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मराठा आरक्षण सुनवाई में अन्य राज्यों को नोटिस

शीर्ष अदालत ने सोमवार को महाराष्ट्र सरकार की मांग को अनुमति दी कि जिन राज्यों की आरक्षण सीमा 50 प्रतिशत से अधिक हो गई है, उन्हें भी मामले में पार्टियों के रूप में शामिल किया जाना चाहिए।

मराठा आरक्षण सुनवाई में अन्य राज्यों को नोटिस
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शीर्ष अदालत (Supreme court)  ने सोमवार को महाराष्ट्र सरकार  (Maharashtra) की मांग को अनुमति दी कि जिन राज्यों की आरक्षण सीमा 50 प्रतिशत से अधिक हो गई है, उन्हें भी मामले में पार्टियों के रूप में शामिल किया जाना चाहिए।  तदनुसार, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ऐसे राज्यों को नोटिस भी भेजे जाएंगे।

 राज्य सरकार ने मांग की है कि सुप्रीम कोर्ट की एक बड़ी पीठ के समक्ष मराठा आरक्षण पर सुनवाई होनी चाहिए।  इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई 8 मार्च से ऑनलाइन वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए शुरू हुई।  वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने राज्य सरकार का बचाव किया।

जैसा कि मराठा आरक्षण मामले में इंद्र साहनी का फैसला एक संदर्भ है, राज्य सरकार ने पहले उम्मीद जताई थी कि सुनवाई 9 या 11 न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष होनी चाहिए।

मराठा आरक्षण का मुद्दा केवल महाराष्ट्र तक ही सीमित नहीं है, बल्कि अन्य राज्यों में भी आरक्षण 50 प्रतिशत से ऊपर चला गया है।  कर्नाटक और तमिलनाडु सहित कुछ अन्य राज्यों ने भी 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा पार कर ली है। मुकुल रोहतगी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि केंद्र सरकार द्वारा आर्थिक मानदंडों के अनुसार दिए गए 10 प्रतिशत आरक्षण के कारण सीमा पार हो गई है।  उन्होंने यह भी मांग की कि ऐसे राज्यों को पार्टियों के रूप में शामिल किया जाए।


शीर्ष अदालत ने मांग को मंजूरी दे दी है और मामले में 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण वाले राज्यों को नोटिस भेजा जाएगा।  मामले में अगली सुनवाई अब 15 मार्च को होगी। 15 मार्च से लगातार 3 दिनों तक सुनवाई होगी।

इस बीच, अटॉर्नी जनरल ने आज उच्चतम न्यायालय में एक संदिग्ध और चौंकाने वाला रुख अपनाया कि क्या राज्यों को केंद्र सरकार के 102 वें संशोधन के बाद सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग बनाने का अधिकार है। सुनवाई के बाद मराठा आरक्षण उप-समिति के अध्यक्ष अशोक चव्हाण ने कहा, यह भूमिका बेहद चौंकाने वाली और निराशाजनक है।

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