इसके आर्किटेक्‍ट जॉर्ज विटैट थे।

गेटवे ऑफ इंडिया का इतिहास

मुंबई में गेटवे ऑफ इंडिया की नींव 31 मार्च, 1911 को बंबई के राज्य पालसर जॉर्ज सिडेनहैम क्लार्क ने रखी थी। इस 26 मीटर ऊंचे गेट को जॉर्ज विट्टेट ने 31 मार्च, 1914 को अंतिम डिजाइन पर मंजूरी दी थी। इसे 1924 में पूरा किया गया। 

आजादी के बाद अंतिम ब्रिटिश सेना इसी द्वार से होकर गई थी। समुद्र के रास्ते मुंबई आने वाले सबसे पहले इसी द्वार पर पहुंचते हैं। गेट की निर्माण की लागत राशि 21 लाख रुपये की थी जिसको भारत सरकार द्वारा दिया गया था। पीला बेसाल्ट और प्रबलित कंक्रीट सामग्री गेटवे के निर्माण में इस्तेमाल किये गए थे। केंद्रीय गुंबद का व्यास 15 मीटर है और यह जमीन के ऊपर 26 मीटर की ऊंचाई तक है।

गेटवे ऑफ इंडिया का निर्माण दिल्ली दरबार से पहले हुआ था। हालांकि किंग जॉर्ज और रानी मैरी संरचना का एक मॉडल ही देख पाए थे।


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