सुप्रीम कोर्ट (supreme court) ने महाराष्ट्र सरकार को मराठा आरक्षण (maratha reservation) को लेकर झटका दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण को खारिज कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने आरक्षण पर सुनवाई करते हुए कहा है कि इसकी सीमा को 50 फीसदी से ज्यादा नहीं बढ़ाया जा सकता। इसके साथ ही कोर्ट ने 1992 के इंदिरा साहनी केस (indira sahani case) में दिए गए फैसले की समीक्षा करने से भी इनकार कर दिया है।
पहले जानें क्या था इंदिरा साहनी केस में अदालत का फैसला
बता दें कि साल 1992 में 9 जजों की संवैधानिक बेंच ने आरक्षण की सीमा 50 फीसदी तक तय की थी। लेकिन इसी साल मार्च में 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने इस पर सुनवाई पर सहमति जताई थी कि आखिर क्यों कुछ राज्यों में इस सीमा से बाहर जाकर रिजर्वेशन दिया जा सकता है? हालांकि अब अदालत ने इंदिरा साहनी केस के फैसले की समीक्षा से इनकार किया है। 5 जजों की बेंच में अशोक भूषण के अलावा जस्टिस एल. नागेश्वर राव, एस. अब्दुल नजीर, हेमंत गुप्ता और एस. रवींद्र भट शामिल थे।
अब आते हैं मराठा आरक्षण पर
महाराष्ट्र सरकार ने साल 2018 में मराठा समुदाय को नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण का ऐलान किया था। जिसके बाद आरक्षण की सीमा सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय 50 फीसदी से बाहर हो गयी थी।
राज्य सरकार की ओर से इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गई थीं।
जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली बेंच ने केस की सुनवाई करते हुए कहा कि, मराठा आरक्षण देने वाला कानून 50 पर्सेंट की सीमा को तोड़ता है और यह समानता के खिलाफ है।
इसके अलावा अदालत ने यह भी कहा कि राज्य सरकार यह बताने में नाकाम रही है कि कैसे मराठा समुदाय सामाजिक और आर्थिक तौर पर पिछड़ा है। इसके साथ ही इंदिरा साहनी केस में 1992 के शीर्ष अदालत के फैसले की समीक्षा से भी कोर्ट ने इनकार कर दिया है। बेंच ने इंदिरा साहनी केस पर दोबारा विचार करने से इनकार कर दिया।