Advertisement

मुंबई: छोटी राजनीतिक पार्टियां अब छोटी नहीं


मुंबई:  छोटी राजनीतिक पार्टियां अब छोटी नहीं
SHARES

कहते हैं सियासत में हर पल स्थिति बदलती रहती है। कई मोर्चों पर छोटी पार्टियां किंग मेकर की भूमिका निभाती हैं, तो ऐसा भी देखने में आया है कि कम बहुमत मिलने के बाद गठबंधन की मज़बूरी के चलते छोटी पार्टियों का ही नेता मुख्यमंत्री बन जाता है जैसा कर्नाटक में देखने को मिला।

इसका एक उदाहरण 2014 के चुनाव में भी देखने को मिला। 2014 के आम चुनाव में मोदी और भाजपा के प्रति लोगों में भरपूर समर्थन के बावजूद छोटी पार्टियों को 49 प्रतिशत वोट मिले जो कि कांग्रेस और भाजपा दोनों को मिलाकर मिले वोट से सिर्फ दो फीसदी ही कम है।

छोटी पार्टियां भी कम नहीं 

एक और बड़ी बात कि पिछले छह लोकसभा चुनावों में छोटी पार्टियों के वोट प्रतिशत में कोई बड़ा बदलाव नहीं हुआ है सिर्फ कांग्रेस और भाजपा के वोट में ही स्विंग देखने को मिला है। यानी छोटी पार्टियां धीरे धीरे ही सही लेकिन अपनी जमीन तैयार कर ही रही हैं।

अकसर देखने को मिलता है कि छोटी पार्टियां राष्ट्रीय स्तर के असर से बेअसर रहती हैं, लेकिन एक बड़ी बात जो इसमे छुप जाती है वो यह कि उन राज्यों में जहां क्षेत्रीय दल प्रभावशाली रहे हैं वहां राज्य स्तरीय पार्टियों के बीच भी प्रतियोगिता रही है।

बीजेपी की सहयोगी पार्टी
अगर महाराष्ट्र मुंबई के राजनीती की बात करें तो यहां भले ही यहां बीजेपी बहुमत में है लेकिन इसमें शिवसेना, आरपीआई (आठवले ग्रुप), राष्ट्रिय समाज पक्ष और स्वाभिमान शेतकरी संगठन के भी विधायक हैं। जहां आरपीआई के रामदास आठवले केंद्र में राज्यमंत्री हैं तो वहीँ शिवसेना ने बीजेपी को केंद्र और राज्य दोनों जगहों पर अपना समर्थन दिया है। जबकि स्वाभिमान शेतकरी संगठन और राष्ट्रिय समाज पक्ष के एक-एक महाराष्ट्र की सरकार में शामिल हैं।

गठबंधन है मज़बूरी 
हालांकि जिस तरह से शिवसेना का विस्तार हुआ है उसे छोटी पार्टी नहीं बोल सकते। इसके बावजूद यहां की सभी पड़ी पार्टियों को यह अच्छी तरह पता है कि बिना छोटी पार्टियों को साथ लिए उनका कल्याण नहीं हो सकता है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा मोदी सरकार के खिलाफ सभी पार्टियों को एक जुट होने की गुहार लगना यह दर्शाता है कि राहुल छोटी पार्टियों को इग्नोर नहीं कर सकते। कांग्रेस चाहती है कि एनसीपी उसके साथ तो रहे ही लकिन उसके साथ समाजवादी पार्टी भी आए जबकि एनसीपी लगातार एमएनएस के साथ नजदीकियां बढ़ाने में लगी है, और इस बढ़ती हुई नजदीकियों को लाकर कांग्रेस आपत्ति जताती रही है।

महाराष्ट्र स्वाभिमान पक्ष
अब हालिया रिपोर्ट के मुताबिक पूर्व कांग्रेसी नेता नारायण राणे ने घोषणा की है कि उनकी पार्टी 'महाराष्ट्र स्वाभिमान पक्ष' अकेले ही चुनाव लड़ेगी। अब अगर राणे चुनाव लड़ते है तो इसमें कांग्रेस को ही नुकसान हो सकता है। हालांकि राणे भी कोई अच्छी पोजीशन में नहीं हैं लेकिन वे इस पोजीशन में हैं कि कांग्रेस को कुछ नुकसान पहुंचा सके। यह देखते हुए ऐसा भी लगता है कि शायद बीजेपी उन्हें कोई ऑफर दे ही दे। आइये जानते हैं कि महाराष्ट्र में छोटी पार्टियों की स्थिति क्या है-

एमएनएस
एमएनएस की बात करें तो एमएनएस ने हाल फ़िलहाल जिस तरह से लोगों के बीच जाकर सामाजिक मुद्दे पर अपना कड़ा रुख अपनाया है। उससे शिवसेना का वोट बैंक दरकता हुआ दिखाई दे सकता है। एमएनएस की रैलियों में भीड़ तो काफी जुटती है लेकिन वो वोटों में तब्दील नहीं होती। इसके साथ एमएनएस चीफ राज ठाकरे कई बार एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार से भी अपने रिश्ते जगजाहिर कर चुके हैं। दोनों के बीच जिस तरह की केमिस्ट्री है उससे आने वाले समय में समीकरण बदल सकता है।

भारीप बहुजन महासंघ
दलित नेता और भारीप बहुजन महासंघ के नेता प्रकाश अंबेडकर दलितों के मुद्दों को लेकर हमेशा से ही प्रखर रहे हैं। इस पार्टी का एक मात्र विधायक अकोला से हैं। आने वाले चुनाव में पार्टी अपनी धार तेज करने में लगी हुई है। आरक्षण, और एससी/एसटी एक्ट पर यह पार्टी लोगों के बीच अपनी पैठ बढ़ा सकती है। यही नहीं इस पार्टी ने अभी हाल ही में AIMIM के साथ गठबंधन किया।

समाजवादी पार्टी 
वैसे तो समाजवादी पार्टी का मुंबई में कोई विशेष जनाधार तो नहीं है लेकिन मुस्लिम बहुल इलाके गोवंडी से जीत कर पार्टी अध्यक्ष अबू आजमी दूसरी बार विधानसभा पहुंचे हैं। यही नहीं इस पार्टी के दो नेता बीएमसी इलेक्शन भी जीत कर अपने बढ़ते हुए जनाधार को मजबूत किया है।

AIMIM
यह पार्टी लगातार अपना जनाधार बढ़ाने में लगी हुई है। इस पार्टी के आने से समाजवादी पार्टी को खासा नुकसान हुआ है। पार्टी के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी मुंबई में कई रैलियां कर चुके हैं। इस पार्टी से इस बार मुंबई सहित कुल तीन विधायक जीत कर असेंबली पहुंचे। यही नहीं इस पार्टी ने निकाय चुनावों में मुंबई में 3 सीटें तो 5 सीटें सोलपुर से जीती। साथ ही इस पार्टी  ने हाल ही में प्रकाश अंबेडकर की पार्टी  भारीप बहुजन महासंघ के साथ गठबंधन किया।

दूसरों की राह में रोड़ा
इन सभी छोटी पार्टियों को देख कर तो यही लगता है कि भले ही ये छोटी पार्टियां अपने दम पर जीत हासिल न कर सकें लेकिन इतना तो तय है कि बड़ी पार्टियों को बहुमत का आंकड़ा भी आसानी से नहीं छूने देंगी। इन पार्टियों के महत्व का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि चाहे बीजेपी हो या शिवसेना या फिर कांग्रेस सभी छोटी पार्टियों को साथ लेकर चलना चाहते हैं। इसका उदाहरण अभी एक दिन पहले अहमदनगर में दखने को मिला जब एनसीपी ने बीजेपी के मेयर को समर्थन देकर शिवसेना का मेयर बनने से रोक दिया जबकि शिवसेना सबसे बड़ी पार्टी थी।

संबंधित विषय
Advertisement
मुंबई लाइव की लेटेस्ट न्यूज़ को जानने के लिए अभी सब्सक्राइब करें